Site icon Youth Ki Awaaz

कोरोना काल में बदलावों की एक पाठशाला

हर इंसान एक सपना ज़रूर देखता है। ऐसे ही मेरा सपना है, एक सच्चा इंसान बनना और ज़रूरतमंदो की यथा सम्भव मदद करना। वहीं मुझे लगता है, ज़रूरतमंदो की मदद के साथ ही साथ उन्हें जागरूक करना भी ज़रूरी है।

इसी उद्देश्य को लेकर बदलावों की पाठशाला का सफर शुरू होता है।

कलम की बजाए कंचों से खेलते बच्चे

जब 07 अक्टूबर 2021 को शाम 4:30 बजे, मैं काशीराम आवासीय कॉलोनी, घसायपुरा बरुआसागर ज़िला झाँसी में अपने मित्र से मिलने जाता हूं, तो वहां देखता हूं कि जिन बच्चों के हाथ में कलम होना चाहिए, वो कंचों से खेल रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि वो किस कक्षा में पढ़ते हैं? क्योंकि काफी समय से वे स्कूल भी नहीं गए।

थोड़ी देर मैं भी उन सभी को खेलते देखता रहा, वहीं पास में एक शांत स्वभाव का बालक भी उन्हें खेलते हुए देख रहा था। फिर पता चला कि ये बच्चे 5 -10 रुपये का दाव लगा कर खेल रहे हैं।

खेल पूरा होते ही बच्चों का थोड़ा ध्यान मेरी ओर हुआ, तब मैंने कहा, “मैं अपने दोस्त से मिलने आया हूं।” फिर वो पुनः अपने खेल में मस्त हो गए और वो शांत स्वभाव का बालक अपने घर जाने लगा, तो मैं भी साथ चल दिया।

पढ़ने की उम्र में भीख मांगते बच्चे

बालक से बात बातचीत शुरू कि तो पता चला, वह कक्षा 6 का छात्र है, उसे अंग्रेज़ी पढ़ना नहीं आता, क्योंकि वह कक्षा 1 से 5 तक सरकारी विद्यालय में पढ़ा है।

अगले दिन सुबह मैं मंसिल माता के मंदिर गया, वहां कुछ घुमक्कड़ प्रवृत्ति के बच्चे, दर्शन करने आने वालों से भीख मांगते हुए दिखाई दिए।  इनमें से कुछ बच्चे जाने – पहचाने लगे, क्योंकि शाम को मैंने इन बच्चों को काशीराम आवासीय कॉलोनी घसायपुरा में देखा था।

तभी ये बच्चे मुझसे भी पैसे मांगने लगे, तो मैंने कहा, “पढ़ना हो तो बताओ?” तो उनमें से एक बच्ची बोली “हां” और सब बच्चे उस बच्ची को मुझसे दूर ले गए।

कोरोना काल में छूटा स्कूल

शाम को फिर मैं आवास गया, तो बच्चे मुझे देखकर छिप रहे थे, फिर मैंने वहां उनके माता-पिता से बात करने की कोशिश की मगर बच्चों के माता-पिता अपने अपने काम पर गए हुए थे।

फिर बच्चों से बात कि तो पता चला कि कुछ बच्चे तो स्कूल ही नहीं जाते, क्योंकि कोरोनाकाल में उनके स्कूल छूट गए हैं। उनमें से  कुछ तो 7-8 साल के हैं, जो  कभी स्कूल गए ही नहीं और कुछ 5वीं पास कर चुके थे लेकिन 6वीं में दाखिला ही नहीं हुआ।

फिर आते समय बच्चों से पूछा  “पढ़ना है?” तो बच्चे बोले “हां।”

पाठशाला की शुरुआत

इसके बाद दूसरे दिन शाम 4 बजे से पाठशाला का समय तय हुआ और मैं समय पर पहुंच गया पर वहां एक भी बच्चा नहीं आया लेकिन  4:30 बजे तक बच्चे आने लगे  उनके पास कॉपी, पेन्सिल जैसी आधारभूत चीज़ें भी नहीं थी।

कुछ बच्चे फटी-पुरानी कॉपी लेकर तोआए मगर ये बच्चे पढ़ना-लिखना भूल चुके थे।

फिर मैंने बच्चों के  माता-पिता से मिलने का विचार किया लेकिन  बच्चों ने बताया, उनके माता-पिता काम पर जाते हैं और देर रात को घर आते हैं लेकिन मंगलवार को काम पर नहीं जाते हैं।

अगले दिन मैं कॉपी-पेन्सिल साथ ले गया और उन्हें दे दी मगर फिर उसके अगले दिन बच्चे आए ही नहीं। फिर मैंने उनके माता-पिता से बात की और मिलने के बाद सुचारू रूप से पाठशाला में बच्चों को आने के लिए बोला।

12 अक्टूबर 2021, मंगलवार को शबनम की मम्मी से मिला, तो पता चला कि उनके एक भी बच्चे स्कूल नहीं जाते और उन्होंने बताया कि हम बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन हम लोगों की आर्थिक स्थिति सही नहीं है!

साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि हमारी कॉलोनी के बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। तब मैंने उन्हे बताया कि मैं और मेरी टीम उन सभी बच्चों को फ्री कोचिंग देगी।

‘बदलाव’ हेल्पिंग डेस्क

16 अक्टूबर को मंसिल माता मन्दिर के प्रांगण में ‘बदलावो’ की एक हेल्पिंग डेस्क लगाई और कोरोना महामारी में स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ने और फ्री कोचिंग देने हेतु एक पहल शुरू की गई, वहीं इस पहल को नाम दिया गया ‘बदलावों की पाठशाला।’

20 अक्टूबर 2021 से नियमित रूप से बदलावों की पाठशाला चल रही है। पाठशाला में प्रतिदिन छात्र-छात्राओं की संख्या बढ रही हैं। अभी 17 लड़कियां और 5 लड़के है।

हमारी पाठशाला ज़्यादा-से-ज़्यादा लड़कियों की शिक्षा के लिए काम करेगी, क्योंकि हमारे बुन्देलखण्ड में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को पढ़ाने को ज़्यादा प्राथमिकता दी जाती है। आखिर, कब तक बच्चों में भेदभाव किया जाएगा?


 

Exit mobile version