चला कदम-से-कदम मिलाकर
जो कभी नहीं घबराया है
मंजिल उसने ही पाई है
जिसने कदम बढ़ाया है।
15 नवंबर यानि झारखंड का स्थापना दिवस। यह मांदर की थाप पर झूमते, अबुआ राज के सपने को हकीकत में बदलने का दिन है। आज झारखंड 21 साल का युवा हो चुका है।
झारखंड इन 21 सालों में राजनीतिक अस्थिरता का साक्षी रहा है। झारखंड अब तक 11 मुख्यमंत्री और 4 बार राष्ट्रपति शासन भी देख चुका है लेकिन राजनीतिक उठापटक के बावजूद भी निरंतर आगे बढ़ने की चाह और दृढ़ संकल्प ने आज हमें खुद पर गर्व करने के लिए बहुत कुछ दिया है।
यही वजह है कि झारखंड को भारत का रत्नगर्भ भी कहा जाता है। आज हम झारखंड को उसकी पहचान दिलाने की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले धनबाद की बात करेंगे, जहां से 1970-80 के दशक में बिनोद बिहारी महतो, ए.के.राय, दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने अपने साथियों के साथ मिलकर झारखंड राज्य के निर्माण का सपना देखा था, जो 15 नवंबर, 2000 को साकार हुआ था।
15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना, तब धनबाद के लोगों ने सुबह की पहली किरण के साथ अबुआ राज का सपना देखा था, जो यहां के लोगों के निरंतर कदम-से-कदम मिलाकर चलने की वजह से साकार हो रहा है।
अपने गर्भ में कोयला समेत अन्य खनिज संपदाओं का भंडार समेटे हमारा ज़िला धनबाद हर दिन अपने विकास के पथ पर अग्रसर है। दामोदर नदी के किनारे स्थित धनबाद की पहचान भारत में एक औद्योगिक शहर के रूप में है। आप अपने आसपास जगमगाती रौशनी, इलेक्ट्रॉनिक मशीनें जो देखते हैं, जो आपकी रोजमर्रा की दिनचर्या का अहम हिस्सा है।
सभी इस बिजली की वजह से ही संभव है। उस बिजली को पैदा करने वाला कोयला पूरे देश को हम ही देते हैं। यही वजह है कि हमें देश की कोयला राजधानी कहलाने का गौरव भी प्राप्त है। यहां बीसीसीएल, एमपीएल और टाटा जैसी कई कोयला कंपनियां दिन-रात कोयले का खनन कर पूरे देश को रौशन कर रही हैं।
हमारी सड़कें भी अब पहले की तरह जर्जर नहीं रहीं। सड़कों का जाल भी धनबाद के चारों ओर बिछ रहा है। कई फोर लाइन सड़कें बन गई हैं। झारखंड के पहले 8 लेन सड़क का निर्माण भी तेज़ी से हो रहा है, जहां दिन-रात गाड़ियां सरपट दौड़ रही हैं।
बिहार के समय शिक्षा के मामले में पिछड़ा धनबाद अब पहले जैसा नहीं रहा है। अब यहां आईआईटी आईएसएम जैसे संस्थान बन गए हैं, जहां पूरे भारत से ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों के बच्चे पढ़ते हैं। बीआईटी सिंदरी, बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिर्वसिटी समेत कई तकनीकी संस्थानों से यहां के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर देश भर में धनबाद का मान बढ़ा रहे हैं।
हर साल यहां के कई विद्यार्थी आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर बन कर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं। इतना ही नहीं हम शोध और विज्ञान के मामले में भी देश के बाकी जिलों के साथ कदम-से-कदम बढ़ाकर आगे बढ़ रहे हैं। यहां डीजीएमएस, सिंफर जैसे संस्थान भी हैं। हाल ही में यहां के 5 वैज्ञानिकों को दुनिया के टॉप 100 वैज्ञानिकों में भी स्थान मिला है।
अगर हम बात उद्योगों की करें तो यहां एसीसी सीमेंट कारखाना, पीडीआइएल, हर्ल उर्वरक संयंत्र जैसे कई उद्योग धंधे हैं, जिनमें दिन-रात हज़ारों मज़दूर उत्पादन करने के काम में लगे हुए हैं।
1958 में धनबाद जंक्शन बनने के बाद हम लगातार माल ढुलाई में भी अव्वल रहे हैं। धनबाद से देश के कोने-कोने तक रेल से आने-जाने की व्यवस्था है, जो कभी ग्रामीण इलाका कहलाता था। आज वह धनबाद नगर निगम बन चुका है। इसमें 55 वार्ड हैं।
धनबाद प्राकृतिक सौंदर्य, पर्यटन स्थल, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्र में भी अपनी एक अलग पहचान रखता है। यहां मैथन और पंचेत डैम के अलावा तोपचांची झील में, जहां हर रोज़ हज़ारों पर्यटक प्राकृतिक सौंदर्य को लुत्फ उठाने पहुंचते हैं।
धनबाद रेलवे स्टेशन से महज़ 14 किमी की दूरी पर स्थित भटिंडा फॉल बड़ा ही एक रमणीक (दर्शनीय) स्थान है। इसके अलावा यहां बिरसा मुंडा पार्क भी है। धनबाद में विभिन्न संस्कृति के लोगों का एक बड़ा मिश्रण है। यहां देश की हर भाषा बोली जाती है। धनबाद के निरंतर विकास को देखते हुए अब हम इस कविता के साथ आपसे विदा लेते हैं।
नापा गहरे सागर को जिसने
मोती उसने ही पाया है
मंथन किया जतन से जिसने
अमृत उसने ही पाया है।