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बुंदेलखंड : पानी की त्रासदी दशकों से ग्रामीणों की आंखों में दे रही है पानी

बुंदेलखंड : पानी की त्रासदी दशकों से ग्रामीणों की आंखों में दे रही है पानी

ऐसा लगता है कि गर्मी में पानी का संकट बुंदेलखंड और चित्रकूटधाम मंडल की किस्मत में लिखा जा चुका है। दशकों से चली आ रही यह स्थिति एक बार फिर सामने आ खड़ी हुई है।

चित्रकूटधाम मंडल के चारों जनपद बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट में स्थित सभी तेरह बांध गर्मी की दस्तक देते ही सूख गए हैं। सूखे बुंदेलखंड में फिर से लोगों के साथ-साथ किसान खेतों की सिंचाई के लिए पानी के लिए तरसते हुए दिखाई देंगे।

वहीं मवेशी और पक्षियों की निगाहें भी एक बूंद-बूंद की तलाश में लगी होंगी। महिलाएं, लड़कियां व बच्चों का पूरा दिन पानी ढोने में जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि खेत और लोगों को पानी देने वाले मंडल के सभी तेरह बांधों की कोख अभी से सूख गई है।

किसान और मवेशी दोनों को ही इन बांधों से पानी तभी मिलेगा, जब मेघा (बादल) मेहरबान होंगें। वह इसलिए क्योंकि सरकार की आशाएं सिर्फ लोगों को अभी तक धोखा ही देती आ रही हैं।

चित्रकूटधाम मंडल के सभी 13 बांधोें में पानी का ज़बरदस्त अकाल हो गया है। कुछ बांध तो पूरी तरह से खाली हो गए हैं। कुछ एक में एक या दो मिलियन घन मीटर पानी बचा हुआ है। अब किसानों और सिंचाई विभाग को बेसब्री से बारिश का इंतज़ार है, क्योंकि बांधों से तो पानी मिलना मुश्किल ही नज़र आ रहा है।

सिंचाई विभाग नहरों के ज़रिये चित्रकूटधाम मंडल के चारों जनपदों में कई हज़ार हेक्टेयर खेतों को इन्हीं बांधों से पानी मुहैया कराता है। बीते कुछ महीनों में छुटपुट बारिश बांधों का कुछ भला नहीं कर सकी है।

जलाधिकारी नहीं ले रहे सुध, लोगों में पनप रहा गुस्सा

खप्टिहा कलां/ओरन गाँव में भीषण गर्मी में पानी संकट गहराने लगा है। ग्रामीण पानी के लिए परेशान हैं। लोग दूर-दराज़ के इलाकों से पानी ढोने को मज़बूर हैं। ग्रामीणों ने गुस्सा जताते हुए उच्चाधिकारियों से जलापूर्ति दुरुस्त कराने की मांग की है। यहां तक की ओरन गाँव के रहने वाले ग्रामीणों ने आंदोलन की चेतावनी भी दी है।

 

कई मीलों दूर से रोज़ की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पानी लाते स्थानीय निवासी।

जल संस्थान की लापरवाही की वजह से पैलानी के लोग बाल्टीभर पानी के लिए भी मोहताज हो गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पानी की पाइप लाइन जगह-जगह टूटी हुई है, जिसे जल संस्थान द्वारा सही नहीं किया जा रहा है।

कुछ इलाकों में नई पाइप लाइन पड़नी है। इस पर भी जल संस्थान अभियंता ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसे में लोगों में गुस्सा पनप रहा है। गाँव के ही रज्जन ने बताया कि कई महीने से लोग पानी के लिए परेशान हैं। जल संस्थान अधिकारियों और कर्मचारियों से कई बार शिकायत भी की गई है लेकिन किसी ने अभी अभी तक कोई सुध नहीं ली है।

लोगों द्वारा उप ज़िलाधिकारी को भी पानी के संकट से अवगत कराया गया फिर भी इस समस्या का समाधान नहीं हुआ है। वहीं ओरन गाँव में पिछले दो दिनों से पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। जलापूर्ति बंद होने से नगर वासियों को दूर-दराज़ के हैंडपंप और कुओं आदि से पानी ढोना पड़ रहा है।

पानी की टंकी के बाद भी नहीं मिल रहा पानी

बांदा नरैनी तहसील क्षेत्र के महुआ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले पनगरा गाँव के निवासी सड़क पार करके नहर के दूसरी तरफ से साइकिल व सिर पर बाल्टी रखकर पानी भरकर लाते हैं।

ग्राम पंचायत में एक पानी की टंकी भी है। वर्तमान में पांच ट्यूबवेल भी लगे हुए हैं लेकिन उनमें से दो खराब हैं। तीन ट्यूबवेल, जो चालू हालत में हैं उनसे ऊंचाई वाले स्थान तक पानी की सप्लाई नहीं हो पाती है।

गाँव के लोगों ने बताया कि उनके गाँव की आबादी लगभग 15,000 की है, जो मकान ऊंचाई पर बने हुए हैं। वहां तक पानी नहीं पहुंच पाता है। ऐसे कहने को पानी की टंकी की सप्लाई लाइन गाँव के मजरा शिवपुर गौर तक बिछाई गई है लेकिन यह सप्लाई गाँव के लोगों को कोई राहत नहीं दे रही है, क्योंकि उन तक पानी ही नहीं पहुंच  रहा है।

बिजली की किल्लत से नहीं चलते पंप

लोगों ने बताया कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शासनकाल में पानी की टंकी का निर्माण हुआ था। ऑपरेटर विनोद दुबे ने खबर लहरिया को बताया कि ‘गाँव में लगी पानी की टंकी की क्षमता लगभग 4.5 लाख लीटर पानी की है। बिजली की किल्लत के कारण लगातार पंप नहीं चल पाते हैं। इससे पानी की सप्लाई गाँव की तलहटी पर बने मकानों तक ही पहुंच पाती है।’

शहर की पानी की टोटियां भी हुई सूखी

बांदा मुख्यालय स्थित हरदौली घाट जवाहर नगर काशीराम कॉलोनी में बीते एक सप्ताह से कॉलोनी में लगे नलों की टोटियां भी सूखी हुई हैं। कुछ हैंडपंपों के सहारे ही यहां पर रहने वाले लोग पानी की व्यवस्था कर रहे हैं। सबसे ज़्यादा ऊपरी मंजिल के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

दूर क्षेत्र से पानी भर कर लाती महिलाएं।

महिलाओं का कहना है कि सुबह शाम उन्हें लाइन लगाकर पानी भरना पड़ता है। हैंडपंप में पानी को लेकर विवाद की भी स्थितियां बन जाती हैं। वहीं उन्हें ऊपरी मंजिल में पानी से भरी बाल्टी चढ़ाने में भी परेशानी होती है।

काशीराम कॉलोनी के निवासी श्याम बाबू त्रिपाठी, कल्लू, विकास, कैलाश और रानी आदि लोगों ने बताया कि बीते एक सप्ताह से कॉलोनी में पेयजल संकट है। इसके कारण लोगों को काफी परेशानियां हो रही हैं।

इस गाँव में 4 महीनों से नहीं आया पानी

बड़ोखर ब्लॉक के गाँव मोहनपुर में लगभग 45,100 की आबादी है। यहां के हर घर में सप्लाई वाले पानी की टोटी लगी हुई है, जब से सप्लाई वाले पानी की टोटी लगी तब से लोगों ने कुएं से पानी भरना छोड़ दिया था, लेकिन पिछले साल के गर्मी के मौसम से ही लोग पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं।

गाँव में लगे हैंडपंप से ही लोग किसी तरह से अपना गुज़ारा कर रहे हैं। कई बार लोग निजी ट्यूबवेल से पैसा देकर भी पानी मंगवाते हैं। लोगों ने इस मामले को लेकर शिकायतें भी की लेकिन अब तक कोई भी सुनवाई नहीं हुई है।

दूर क्षेत्र के सरकारी हैंडपंप से पानी भर कर लाने को मज़बूर महिलाएं।

जहां लोगों को भरपूर पानी मिलता है। वह उसे व्यर्थ ही बहाते हुए नज़र आते हैं। वहीं कई गाँव ऐसे हैं, जहां लोग बूंद-बूंद पानी इकठ्ठा कर उसे हफ्तों तक चलाते हैं, क्योंकि उन्हें पानी की उचित व्यवस्था मुहैया ही नहीं कराई गई है। ऐसे में सरकार का दावा करती नल जल योजना, बांध परियोजनाएं झूठ से ज़्यादा और कुछ नज़र नहीं आती हैं।

पानी की कमी से जुड़े तथ्य और रिपोर्ट

बिज़नेस स्टैंडर्ड की 18 मार्च, 2021 की प्रकाशित रिपोर्ट में यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रन एमर्जेन्सी फंड (यूनिसेफ़) के एक विश्लेषण के अनुसार, भारत में 2 करोड़ से अधिक बच्चे अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं।

अत्यधिक जल संकट पानी की कमी के जोखिमों और पेयजल सेवा के निम्नतम स्तरों को दर्शाता है, जो किसी भी आबादी को बहुत सारे पैमानों पर प्रभावित करता है।

दूर क्षेत्र से पानी भर कर लाती छोटी बच्ची।

विश्लेषण के अनुसार, जहां पानी की कमी है, वहां लोगों को पानी इकठ्ठा करने में न्यूनतम 30 मिनट का समय लगता है। एक अध्ययन में कहा गया है कि ‘पानी की कमी की चपेट में आने वाले 111,891,688 बच्चों में से 20,478,554 बच्चे अत्यधिक पानी का संकट झेल रहे हैं। वहीं 91,413,134 बच्चे उच्च पानी के संकट का सामना कर रहे हैं।’

दूर क्षेत्र से अपने घर के लिए पानी भर कर लाता 14 वर्षीय पंकज।

यूनिसेफ इंडिया के प्रतिनिधि यास्मीन अली हक के अनुसार, पानी की कमी से प्रभावित परिवारों में विशेषकर महिलाओं और बच्चों के लिए रोज़मर्रा की ज़िन्दगी बहुत मुश्किल हो जाती है। महिलाओं और लड़कियों का पूरा दिन पानी भरने में ही निकल जाता है, जो उनकी शिक्षा और काम के अवसरों को बाधित करता है।

इसके साथ ही यह बच्चों में जलजनित (पानी की कमी से पैदा हुई बीमारी) बीमारियों को उजागर करती है। जलजनित बीमारियों में डायरिया, पोलियो, टाइफाईड आदि मुख्य रूप से शामिल हैं।

जीवन देती नदियां भी अब हो रहीं मृत

यूपी का बुंदेलखंड सूखे के लिए ही प्रसिद्ध है। यहां की महिलाओं का मुख्य काम दिन भर सिर पर पानी को इकठ्ठा करके ढोकर लाना है। इसके लिए वह चार से पांच किलोमीटर का सफर तय करती हैं। पानी ढोने को महिलाओं का काम बना दिया गया है।

पानी की स्थिति को लेकर बुंदेलखंड में एक कहावत भी है कि “लेट द हस्बैंड डाई बट द अर्थन पॉट ऑफ़ वॉटर शुड नॉट भी ब्रोकन यानि  ‘गगरी ना फूटे, चाहे खसम मर जाए।” यह कहावत साफ तौर पर राज्य के क्षेत्रों में पानी को लेकर लोगों की दयनीय स्थिति को चित्रित करता है।

बांदा क्षेत्र की केन नदी।

फाइनेंसियल एक्सप्रेस की 23 सितम्बर, 2020 की रिपोर्ट के अनुसार,  50% से अधिक आबादी के पास सुरक्षित पेयजल की पहुंच नहीं है। इसके साथ ही पानी की कमी की वजह से हर साल लगभग 200,000 लोगों की मौत हो जाती है।

खबर लहरिया ने हाल ही में बांदा में बहती केन नदी पर रिपोर्टिंग भी की थी। केन नदी बुंदेलखंड की जीवनदायिनी है। बांदा ज़िले के लोग और यहां का व्यवसाय सिर्फ केन नदी पर आश्रित है लेकिन यह और इसके जैसी नदियां जैसे बागेन नदी इस समय गायब होने की कगार पर आ गई है।

अवैध खनन और पानी की व्यवस्था की कमी लोगों को हमेशा ही पानी की कमी की चुनौती देती आई है पर इसके बावजूद भी ना तो प्रशासन की आंख खुली और ना ही सरकार की।

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