इस योजना से मिलने वाले रोज़गार को लेकर अख़बारों में तीन आँकड़े हैं। तीनों अमर उजाला में छपे हैं। जानकारों के नाम पर दिए जाने वाले रोज़गार के आंकडों की कोई विश्वसनीयता नहीं होती क्योंकि उनका न चेहरा होता है और न नाम छपता है। अमर उजाला ने 2019 में छापा था कि इस प्रोजेक्ट से सात लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा। फिर हाल में छापा कि साढ़े पाँच लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा। ढाई लाख रोज़गार केवल ख़बर छपने के दौरान कम हो गए। अब जो सरकारी विज्ञापन आया है उसमें रोज़गार की संख्या एक लाख बताई जा रही है। किस तरह के रोज़गार होंगे इसकी कोई जानकारी नहीं हैं। कम पैसे में रखे जाने वाले सुरक्षा गार्ड होंगे या पोर्टर होंगे। इस तरह का कोई वर्गीकरण नहीं होता है। केवल एक लाख रोज़गार बताया जाता है।
पिछले साल अक्तूबर में नितिन गड़करी ने असम में मल्टी मॉडल लॉजिस्टक पार्क का शिलान्यास किया था। यह योजना सात सौ करोड़ की बताई गई है। मंत्री ने ऑन रिकार्ड कहा है कि इससे बीस लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा। अब आप दिमाग़ लगाए, बस एक पल के लिए उसके बाद राजनीति में धर्म और तीर्थयात्रा की बात करने चले जाइयेगा।
नोएडा में बन रहा एयरपोर्ट कभी पाँच हज़ार तो कभी दस हज़ार करोड़ का बताया जाता है। हो सकता है इससे ज़्यादा हो। लेकिन रोज़गार एक लाख ही पैदा होंगे। दस हज़ार करोड़ के प्रोजेक्ट से एक लाख रोज़गार और सात सौ करोड़ के प्रोजेक्ट से बीस लाख रोज़गार?
समझे ? बिल्कुल मत समझिए।
धर्म की बात कीजिए। तीर्थयात्रा का टिकट कटाई और मस्त रहिए।
बस किसी से न कहें कि आप बेवकूफ भी हैं। बताने की कोई ज़रूरत नहीं है।