ध्रुव की बहन, जिसने शुरु में उसके समलैंगिक होने पर काफी एतराज़ जताया, अब फेसबुक पर उनके पार्टनर के साथ उनकी फोटो को लाइक करती है। ध्रुव ने लव मैटर्स इंडिया को बताया कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब चीज़ें उनके लिए सकारात्मक रुप से बदलने लगी हैं।
* 28 वर्षीय ध्रुव समलैंगिक हैं और पुणे में डेटा साइंटिस्ट हैं।
‘दोस्ताना‘
एक दिन शिल्पा दीदी और मैं टीवी पर ‘दोस्ताना’ फिल्म देख रहे थे। हम एक-दूसरे के साथ हर बात साझा करते थे। फिल्म देखते हुए मैंने भी उन्हें बता दिया कि मैं अपने स्कूल के दोस्त नमित को लेकर कुछ-कुछ ऐसा ही महसूस करता हूं। उन्हें लगा कि मैं फिल्म देखते हुए उनसे मज़ाक कर रहा हूं।
उन्होंने यह बात मम्मी-पापा को भी बता दी। मम्मी-पापा ने भी मेरी इस बात को एक मज़ाक समझकर इस बात की अनदेखी कर दी। वास्तव में उनके लिए यह अविश्वसनीय था, जिसके बारे में उन्होंने ना तो कभी सपने में सोचा था और ना ही कभी कल्पना की थी।
मेरे मम्मी पापा समलैंगिक शब्द के बारे में जानते थे, लेकिन उतना ही जितना करण जौहर की फिल्मों में या कुछ विदेशी फिल्मों में दिखाया जाता है। अपने ही घर में किसी व्यक्ति के समलैंगिक होने का तो सवाल ही नहीं था।
मेरे जीवन की वो वो अपमानजनक रात
जैसे-जैसे साल बीतते गए मैं अपनी लैंगिकता को लेकर और अधिक सहज होता गया और मैंने इसके बारे में अपने दोस्तों को भी बता दिया। मेरे छोटे से शहर पंतनगर में कुछ दिनों के भीतर यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। मेरे घर वाले गुस्से से आगबबूला हो गए और उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया।
सौभाग्य से, उसी हफ्ते मैं कॉलेज की एक ट्रिप पर शहर से बाहर चला गया। वहां मैं काफी आराम से घूमा फिरा और एक हफ्ते बाद वापस लौट आया।
उस रात जैसे ही मैं घर पहुंचा, मैंने अपने पास पड़ी एक चाभी से घर का दरवाजा खोला और चुपके से अपने कमरे में चला गया। मैं रात के 2 बजे किसी को परेशान नहीं करना चाहता था। कपड़े बदलने के बाद मैं बेड पर लेटा ही था कि शिल्पा दीदी ने आकर मुझे जगा दिया। उन्होंने कहा कि वह मुझसे बात करना चाहती हैं।
उन्होंने कहा कि मम्मी और पापा मुझसे बहुत नाराज़ हैं और वे नहीं चाहते कि मैं घर से बाहर निकलूं ताकि लोगों को मेरी लैंगिकता के बारे में पता चले। उन्होंने कहा कि इससे परिवार की बदनामी होगी और कहीं उनकी शादी की बात भी नहीं बन पाएगी।
मैंने मना कर दिया। मैंने उसके साथ तर्क करने की कोशिश की लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। बहस इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने मुझ पर चिल्लाना शुरू कर दिया और बाद में चप्पलों से मेरी पिटाई करने लगीं। मुझे उनकी इस बात से काफी अपमानित महसूस हुआ लेकिन मैंने उन्हें रोका नहीं।
बदलाव का वक्त
आज उस घटना को पांच साल से अधिक का समय बीत चुका है। मुझे दूसरे शहर में नौकरी मिल गई है और मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं। शारीरिक कष्ट तो दूर हो गया लेकिन उस दिन मुझे जो मानसिक पीड़ा पहुंची थी, वह लंबे समय तक मेरे साथ रही।
धीरे-धीरे समय बदला और दीदी की शादी हो गई। इसके बाद भी हम उसी तरह एक-दूसरे से जुड़े रहे और मेरी समलैंगिकता को छोड़कर हम लोग हर चीज़ के बारे में बातें करते थे।
हालांकि, धीरे-धीरे हमारे मम्मी पापा और दीदी करीब आ गए और अब उन्होंने मुझे उसी रुप में स्वीकार कर लिया है, जैसा मैं हूं। पिछले साल, जब दीदी, जीजू और अपने बच्चों के साथ रक्षाबंधन पर पुणे में मुझसे मिलने आईं थीं, तो मेरा पार्टनर मयंक मेरे साथ था। मयंक को पीलिया हो गया था। इसलिए मैं उसकी देखभाल कर रहा था, जब मैं ऑफिस चला गया तो दीदी ने ना केवल उसे दवा दी बल्कि उसके लिए खाना भी बनाया।
मेरी दीदी अब फेसबुक पर मेरे उस पेज को लाइक करती है, जहां मैं समलैंगिक अधिकारों के बारे में अपने विचार पोस्ट करता रहता हूं। वह मयंक के साथ मेरी फोटो पर लाइक और कमेंट भी करती है।
ध्रुव ने हमारे अभियान #AgarTumSaathHo के लिए लव मैटर्स इंडिया के साथ अपनी कहानी साझा की है। इस महीने हम एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को दोस्तों, सहकर्मियों, माता-पिता, शिक्षकों या समाज से मिले / या दिए गए समर्थन, स्वीकृति, प्रेम और सम्मान की कहानियां प्रकाशित करेंगे।
*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं ।
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