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गौरी लंकेश : लोकतंत्र के सिद्धातों की मुखर आवाज़

गौरी लंकेश : लोकतंत्र के सिद्धातों की मुखर आवाज़

अमूमन किसी की मौत के बाद शोक मनाया जाता है। 5 सितंबर, 2017 को पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिसके बाद सोशल मीडिया से लेकर समाज के एक विशेष तबके द्वारा पूरे देश में जश्न मनाया गया।

गौरी के लिखने और बोलने से किसी को इतनी तकलीफ हुई कि उन्होंने उस कलम और आवाज़ को हमेशा के लिए ही स्थिर कर दिया।

‘अभिव्यक्ति की आज़ादी की कब्रगाह बनाता हो देश

दाभोलकर, पानसरे, कुलबुर्गी और अब गौरी लंकेश’

आज़ाद आवाज़ गौरी लंकेश की हत्या इस लोकतांत्रिक देश में किसी अभिव्यक्ति की यह पहली हत्या नहीं थी।  2013 में डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर, जो लगातार अंधविश्वास और कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज़ उठाते थे, उनकी पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 

पुणे से ही कुछ दूर महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की 16 फरवरी, 2015 में गोली मार कर हत्या कर दी गई। इसके बाद गोली लगाने से गंभीर रूप से घायल पानसरे को उपचार के लिए मुंबई लाया गया और वहां 4 दिन तक चले उपचार के बाद 20 फरवरी को उनकी मौत हो गई।

 4 साल बाद भी फरार आरोपियों की जांच जारी है। वहीं 2015 में ही साहित्यकार एमएम कुलबुर्गी की उनके ही घर में हत्या कर दी जाती है और हमेशा की तरह न्याय फाइलों के बीच दबकर रह जाता है। 

यह सवाल उठाया जा सकता है कि आखिर हम गौरी को क्यों जानें? गौरी का इस लोकतांत्रिक समाज एवं राष्ट्र निर्माताओं स्वर्गीय श्री मोहनदास करमचंद गांधी, अंबेडकर और अन्य से विरासत के रूप में राष्ट्रीयता के आधुनिक दस्तावेज़ के रूप में मिला संविधान एवं लोकतंत्र पर अटूट विश्वास था।

ऐसा कह सकते हैं कि इसी वजह से इतनी आसानी से उन्हीं के घर के बाहर जहां वह आंख बंद करके आवाजाही करती थीं, वहीं उनकी हत्या कर दी जाती है।

गौरी लंकेश लोकतांत्रिक सिद्धांतों को प्रेषित करने वाली एक वरिष्ठ पत्रकार तथा जनता की ओर से आज़ादी तथा ईमानदारी की एक प्रखर प्रवक्ता थीं।

गौरी का जन्म 29 जनवरी, 1962 ज़िला शिमोगा कर्नाटक में हुआ था। गौरी ने प्रारंभिक शिक्षा बेंगलुरु से ही प्राप्त की तथा 1979-82 तक बीए, पत्रकारिता, इतिहास, पर्यटन: सेंट्रल कॉलेज, बानसवाडी बेंगलुरु से अंडर ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और जिसके बाद 1983-84 में भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा प्राप्त किया।

गौरी की पत्रकारिता की शुरुआत 1985 में ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ से हुई। गौरी की शुरुआती पत्रकारिता अंग्रेज़ी  में शुरू हुई थी। द टाइम्स ऑफ इंडिया में 1990 तक कार्य करने के पश्चात 1990 से 1998 तक ‘संडे’ में काम किया।

1998 से 2000 तक गौरी ने नई दिल्ली में ‘ईटीवी’ में ब्यूरो प्रमुख के रूप में काम किया। 2000 में उनके पिता पी.लंकेश जो कि कन्नड़ भाषा के साहित्यकार, कवि एवं पत्रकार थे। उनके निधन के पश्चात गौरी ने पिता द्वारा निकाले जाने वाले साप्ताहिक पत्रिका ‘लंकेश पत्रिके’ के संपादन का कार्य संभाला। इस तरह उनकी कन्नड़ पत्रकारिता का अध्याय शुरू होता है। 

गौरी ने धार्मिक कट्टरता, लिंग, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति उत्साहित, किसानों, आदिवासियों के कल्याण के मामलों में दृढ़ विचारों के लिए अपना पर्याप्त स्थान बनाया। गौरी हमेशा से ही दक्षिणपंथी विचारधारा की आलोचक रही हैं।

नक्सलवाद के खिलाफ गौरी ने हमेशा आवाज़ उठाई। नक्सलियों के प्रति अपने इस खुलेपन दृष्टिकोण के कारण उनके बड़े भाई (लंकेश पत्रिके के मालिक) के साथ मतभेद हो गए, जिस कारण 2005 में गौरी ने नए साप्ताहिक पत्रिका ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ शुरू करना पड़ा। गौरी की दिलचस्पी काफी व्यापक थी। उनकी रूचि पत्रकारिता, फिल्म, साहित्य, नाटक, कथेतर साहित्य और रूपांतरण में भी थी। 

गौरी ने दुःसाहसी और अधिक जोखिम वाली पत्रकारिता को जन्म दिया। गौरी हमेशा ही जनता की आवाज़ बनकर सामने आईं। गौरी की पत्रकारिता को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं, जिसमें अंग्रेजी पत्रकारिता एवं 2000 के बाद से उनकी कन्नड़ पत्रकारिता।

लेखक मंगलेश डबराल ने बीबीसी से कहा, “उनकी हत्या यकीनन विचारधारा के कारण हुई है। वो पिछले दो साल से दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर थीं और अंतत: वो उनकी हत्या करने में सफल हुए।”

मंगलेश बताते हैं कि पिछले दो सालों से उनको अनेक तरह की धमकियां दी जा रही थीं। वो कहते हैं, “गौरी ने बार-बार लिखा कि मैं एक सेकुलर देश की इंसान हूं और मैं किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता के खिलाफ हूं।”

गौरी लंकेश ने पत्रकारिता की एक नई मिसाल पेश की। दिल्ली में मीडिया की चकाचौंध भरी नौकरी को छोड़, उन्होंने स्थानीय स्तर और स्थानीय भाषा में पत्रकारिता करने का फैसला लिया। लोकतंत्र और संविधान में अटूट विश्वास के साथ उनकी एक विचारधारा थी शायद यह विचारधारा ही उनकी हत्या का कारण बनी। 

संदर्भ: बीबीसी हिंदी, द वायर, किताब- गौरी लंकेश एक नज़र से।

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नोट- मनोज, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-अक्टूबर 2021 बैच के इंटर्न हैं। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के मास कॉम के कोर्स में अध्ययनरत हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश के जीवन के विभिन्न पहलुओं एवं उनकी विचारधारा पर प्रकाश डाला है।

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