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जानिए कैसे मशरूम उत्पादन से लोग बन रहे हैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर

जानिए कैसे मशरूम उत्पादन से लोग बन रहे हैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर

कोरोना के बाद हमारे देश में बेरोजगारों की तादाद बढ़ गई है। युवा आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। दरअसल, कोरोना की भयावहता ने उन्हें स्थानीय स्तर पर ही रोज़गार और मज़दूरी करने के लिए बाध्य कर दिया है।

कुछ युवा तो अपने राज्य में उचित अवसर नहीं मिलने की वजह से दूसरे प्रांत में पुनः जाने को मज़बूर हैं। हालांकि, प्रत्येक राज्य में भौगोलिक वातावरण के अनुसार, कृषि आधारित रोज़गार की भी अपार संभावनाएं हैं। इसके बावजूद युवा शक्ति उचित मार्गदर्शन और योजनाओं की सही जानकारियों तथा उचित प्रशिक्षण नहीं मिलने के कारण असमंजस की स्थिति में है।

वो चाहते हैं कि मत्स्य पालन, पशुपालन, डेयरी उद्योग, मशरूम की खेती, उन्नत और नकदी खेती बाड़ी करके अपने जीवन को नई दिशा दें। यदि सरकारी स्तर पर युवाओं को योजनाओं का लाभ मिले तो निस्संदेह युवा अपने ही राज्य में वैकल्पिक कृषि आधारित काम से कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। 

बिहार के शशि कैसे बने अपने ज़िले के मशरूम मैन

हर युवा की तरह शशि भूषण तिवारी भी पढ़ाई-लिखाई के बाद रोज़गार के लिए अन्य प्रदेशों में रोज़गार तलाशते रहे और अंततः दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों से निराश-हताश लौटकर उन्होंने मशरूम का उत्पादन करना शुरू किया और अपने ज़िले के मशरूम मैन बन गए।

आज शशि अपने ज़िले के साथ-साथ अन्य राज्यों में बटन मशरूम के उत्पादन और सप्लाई से लाखों की कमाई करके आस-पास के ज़िलों एवं राज्यों में युवाओं के चहेते बन गए हैं। 

शशि भूषण ने अपनी जीविकोपार्जन के लिए ज़मीन लीज पर लेकर मशरूम का उत्पादन आरंभ किया। इसकी खेती करके ना केवल शशि ने अपने जीवन को संवारा बल्कि अन्य लोगों के जीवन में उम्मीद की नई किरण भी जगाई है। इन्होंने बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करके अपने ही यूनिट में रोज़गार से प्रदान किया है।

बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले के मोतीपुर प्रखण्ड अंतर्गत जसौली पंचायत के गोहा धनवती गाँव के शशि भूषण तिवारी मशरूम की खेती (उत्पादन) के लिए अपने इलाके में काफी चर्चित हैं। वो बी.ए पास करने के बाद अपने  घर की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से रोज़गार की तलाश में दिल्ली चले गए और वहां आज़ादपुर मंडी स्थित एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करने लगे।

कैसे हुई इस नव प्रवर्तन की पहल?

दिल्ली में पहली बार स्थानीय स्तर पर उन्हें एक भोज में आमंत्रित किया गया। इस भोज के दौरान ही इनकी नज़र मशरूम की सब्जी पर पड़ी। उन्होंने मशरूम से सम्बन्धित विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए काफी प्रयास किए और इसके बाद में पता चला कि यह दिल्ली की किसी भी सब्जी मंडी में आसानी से मिल जाता है।

इसके बाद उन्होंने इसके उत्पादन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां एकत्रित कीं। उन्होंने मशरूम की खेती (उत्पादन) के बारे में दिल्ली के आसपास हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ आदि जगहों से पता लगाया। 

शशि कहते हैं कि अगर आपके मन में लगन हो तो आपकी मंजिल आसान हो जाती है। शशि भूषण ने भी अपने मन में ठान लिया था कि अब उन्हें अपने राज्य में ही मशरूम का उत्पादन करना है। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले मशरूम उत्पादन केंद्र में काम करना शुरू किया। 

वहां नौकरी करने के दौरान शशि ने मशरूम उत्पादन के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। कुछ महीने बाद उन्होंने नई उमंग, नए जोश के साथ बिहार में ही मशरूम की खेती (यूनिट) करने का मन बनाया। इसके लिए वो अपने गृह ज़िले में लौट आए और गाँव में ही तकरीबन एक एकड़ से अधिक की ज़मीन को चालीस वर्ष की लीज पर लेकर मशरुम का उत्पादन शुरू किया।

उन्होंने जून, 2021 में अपने मशरूम उत्पादन यूनिट की नींव रखी थी। आज इस यूनिट से नींव रखने के महज़ दो माह बाद से प्रतिदिन 1400 से 1500 किलो मशरूम का उत्पादन हो रहा है। इस संबंध में स्वयं शशि भूषण तिवारी बताते हैं कि बाजार में मशरुम की मांग बढ़ती जा रही है।

वर्तमान में इसकी कीमत लगभग 150-200 प्रति किलो है। इसकी सप्लाई नेपाल, असम, बंगाल के अलावा अन्य राज्यों में भी तेज़ी से बढ़ रही है। स्थानीय स्तर पर मुज़फ़्फ़रपुर के अतिरिक्त बेतिया, मोतिहारी, वैशाली और राजधानी पटना में भी इसकी मांग हो रही है।

आज शशि अन्य बेरोजगारों को भी आर्थिक रूप से समक्ष बना रहे हैं

वर्तमान में शशि भूषण के साथ जुड़ कर 75 महिलाएं और 50 पुरुष रोज़गार प्राप्त कर रहे हैं यानि इस यूनिट से लगभग 600-700 परिवारों का भरण-पोषण हो रहा है। मशरूम को उगाने में तीस दिन एवं उसके लिए खाद तैयार करने में 20-25 दिन का समय लगता है।

खाद सामग्री में गेहूं की भूसी, नारियल का बुरादा, मिट्टी आदि से बीड तैयार की जाती है। इसका उत्पादन 30 दिनों में पूरा हो जाता है। वह बताते हैं कि उन्हें मशरूम यूनिट को शुरू करने में चार करोड़ पच्चीस लाख रुपए की लागत आई थी, जिसमें उन्हें बैक ऑफ इंडिया द्वारा ऋण के रुप में दो करोड़ पच्चीस लाख रुपये मिले थे।

उन्होंने बताया कि उनके यूनिट को शुरू करने में उद्यान विभाग, पटना के डायरेक्टर नंद किशोर एवं कृषि सचिव एन श्रवण का विशेष योगदान है।

वर्तमान में शषि भूषण केवल यूनिट में ही उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि आसपास के लोगों को भी प्रशिक्षित करके रोज़गार से जोड़ने में दिलचस्पी रखते हैं। परमजीत, संजीत, अखिलेश, प्रकाश सिंह, माला देवी, रिंकू देवी, सोनाली कुमारी, आरती कुमारी, रुखसार खातून, अफसा खातून, मोमिना बेगम आदि छोटे किसान व बेरोजगार उनसे प्रशिक्षित होकर ना केवल मशरूम से अपनी जीविकोपार्जन कर रहे हैं बल्कि आर्थिक स्वावलंबन के साथ-साथ उनके परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। 

स्वयं शषि भूषण का पुत्र बीएससी एग्रीकल्चर तथा पुत्री डेंटल की पढ़ाई कर रहे हैं। आज उनका पूरा परिवार मशरूम उत्पादन के सहारे आनंदमय जीवन जी रहा है। वो कहते हैं कि कम पूंजी से भी इस कार्य को पूरा किया जा सकता है और धीरे-धीरे पूंजी और निर्यात बढ़ाकर आसानी से अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है। 

वह युवाओं को सलाह देते हुए कहते हैं कि इस काम को शुरू करने से पहले उन्हें किसी भी कृषि विश्वविद्यालय या केवीके से मशरूम उत्पादन एवं विपणन का प्रशिक्षण प्राप्त कर ललेना चाहिए और साथ ही इस संबंध में सरकार की योजनाओं की जानकारी कृषि विभाग से प्राप्त करनी चाहिए, क्योंकि बगैर प्रशिक्षण के आपको इसके उत्पादन और मार्केटिंग से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

मशरूम की खेती के लिए भौगोलिक आवश्यक दशाएं एवं लाभ

इस संबंध में मशरूम यूनिट के प्रोजेक्ट मैनेजर रवि शंकर बताते हैं कि मशरूम के लिए तापमान कम-से-कम 20 डिग्री एवं अधिकतम 22 डिग्री तक होना चाहिए। वो कहते हैं कि मशरूम उत्पादन के संबंध में बिहार में जागरूकता की कमी है।

यदि युवाओं को इसके फायदे बताए जाएं तो निःसंदेह वो अपने घर से ही छोटे स्तर पर इसकी शुरुआत कर जीविकोपार्जन करने में सामर्थ्य हो सकते हैं। उन्हें अन्य प्रदेशों में भटकने की नौबत नहीं आएगी। रवि शंकर कहते हैं कि आज एक बड़ी आबादी मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार होती जा रही है।

हमारा अनियमित खानपान, रहन-सहन, अवसाद और अपर्याप्त पोषक तत्वों की वजह से हमारा शरीर रोग ग्रस्त होता जा रहा है। गर्भवती माँ को गर्भावस्था के दौरान उपयुक्त देखभाल व पौष्टिक आहार उपलब्ध ना होने के कारण महिलाओं में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है।

इसके परिणामतः नवजात शिशु को जन्म लेते ही पोषण के लिए आईसीयू में रखना पड़ रहा है। ऐसे में मशरूम में मौजूद पोषक तत्वों के ज़रिये बच्चों का संपूर्ण पोषण किया जा सकता है। मशरूम पाउडर को दूध में मिलाकर पिलाने से आवश्यक पोषक तत्वों की कमी दूर की जा सकती है यानि कम पैसे की लागत से सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। 

प्रदेश से रोज़गार की तलाश में होने वाले पलायन पर लगेगी रोक

क्षेत्र की ज़िला पार्षद पूनम देवी कहती हैं कि यह बड़ी ही खुशी की बात है कि मेरे ज़िला पार्षद क्षेत्र-1 में लघु उद्योग के रुप में मशरुम की खेती हो रही है। इससे लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है और पोषक तत्व भी प्राप्त हो रहे हैं।

उन्होंने आश्वासन दिया है कि वह बिहार सरकार से मांग करेंगी कि इसी तरह के उद्योग ज़िले में अधिक-से-अधिक लगाए जाएं, ताकि ना केवल ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी एवं भुखमरी मिटे बल्कि लोगों को रोज़गार के लिए परदेस भी जाने की ज़रूरत नहीं पड़े।

बहरहाल, शशि भूषण का यह उत्पादन केंद्र जिला में काफी चर्चित हो रहा है। वहां आए दिन युवाओं की टोली मशरूम के प्रशिक्षण एवं उत्पादन के तरीके सीखने आ रही है। यदि इस तरह की यूनिटें छोटे स्तर पर भी शुरू हो जाएं, तो सेहत के साथ-साथ रोज़गार तलाश के लिए अन्य प्रदेशों में होने वाला पलायन भी रुक सकता है।  

नोट- यह आलेख मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार से फूलदेव पटेल ने चरखा फीचर के लिए लिखा है। 

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