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हमारे जीवन में सकारात्मकता का महत्व

हमारे जीवन में सकारात्मकता का महत्व

एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था।

ऐसे ही आराम से दिन गुज़र रहे थे। एक दिन वह आदमी सेठ को बिना बताए काम पर नहीं गया। उसके ना जाने से सेठ का काम रुक गया, तब उसने सोचा कि यह आदमी इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है।

मैंने कबसे इसकी तनख्वाह नहीं बढ़ाई है। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा? सेठ ने सोचा कि अगर इस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने अगले दिन से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी। उस आदमी को जब एक तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया।

लेकिन वह कुछ बोला नहीं और उसने चुपचाप पैसे रख लिए और धीरे-धीरे यह बात आई गई हो गई। कुछ महीनों के बाद वह आदमी फिर फिर एक दिन अपने काम से गैर हाज़िर हो गया। यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा कि यह कैसा कृतघ्न आदमी है?

मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई पर इसने ना तो उसके लिए मुझे धन्यवाद दिया और ना ही अपने काम की ज़िम्मेदारी समझी। इसकी तनख्वाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा! और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया। इसके बाद अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गई लेकिन हैरानी यह थी कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा।

उसने सेठ से इसके बारे में ज़रा भी शिकायत नहीं की। यह देख कर सेठ से रहा नहीं गया और वह उससे पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई? जब मैंने तुम्हारे गैर हाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तनख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले और आज जब मैंने तुम्हारी गैर हाजिरी पर तनख्वाह फिर से कम कर के दी, तो तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?

उस आदमी ने जवाब दिया कि जब मैं पहली बार अपने काम से गैर हाज़िर हुआ था, तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तनख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज़्यादा खुश नहीं हुआ।

इसके बाद मैं जिस दिन दुबारा काम से गैर हाजिर हुआ था, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तनख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से की तनख्वाह अपने साथ ले गई है।

फिर मैं इस तनख्वाह की खातिर क्यों परेशान होऊं? यह बात सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने ना सिर्फ उस आदमी की तनख्वाह पहले जैसे कर दी बल्कि वह उसका ज्यादा सम्मान करने लगा।

निष्कर्ष : हमारे जीवन में अक्सर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की घटनाएं होती रहती हैं।

जो आदमी एक अच्छी घटना से खुश होकर अनावश्यक उछलता नहीं है और नकारात्मक घटनाओं पर अनावश्यक दु:ख नहीं मनाता और हर दशा में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखते हुए सच्ची लगन और ईमानदारी से कार्य करता रहता है, वही आदमी जीवन में स्थाई सफलता को प्राप्त करता है।

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