नवरात्र को हम एक ऐसे त्यौहार के तौर पर मनाते हैं, जिसका सार बुराई पर अच्छाई या कहें सच्चाई की जीत है। यूं भी हमारा देश, विविध धर्म और संस्कृति का देश है, जहां हर तीज-त्यौहार का अपना महत्व और मेल-मिलाप है लेकिन अब इनमें खटाई पड़ने लगी है।
हाल ही में मप्र के इंदौर से ऐसी ही घटना सामने आई है, जहां एक गरबे कार्यक्रम से कुछ लोगों को सिर्फ इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि वे गैर हिन्दू यानि मुस्लिम हैं।
यूं तो क्या देश, क्या प्रदेश अब हर तरफ इस तरह की घटनाएं आम हो गईं हैं लेकिन क्या ऐसा किया जाना वाजिब था?
क्या है पूरा मामला?
मप्र के इंदौर में एक प्राइवेट कॉलेज द्वारा नवरात्र में गरबे का आयोजन किया गया था, जिसमें पास यानि 250-500 रुपये के देकर लोग शामिल हुए और इनमें अधिकतर कॉलेज स्टूडेंट ही थे।
मगर कार्यक्रम के दौरान हिन्दू संगठन यानि बजरंग दल के कुछ लोग वहां पहुंच गए और लोगों को पहचान के आधार पर बाहर कर दिया।
मतलब, पहले मुस्लिम स्टूडेंट्स को नाम के आधार पर अलग किया गया, फिर चार मुस्लिम स्टूडेंट्स को यह कहकर थाने फिर जेल भेज दिया गया कि तुम लव-जिहाद फैला रहे हो।
पुलिस का लव जिहाद की बात से इनकार
वहीं, एडिशनल एसपी डॉ. प्रशांत चौबे ने कहा कि मल्हारगंज एसपी की अनुमति से कार्यक्रम आयोजित किया गया था लेकिन वहां भीड़ ज़्यादा थी यानि 5000 से ज़्यादा लोग थे, इसलिए धारा 188 के तहत कार्रवाई की गई और संचालक को गिरफ्तार किया गया।
वहीं, एसपी प्रशांत जैन ने कहा, “गरबा के दौरान भीड़ ज़्यादा थी और कुछ युवकों में विवाद की स्थिति बनी, जिसमें पुलिस ने प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की और चार लड़कों को अरेस्ट किया, जिन्हें बाद में एसडीएम कोर्ट भेजा गया और ज़मानत भी दे दी गई।” उन्होंने किसी भी तरह के लव-जिहाद के मामले से इनकार किया है।
बजरंग दल का बयान पुलिस से एकदम उलट
इस मुद्दे पर इंदौर बजरंग दल के अध्यक्ष तनु शर्मा का कहना है कि गरबा आयोजन में हज़ारों मुस्लिमों को पास के माध्यम से परमिशन दी गई। पैसे कमाने की सोच से लव-जिहाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
वो आगे कहते हैं, “कार्यक्रम में लव जिहाद को बढ़ावा देने के लिए बड़ी मात्रा में मुस्लिम समुदाय के लोग मौजूद थे। हमारी हिंदू बहनें वहां गरबा करने आई थी, कहीं ना कहीं इस तरह के आयोजनों से लव जिहाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। बजरंग दल इस तरह के आयोजनों का पुरज़ोर विरोध करता है। इस तरह के कार्यक्रम कहीं भी होंगे, तो बजरंग दल अपनी शैली में जवाब देगा, वह इस तरह के कार्यक्रमों को बंद करवाएगा।”
क्या गरबा देखना गुनाह है?
स्टूडेंट्स के परिजनों का कहना है कि उनके बच्चों को कार्यक्रम में बुलाया गया था लेकिन देर रात विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के लोगों ने मिलकर हंगामा किया। गैर-हिन्दू, यानि मुस्लिम स्टूडेंट्स को ढूंढ-ढूंढकर अलग किया गया, फिर उन्हें गाँधी नगर थाने में दे दिया।
गिरफ्तार हुए अदनान के चाचा साजिद कहते हैं कि हम रातभर थाने के बाहर खड़े रहें। सुबह बच्चों को एसडीएम कोर्ट में पेश किया गया और वहां बच्चों को जेल भेज दिया गया।
वो आगे कहते हैं, “क्या मैं जान सकता हूं बच्चों को जेल क्यों भेजा गया?क्या भारत के संविधान में किसी कॉलेज कार्यक्रम में जाना भी ज़ुर्म है?”
हम इस सोच के साथ कब तक चल सकते हैं?
ये तो हुई खबर, जिसके कई और खबरों की तरह ही अपने कई पहलू हैं। कॉलेज, प्रशासन, कानून वगैरह-वगैरह! लेकिन विचारणीय क्या है? खुद से प्रश्न ज़रूर कीजिए।
एक ऐसा देश, एक ऐसी संस्कृति, जिसे हम गर्व से पढ़ते-पढ़ाते हैं कि विविधता में एकता हमारी खासियत है लेकिन आज उस एकता को यह कौन-सी दीमक चाट जाने को आतुर है।
आप कहिएगा नहीं, अब देश का माहौल बदल गया है, हम किसी पर विश्वास नहीं कर सकते और यदि ऐसा है, तब आप राजनीति और मीडिया पर विश्वास क्यों करते हैं?
आपने अब तक उसे सिरे से खारिज़ क्यों नहीं किया? और कितने ही ऐसे उदाहरण आपको मिल जाएंगे, जहां हिन्दू खुशी से सेवई खाते और मुस्लिम नवरात्र का पंडाल सजाते मिल जाएंगे और यह होता ही है, वर्ना कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कभी साथ नहीं रह पाता।
ऐसे में एक धार्मिक उल्लास के लिए किए जा रहे गरबे में लव जिहाद कहां से आ गया? यदि ऐसा ही है, तो हमारे संविधान ने हमें अपनी मर्ज़ी का जीवनसाथी चुनने का अधिकार क्यों दिया है?
वहीं, हर बात को यदि आप और हम हिन्दू-मुस्लिम से जोड़ने बैठ जाएंगे, तो यकीन मानिए एक समाज, एक देश के तौर पर हम सबसे ज़्यादा असफल होंगे।
एक संस्था, फिर भले ही वो हिंदूवादी हो या मुस्लिम! यदि वो आपके प्रेम, आपके कुछ भी खाने-पीने, पहनने, देखने की क्षमता को कंट्रोल कर रही है, तब वह दिन दूर नहीं जब आप अपने बच्चों को इन संस्थाओं से भी बचाने लगेंगे, क्योंकि ये उन्माद के अलावा कुछ नहीं दे सकते, कट्टरता के अलावा कुछ नहीं रच सकते!
यदि किसी कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय को सिर्फ इसलिए जाने से रोका जा रहा है कि वे वहां लव-जिहाद को बढ़ावा दे रहे हैं, तब सबसे पहला फरमान हिंदी के मुस्लिम कवि रसखान को जारी किया जाना चाहिए, क्योंकि इस लिहाज से वो लव जिहाद के सबसे बड़े दोषी हुए, जिन्होंने मुस्लिम होकर भी कृष्ण से अगाध प्रेम किया और यह कोई एक नाम नहीं है, ऐसे कितने ही नाम हैं और होते रहेंगे।
वहीं, ऐसी किसी भी घटना पर हमें मीडिया और प्रशासन से ज़्यादा समाज का रवैया देखने की ज़रूरत है कि जब मुस्लिम लड़कों को पकड़ा जा रहा था, तब गैर मुस्लिम स्टूडेंट्स का रवैया क्या था?
क्या उन्होंने इन धर्म के ठेकेदारों को रोकने की कोशिश की थी? क्या किसी ने उन्हें ये कहा था कि ये हमारा अधिकार है कि हम क्या देखें, क्या नहीं? या कभी ऐसा ही किसी हिन्दू के साथ होता है, तो मुस्लिम उसे कैसे देखते हैं?
यह देश, इसकी संस्कृति, इसके त्यौहार सबके हैं, फिर ये अधिकार किसी एक का कैसे हो सकता है? आप जिस राजनीति और सोच के कीचड़ में फंसकर इन सबका समर्थन कर रहे हैं, वो आपको उन्माद और वैचारिक मतभेद के अलावा कुछ भी नहीं दे सकती।
पुछिए कभी खुद से कि क्या वाकई आप अपनी आने वाली नस्लों को यही देना चाहते हैं? और ऐसे ही चलता रहा, तो किसी दिन कोई आपसे अब्दुल कलाम आज़ाद बनने का सपना भी छीन लेगा और आप जब कहिएगा ऐसा क्यों? तब कहा जाएगा, “तुम हिन्दू हो जिहाद फैला रहे हो।”