इंसान के मन में कुछ-ना-कुछ अलग करने की ख्वाहिश होती है। यही ख्वाहिश आम इंसान को खास भी बना देती है। आज इस स्टोरी के माध्यम से हम आपको अनिल परिहार नाम के एक ऐसे शख्स से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो कुछ अलग करने की ज़िद में विदेश से अपनी मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़ आए और जिसके बाद उन्होंने मशीनों के साथ अपने अनुभव और स्थानीय चीज़ों का प्रयोग करके कामयाबी के शिखर तक पहुंचने का सफर तय किया।
अनिल परिहार मूल रूप से ‘महाकाल की नगरी’ उज्जैन, मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। उन्होंने उज्जैन से ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उन्होंने अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद मशीन एंड इक्विपमेंट डिजाइनिंग के पद पर नौकरी की शुरुआत की।
इसके बाद उन्होंने अफ्रीका, यमन, युगांडा समेत कई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम किया और सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन अनिल के मन में कुछ अलग करने की टीस थी, इसलिए वो नौकरी छोड़ विदेश से अपने देश भारत लौट आए।
ऐसे हुई इस सफर की शुरुआत
साल 2004, अनिल परिहार उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल ज़िले के कोटद्वार नाम की जगह आए और यहां रहने लगे। अनिल गाय के गोबर से तमाम तरह के उत्पाद बनाने के शुरुआती समय के बारे बताते हैं कि करीब चार-पांच साल पहले उनके पास एक गरीब किसान आता है, जो उनसे कहता है कि उसे गाय के गोबर की मदद से लकड़ी बनानी है। इसके लिए वह मशीनों के कैटलॉग भी बताता है।
अनिल ने पंजाब की किसी कंपनी से जब कैटलॉग आर्डर किए, तो उसकी कीमत 65 हज़ार थी, क्योंकि अनिल खुद पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर थे और जब उन्होंने उस मशीन को देखा, तो उन्हें लगा कि यह मशीन ज़्यादा-से-ज़्यादा 20-25 हज़ार रुपये में बन सकती है।
अनिल ने किसान से कहा कि मैं यहीं पर आपके लिए मशीन बना दूंगा। यहीं से अनिल ने मशीन बनाने की शुरुआत की और इसके बाद वे अलग-अलग तरह की डाई (सांचा) की मशीन बनाने लगे। इन मशीनों का उपयोग करना भी काफी आसान है।
गाय के गोबर से बनने लगे कई उत्पाद
अनिल परिहार ने अपने मशीन डिजाइनिंग के अनुभव का प्रयोग करते हुए कम लागत में मशीन बनाने का काम शुरू कर दिया। अनिल बताते हैं, “उन्होंने देखा कि पहाड़ों में पेड़ों की कटाई बहुत अधिक मात्रा में की जा रही है, तब उनकी रूचि इसकी ओर बढ़ी कि क्यों ना गाय के गोबर से लकड़ियां बनाई जाएं?
उन्होंने गाँव के एक श्मशान घाट में भी एक मशीन लगा दी, जहां गोबर से बनाई जाने वाली लकड़ियों का इस्तेमाल अंतिम संस्कार में होने लगा। यहां से गोबर से उत्पाद बनाने की शुरुआत हो चुकी थी।”
छोटे से विचार से शुरू हुआ यह सफर अब बड़े रूप में परिवर्तित हो चुका है। अनिल के काम की सराहना होने लगी और उनकी रुचि बढ़ती चली गई।
इसके बाद उन्होंने अलग-अलग सांचों की मशीनों को बनाने का काम शुरू कर दिया। अनिल बताते हैं कि अभी उनके द्वारा गाय के गोबर से 12 तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जिसमें दीये, हवन टिक्की, धूपबत्ती, पेन स्टैंड, गमले, मूर्तियां, साबुन आदि शामिल हैं।
1 किलो गाय के गोबर में बनेंगे करीब 110 दीये
गाँव में रोज़गार के सीमित अवसर होने के कारण अधिकतर युवा शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। अनिल का कहना है कि मात्र 7 हज़ार रुपये से स्वरोजगार की शुरुआत करके 35 से 40 हज़ार रुपये प्रति महीने आसानी से कमाए जा सकते हैं।
पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में गाय का गोबर आसानी से मिल जाता है। अनिल बताते हैं कि ‘मात्र एक किलोग्राम गाय के गोबर से करीब 110 दीये बन जाते हैं।
एक दीये को बनाने में अधिक से अधिक 25 से 30 पैसे तक की लागत लगती है, जबकि बाज़ार में एक दिया एक से पांच रुपए के बीच में बिकता है। वही एक किलोग्राम गाय के गोबर से चार गमले बनाए जा सकते हैं।’
मशीन और उत्पादों की जबरदस्त मांग
शुरुआत में गाय के गोबर से बने उत्पादों में लोगों ने अधिक रुचि नहीं दिखाई लेकिन बीतते समय के साथ लोग उनके कारोबार को समझने लगे और बाज़ार में भी उनके उत्पादों की मांग भी बढ़ने लगी।
अनिल बताते हैं कि अभी उनके पास उत्तराखंड के अलावा तमिलनाडु, बिहार, उत्तरप्रदेश और दक्षिण भारत के कई अन्य राज्यों से भारी मात्रा में गोबर से बने उत्पादों की डिमांड आ रही है।
इसके साथ ही कई लोग उनसे मशीनें खरीद कर खुद उद्यमिता की शुरुआत कर अच्छी आमदनी बना रहे हैं। उनका कहना है कि भारत में पूरे साल भर त्यौहारों का माहौल रहता है, जिस कारण उनके पास काम की कोई कमी नहीं रहती है।
लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं अनिल परिहार
अनिल ने हमें बताया कि कुछ साल पहले उनके पास तमिलनाडु की एक महिला का फोन आया था, जिसने बताया कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है और उसे काम की सख्त ज़रूरत है। इसके बाद अनिल ने उस महिला को दीये बनाने की एक मशीन भेजी और यकीन मानिए आज वह महिला 30 से 35 हज़ार रुपये प्रति महीने कमा रही है।
अनिल से जो लोग मशीन खरीदते हैं, वो उनको काम दिलाने और प्रोडक्ट्स को बेचने में भी सहायता करते हैं। बीते कुछ सालों में अनिल ने कई लोगों को रोज़गार दिलाया है।
अनिल परिहार ने अपने अनुभवों और रचनात्मकता से उद्यमिता की एक नई कहानी गढ़ी है। वे गाय के गोबर का सदुपयोग करते हुए लोगों के लिए भी रोज़गार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं। उनके इस पूरे काम में सही मायनों में गौ सेवा भी हो रही है।
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नोट- मनोज, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-अक्टूबर 2021 बैच के इंटर्न हैं। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के मास कॉम के कोर्स में अध्ययनरत हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में एक इंजिनियर के द्वारा गाय के गोबर से लघु उद्योग एवं लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने एवं गोबर से बनने वाले विभिन्न उत्पादों की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है।