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‘काली नदी’ से पैदा हो रहे केमिकल और कैंसर के लिए ज़िम्मेदार कौन?

'काली' नदी से पैदा हो रहे केमिकल और कैंसर के लिए ज़िम्मेदार कौन है?

भारत में नदियां सदा ही पूजनीय रही हैं फिर चाहे बात गंगा नदी की हो, यमुना की या फिर किसी अन्य नदी की। हमारे देश में बहुत नदियां हैं और इन पर हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग आश्रित रहता है, तब इनको साफ-सुथरा बनाए रखने की ज़िम्मेदारी भी हमारी ही होनी चाहिए। ये बड़ी नदियां छोटी-छोटी नदियों से मिलकर ही बनती हैं, जिन्हें हम सहायक नदियां कहते हैं।

मुज़फ्फरनगर (अंतवाड़ा) से बहती काली नदी

ऐसी ही एक नदी है ‘काली’ जिसका उद्गम उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के गाँव अंतवाड़ा से होता है। काली नदी गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में आती है लेकिन जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही यह काली नदी आज पूर्णरूप से सूख चुकी है।

इसमें थोड़ा बहुत, जो पानी बचा है, वह मेरठ क्षेत्र में है, जो कि पूरी तरह से केमिकल युक्त है। सरकारी अमला इसको साफ करने में लगा हुआ है लेकिन सुधार तभी हो पाएगा, जब कुछ ठोस कदम उठाए जाएं।

इस नदी में केमिकल की मात्रा इतनी बढ़ी हुई है कि आस-पास के गाँव में कैंसर पहुंच गया है। वो हैंडपंप जिन के अंदर आर्सेनिक (पानी में मिला एक तरह का रासायनिक पदार्थ) की मात्रा ज़्यादा है, उन पर लाल निशान लगाए जा रहे हैं कि इनका पानी ना पिएं।

केमिकल फैक्ट्रियां इसकी एक बड़ी वजह

यह एक चिंता का विषय है कि सरकार जानती है कि ‘काली नदी’ के किनारे बसे कुछ गाँवों में कैंसर पहुंच गया है लेकिन उसकी तरफ से इसे रोकने के अब तक कुछ खास इंतज़ाम देखे नहीं जा रहे हैं।

ऐसे में सबसे बड़ी ज़रूरत उन केमिकल फैक्ट्री और पेपर मिलों पर नकेल कसने की है, जो नदी किनारे लगी हुईं हैं और अपना कूड़ा और केमिकल वेस्ट ‘काली’ नदी में प्रवाहित कर रही हैं। मेरठ, उत्तरप्रदेश के किला परिक्षितगढ़ में काली नदी किनारे बसे गाँवों में, जब मैं पहुंचा तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं।

क्या आप ऐसा पानी पीना पसंद करेंगे, जिसमें बदबू आती हो?

इस नदी के किनारे के एक गाँव गांवड़ी में पानी का रंग मटमैला हो चुका है और यह बरसात का पानी मिलने से नहीं हुआ है बल्कि इसलिए हुआ है, क्योंकि इसमें हानिकारक केमिकल घुल चुके हैं। क्या आप ऐसा पानी पीना पसंद करेंगे, जिसमें बदबू आती हो या जिसमें तेल पानी के ऊपर ही तैरता हो? नहीं ना! लेकिन इस गांवड़ी के निवासी ऐसा पानी पीने को मज़बूर हैं।

काली नदी के कारण प्रदूषित हुआ गांवड़ी गाँव का पानी।

गाँव वासियों से बातचीत करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि हैंडपंपों का पानी एकदम बेकार है लेकिन मुझे उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ, तो मैंने स्वयं नल चलाकर एक बोतल में पानी भरकर देखा मगर देखते-ही-देखते मटमैले रंग के पानी से पूरी बोतल भरने लगी और जब मैंने उसे सूंघ कर देखा तो सचमुच पानी से दुर्गंध आ रही थी और जिस पानी को हम पीने का भी नहीं सोच सकते, वो पानी ये गाँव वाले पी रहे हैं! यह सोचकर मुझे बहुत दुख हुआ।

आरओ भी पानी को साफ रखने में नाकाम

गांवड़ी के 18 वर्षीय विनय चपराना ने बताया कि पानी में से दुर्गंध आती है और पानी पीने लायक नहीं हैं। हैंडपंपों के पानी में रेत घुल चुकी है। ऐसे में लोगों ने विज्ञान का सहारा लेने का सोचा और अपने घरों में आर.ओ लगवाए लेकिन वहां का पानी इस कदर खराब हो चुका है कि 6 महीने से कम में ही उसकी सफाई करवानी पड़ती है। वहीं लोगों के घरों की छतों पर रखी टंकियों के अंदर एक मोटी परत जम चुकी है, जिसे साफ करना इतना आसान नहीं हैं।

गंदे पानी से पनप रही हैं बीमारियां

विनय बताते हैं कि इस पानी को पीने की वजह से कई प्रकार की बीमारियां गाँव में पनप रही हैं। गाँव के हर तीसरे घर में किसी-ना-किसी को पानी से संबंधित रोग हैं जैसे शरीर पर एलर्जी, गले में खराश और यहां तक कि अब लोगों को कैंसर तक होने लगा है।

इसी बीच विनय ने एक बात ऐसी भी बताई, जिसे सुनकर मेरी रूह कांप गई। उसने मुझे बताया कि लंग कैंसर की वजह से अब तक गाँव में 2-3 मौतें भी हो चुकी हैं। जी हां, नदी में बढ़ते प्रदूषण से लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं।

कैंसर जैसे गंभीर रोग से जूझ रहे हैं गाँववासी

गाँव के अन्य लोगों से संवाद करने पर मुझे पता चला कि गाँव में कई सर्वे होते हैं। सरकारी भी व गैर सरकारी भी लेकिन उन सर्वों का क्या हुआ? किसी को कुछ नहीं पता शायद बाकी सर्वों की तरह गाँव में हुए यह सर्वे भी कागज़ों में ही सिमट कर रह गए हों।

विनय ने बताया कि काली नदी किनारे नगर निगम मेरठ अपना कूड़ा फेंकता है और आसपास की मिलों का केमिकल वेस्ट भी इसमें ही प्रवाहित किया जा रहा है इसलिए इसकी यह स्थिति है और हमारा गाँव बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।

गाँव की ही एक महिला संतोष, जिनके 48 वर्षीय पति की हाल ही में लंग कैंसर से मृत्यु हुई है, वो बताती हैं कि उनके गले में भी इन्फेक्शन है, छाती में गांठें पड़ चुकी हैं। कई डाक्टरों से इलाज करवाया लेकिन ठीक नहीं हो रहा है। इसके साथ ही उनके दोनों लड़कों को खराब पानी पीने की वजह से कई बीमारियां हो चुकी हैं, छोटे बेटे को पेट में पथरी हो चुकी है व बड़े को भी पेट के रोग ने जकड़ा हुआ है।

हैंडपंप से निकले प्रदूषित पानी को दिखाते हुए।

जलवायु परिवर्तन व नदी प्रदूषण की वजह से अपने पति को खो चुकीं संतोष आगे बताती हैं कि पहले उन्हें बाहर से बिसलेरी पानी लाना पड़ता था। कभी सामने वाले घर से पानी लाना पड़ता था लेकिन अब उन्होंने फिल्टर लगवा लिया है मगर वह ज़्यादा दिन नहीं चल पाता है। बहुत कम समय में ही वह खराब हो जाता है।

हमें फिल्टर को बार-बार ठीक करवाना पड़ता है। संतोष के बड़े बेटे ने बताया कि हर एक-डेढ़ महीने में उनकी पानी की टंकी में एक सीमेंट जैसी मोटी परत जम जाती है, जिसे साफ करना भी एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने बताया कि हाल ही में उनके पिताजी का देहांत हुआ है, जिसका कारण डॉक्टर ने लंग कैंसर बताया था। उनके पिता के गले में और छाती में गांठ पड़ गई थी, इसका कारण वो गाँव का गंदा पानी ही बताते हैं।

कुछ वर्षों के भीतर ही काली पर बसे गाँव इस कगार पर पहुंच गए

संतोष के छोटे बेटे, जिसकी उम्र करीब 22-23 साल है, उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि यह स्थिति बचपन से ही है। अभी पिछले कुछ वर्षों में ही नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि ऐसे भयंकर रोग ना केवल हमारे गाँव में बल्कि आसपास के गाँवों में भी पैदा हो रहे हैं। उन्होंने सरकार से अपील की है कि इसको लेकर ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में कोई ओर मौत खराब पानी पीने की वजह से ना हो।

गांवड़ी के लोगों से बातचीत करने के बाद यानि उनकी दयनीय स्थिति को समझने के बाद, मैं पहुंचा काली नदी किनारे ही बसे एक और गाँव छिलौरा, जहां पर भी लोग काली नदी के प्रदूषण से ग्रसित हैं।

छिलौरा गाँव के निवासी स्वयं करवा रहे हैं बोरिंग

इस गाँव का भूमिगत जल पूरी तरह प्रदूषित है। लोगों ने सरकारी हैंडपंपों से पानी पीना ही बंद कर दिया है, क्योंकि उनके अनुसार, इन हैंडपंपों का पानी 120 फीट से आ रहा है लेकिन फिर भी वे प्रदूषित पानी पीने को मज़बूर हैं। ऐसे में लोग खुद ही पैसे खर्च करके अपने घरों में 180 फीट तक बोरिंग करवाकर सबमर्सिबल पंप से पानी पी रहे हैं।

गाँव के प्रधान मनीष कुमार के भाई संदीप से बातचीत की तब पता चला कि इस गाँव में भी पानी की गुणवत्ता इतनी खराब है कि लोग परेशान हैं। अब गाँव में स्वयं ही सबमर्सिबल पंप लगवाकर उससे पानी पीने को मज़बूर हैं। उन्होंने बताया कि गाँव के कुछ हैंडपंपों से इस कदर गंदा पानी आता है कि उसको पीने का कोई सोच भी नहीं सकता।

हैंडपंप से पानी निकालते हुए।

नदी में बढ़ते प्रदूषण की वजह से छिलौरा का पानी भी एकदम खराब हो चुका है और यहां 7-8 मौतें कैंसर से हुईं हैं। वो आगे बताते हैं कि जबसे काली नदी में कैमिकल वेस्ट छोड़ा जाने लगा है, तब से ही आसपास के गाँवों का पानी खराब हुआ है वरना पहले तो इस नदी का पानी लोग पीते थे और इसमें नहाते भी थे।

केमिकल वेस्ट को मिलने से रोकना होगा  

उन्होंने आगे बताया कि हाल ही में सरकार द्वारा इसकी सफाई कराई गई है, अब इसमें इतना साफ पानी छोड़ दिया जाए कि नदी में नीचे जमी गंदगी साफ हो जाए लेकिन उन्होंने एक बात और कही, जो कि वाज़िब भी है कि स्वच्छ पानी तो इसमें छोड़ा जाए लेकिन उसके बाद किसी भी फैक्ट्री का कैमिकल वेस्ट इसमें ना मिलने दिया जाए, क्योंकि यदि फिर से ऐसा हुआ तो इतनी साफ-सफाई इसमें करवाई जा रही है, वो सब व्यर्थ हो जाएगी।

वहीं छिलौरा गाँव की निवासी ममता बतातीं हैं कि सरकारी हैंडपंपों के पानी से बदबू आती है, स्वाद भी अच्छा नहीं है और पानी में पीलापन भी आता है। वो आगे कहती हैं कि 21 वर्ष पहले जब शादी होकर वो इस गाँव में आईं थी, तब पानी बहुत साफ था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ही पानी खराब हो गया है।

गांवड़ी गाँव का सरकारी हैंडपंप।

उनका कहना है कि सरकार के द्वारा हैंडपंप लगवाने के बावजूद 25 हज़ार रुपये देकर हमें अपने घर में सबमर्सिबल पंप लगवाना पड़ा, क्योंकि यहां का पानी खराब है। सरकार से विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हुए उन्होंने कहा कि स्वच्छ पानी पीने के हमारे अधिकार का हनन ना हो, इस पर ध्यान दिया जाए।


नोट: सावन की यह स्टोरी YKA क्लाइमेट फेलोशिप के तहत प्रकाशित की गई है।

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