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चम्पारण में माता सीता ने किया था छठ महापर्व

आज बिहार आने वाली ट्रेन में भारी भीड़ है। लोग जैसे तैसे बिहार आ रहे हैं, फर्स्ट क्लास से नीचे पैर ना रखने वाले लोग भी थर्ड क्लास और स्लीपर में बैठने को तैयार हैं। आखिर छठ पूजा में घर जाना जरूरी है। ये एक ऐसा पर्व है, जो पूरा बिहार एक साथ मिल कर मनाता है। जात-पात के ठेकेदारों के चेहरे पर भी छठ महापर्व जोरदार तमाचा मारता है। जब एक ही घाट पर सारे जाति के लोग छठ की पूजा करते हैं और एक ही नदी या जलाशय में सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। मुझपर छठी मइया की कृपा मेरे जन्म से पहले शुरु हो गई थी आखिर मेरी नानी ने मुझे उनसे जो माँगा था। वैसे तो मैं किसी भी देवता या भगवान के अस्तित्व पर भरोसा नहीं कर पाता लेकिन छठी माई के बारे में ऐसा सोचना भी मुझे गँवारा नहीं है। छठ में लोग अलग अलग तरह की मन्नतें मांगते हैं। सिर्फ व्रत करना ही नहीं, कुछ लोग धोती चढ़ाते हैं, तो कुछ लोग लेट कर घाट जाते हैं। इस महापर्व में कोसी का भी बड़ा महत्व होता है। बिहार में अगर किसी भी घर मे पूरे साल में कुछ भी शुभ कार्य जैसे शादी-व्याह, यगोपवित संस्कार या नए घर में आगमन हुआ तो वो छठ में कोसी भरते हैं। मैं चम्पारण का रहने वाला हूँ और हर महाकाव्य या ऐतेहासिक कार्य में योग्यदान जैसे हमारे चम्पारण का भी छठ महापर्व में बहुत बड़ा योग्यदान है।

चम्पारण में माता सीता ने किया था छठ महापर्व 

जब भगवान राम महान पंडित लंकाधिपति रावण का वध कर के वापस अयोध्या धाम लौटें, तब अयोध्या में कुछ लोगों के मन की शंका दूर करने हेतु माता सीता ने वाल्मीकि आश्रम जाने का निश्चय किया। वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार ऐतेहासिक नगरी मुंगेर के “सीता चरण” में माता सीता ने भारत नेपाल बॉर्डर स्थित नारायणी नदी के तट पर रह कर 6 दिनों की छठ पूजा की, जिसके बाद बिहार में छठ महापर्व की शुरुआत हुई। हिमालय से निकल कर नेपाल के रास्ते पटना के पास गंगा में समाहित होने वाली नारायणी नदी का जिक्र पुराणों और गर्न्थो में भी है, आज भी नारायणी नदी के तट पर लव-कुश घाट मौजूद है, जहाँ हर साल हज़ारो श्रद्धालु छठ महापर्व के लिए आते हैं। वाल्मीकिनगर से लेकर सोनपुर तक नारायणी के तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि नारायणी के तट पर छठ पूजा करना उत्तम होता है।

महाभारत काल में  भी है नारायणी  का जिक्र 

हिमालय से निकल कर नेपाल के रास्ते पटना के पास गंगा में समाहित होने वाली नारायणी नदी का जिक्र आदि काल के महाभारत जैसे पुराणों और ग्रन्थों में भी है। जरासंध वध के बाद पांडवो ने भी इसी नारायणी में स्नान किया था।

इसी नदी में गज और ग्राह का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, जिसमें गज (हाथी ) के पुकार पर भगवान कृष्ण ने आकर गज की जान ग्राह (घड़ियाल) से बचाई थी। नेपाल भारत बॉर्डर पर नारायणी नदी के पास का मंदिर चम्पारण के हिन्दू कथाओ में होने का प्रमाण देती है।

आज़ादी की लड़ाई से लेकर रामायण और महाभारत जैसे  हिन्दू पौराणिक कथाओ तक सबमे चमपारण का जिक्र होना चम्पारण के लिए बहुत ही गर्व  की बात है।

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