सूर्यदेव अर्ध्य मंत्र
!! एहि सूर्य ! सहस्त्रांशो ! तेजो राशे जगत्पते !!
!! अनुकम्प्य मां भकत्या गृहाणार्ध्य दिवाकर !!
अर्थात
हे सहस्त्रांशो ! हे तेजो राशे ! हे जगत्पते ! मुझ पर अनुकंपा करें। मेरे द्वारा श्रद्धा भक्तिपूर्वक दिए गए इस अर्ध्य को स्वीकार कीजिए, आपको बारंबार शीश नवाता हूं।
भारतीय लोक संस्कृति में सबसे ज़्यादा भक्ति भाव, नेम धर्म और पवित्रता के साथ कार्तिक मास में मनाए जाने वाले सूर्य देव की आराधना का पर्व (सूर्य षष्ठी व्रत) “छठ पूजा” दरअसल सूर्य की उपासना है। भारतवर्ष में भगवान भास्कर की आराधना ऋग्वेद काल से निरंतर चली आई है। हिन्दू धर्म का सबसे लोकप्रिय वैदिक मंत्र गायत्री मंत्र है, जो सूर्य की स्तुति में महर्षि विश्वामित्र द्वारा रचित है या कहें कि इस मंत्र के द्रष्टा वे हैं।
गौरतलब है कि भारतीय मनीषा में उत्सव-पर्वों की शृंखला के क्रम में विभिन्न दिवसों, तिथियों की अपनी पृथक महिमा व विशिष्टता है। यही वजह है कि भारत में आज भी सूर्योपासना प्रचलित है। वैसे छठ पर्व का आयोजन साल में दो बार क्रमशः चैत्र एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को “नहाय खाय” से शुरू होकर सप्तमी के दिन पारण से समाप्त होता है।
लोकआस्था का महापर्व छठ पूरे मानव जाति के लिए प्रकृति से निकटता का संदेश भी है। मान्यता है कि सूर्य सृष्टि के कारक है, अतः इन्हें आदिदेव के रूप में भी पुकारा जाता है। इतिहास साक्षी है कि सूर्य भगवान निरंतर कर्मरत रहते है। वे बिना किसी भेदभाव के अपनी ऊर्जा और उष्मा प्रदान कर जनमानस के जीवन को संभव बनाते है।
वे स्वावलंबन के सबसे बड़े उदाहरण हैं। उनका ही अवलंबन पाकर समूची सृष्टि प्रकाशित है। यही कारण है कि सूर्य की उपासना का छठ पर्व भी पूरी तरह प्रकृति के स्वाभिमान और स्वावलंबन को समर्पित है।
छठ महापर्व का व्रत करने से निरोगिता, प्रतिष्ठा, तेजस्विता की वृद्धि तो होती ही है साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भी यह पर्व मनाया जाता है। भारतीय सनातन धर्म में आस्था का छठ महापर्व शहर से लेकर गांव तक में नदी या तालाब के किनारे सामुहिक छठ घाटों पर मनाया जाता है। हालांकि अब तो कई लोगों ने अपने घर के बाहर व छतों पर कृत्रिम तौर पर तैयार निजी घाट में भी इस त्यौहार को मनाना प्रारंभ कर लिया है।
बहरहाल, विगत दो वर्षों से कोरोना संक्रमण के कारण जो उत्साह इस महापर्व को फीका कर रहा था वह इस वर्ष देखने को नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि सूर्योपासना व लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर सद्विचार, सदाचार, प्रेम और भक्ति के माध्यम से सूर्य देव को प्रसन्न करने के शक्ति के साथ इस बार मिथिला के घर-घर एवं बाजार में भी इस दौरान अधिक उत्साह देखा जा रहा है।
हालांकि छठ एक धार्मिक आयोजन ही नहीं है, इसके सारे अनुष्ठान विज्ञान की कसौटी पर भी खरे उतरते हैं। छठ महापर्व के चार दिनों के व्रतानुष्ठान के दौरान विशेष 36 घंटे का उपवास व्रती महिलाओं द्वारा रखा जाता है। बिहार प्रांत की सांस्कृतिक पहचान के रूप में धर्म एवं संस्कृति की इंद्राधनुषी छटा बिखेरते कृतज्ञता एवं आस्था की पराकष्ठा का यह महापर्व बिहार समेत पूरे देश और विदेश में मनाया जाता है। गौरतलब है कि देश में हों या विदेश में, बिहार प्रांत के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ किसी जलाशय के पास एकत्रित होते है। जो अपनी प्रकृति और अपनी संस्कृति के प्रति स्वाभिमान प्रकट करते हैं और छठ पर्व मनाते हैं।
इस मौके पर पूरी सात्विकता का लगातार पालन कर उपवास करना साथ ही अध्यात्म का सुंदर समन्वय अनुष्ठान सोमवार 08 नवंबर 2021 को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। कार्तिक शुक्ल पंचमी यानी मंगलवार 09 नवंबर 2021 को खरना है। इसके बाद बुधवार 10 नवंबर 2021 की शाम व्रती अस्ताचलगामी डूबते सूर्य को संध्याकालीन अर्ध्य यानि दूध अर्पण करेंगे और गुरुवार 11 नवंबर 2021 की सुबह उदयाचलगामी उदियमान सूर्य को प्रातः कालीन व्रती अर्ध्य देंगे।
आईए इस महापर्व को पुनः इस वर्ष पूरी श्रद्धा, भक्ति, नियम, संयम, निष्ठा और लोकआस्था के उल्लास के साथ पवित्रतापूर्वक मिलकर मनाएँ मेरी शुभकामना की छठी मईया एवं भगवान भास्कर की कृपा आप व आपके समस्त परिवार, सखी, मित्र, पड़ोसी, सगे-संबंधियों व देशवासियों के लिए शांति, आनंद, ऊर्जा, आध्यात्मिक उन्नति से भरा हो। कठिन तपस्या के इस पावन पर्व में आप सभी अपने पारिवारिक जीवन में सुख-शांति-समृद्धि व मनोवांछित फल प्राप्त करें।
!! ऊँ ऐं ह्रिं घृणिः सूर्यः आदित्यः किलिं ऊँ !!