फेयरनेस क्रीम एक इतनी आम चलन की चीज़ या एक धारणा है, जिस पर हमने कभी ज़्यादा गौर ही नहीं किया। अब भले ही फेयरनेस क्रीम ‘फेयर’ शब्द हटाकर खुद को फेयर (साफ-सुथरा) कह लें मगर जब चेहरे को गोरा करने वाली क्रीम मेरी दोस्त लगाया करती थीं, उस वक्त मैं भी अपनी माँ से कहा करती थी कि मुझे भी ये ही क्रीम लगाना है।
गोरे रंग से कुछ नहीं होगा
लेकिन मेरी माँ ने कभी मेरी बात नहीं मानी, क्योंकि उनका कहना था, “गोरे रंग से कुछ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारी असली काबिलियत, तुम्हारी मेहनत से ही बनेगी, इसलिए अपने रंग को लेकर कोई दुविधा मत पालो।”
वहीं, फेयर एंड लवली फेयरनेस क्रीम से फेयर शब्द अब भले ही हट गया हो लेकिन लोगों के मन से फेयर बहू की चाह नहीं हट रही है।
यह बात बहुत पुरानी है, जिसे आज 10 साल बीत चुके हैं लेकिन आज मैं सोचती हूं कि काश, ये बातें मेरी दोस्त को उसकी माँ ने भी बताई होती, तो शायद उसे वो सब कुछ ना झेलना पड़ता, जो उसने झेला है, क्योंकि सही-गलत की पाठशाला सबसे पहले घर से शुरू होती है, जिसकी शिक्षक एक माँ ही होती है।
सांवले रंग की वजह से ठुकराया गया
मेरी दोस्त हिमांशी की शादी 21 साल की उम्र में ही हो गई थी लेकिन रंग सांवला होने की वजह से शायद हिमांशी नाम उस पर फबता नहीं है। वो अपने घर की सबसे बड़ी बेटी है लेकिन माँ-बाप के अरमानों को तब धक्का लगा, जब हिमांशी के पति ने शादी के बाद उसके सांवले रंग होने के कारण उसे छोड़ दिया।
जबकि, उसकी शादी के लिए माँ-बाप ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यानि कि लड़के वालों की सारी डिमांड को मन से पूरा किया गया, ताकि बेटी को ‘अपने घर’ में कष्ट ना हो, क्योंकि अब वो ‘पराया’ घर छोड़ने वाली थी।
आधुनिकता के युग में आपको ये बातें बेमानी लग सकती हैं लेकिन असलियत इन्हीं बातों में है कि आज भी एक लड़की की डिग्री से ज़्यादा उसके गोरे रंग की परख की जाती है।
मैं तुमसे नहीं! एक खूबसूरत लड़की से प्यार करता हूं
मेरी दोस्त जब शादी के बाद ससुराल पहुंची यानि उसके ‘अपने’ घर! तब उसे अपनापन नहीं, बल्कि परायों से भी ज़्यादा बद्दतर सलूक मिला।
शादी की पहली रात संबंध बनाने के बाद लड़के ने उससे सीधे-सीधे लहज़े में कहा, “मेरी पसंद तुम नहीं हो, क्योंकि तुम सांवली हो। मैं किसी और लड़की से प्यार करता हूं और वो तुमसे ज़्यादा खूबसूरत है।”
वो बताती है कि इन सारी बातों को सुनने के बाद उसने अपनी माँ को कॉल किया था ताकि माँ कोई मदद कर सकें लेकिन शादी का इतना खर्च और ऊपर से बेटी अगर तुरंत घर आकर रहने लग जाए, तब लोगों को क्या मुंह दिखाएंगे? यह सोचकर माँ ने उसे गोरा बनाने वाली क्रीम लगाने का सुझाव तत्काल दे दिया था।
फेयरनेस क्रीम लगाने की नसीहतें दी गईं
उसने बताया कि वो हर रोज़ क्रीम लगाया करती थी ताकि उसका पति उससे ही प्यार करे मगर प्राकृतिक रंगत भला कब बदलती है?
उस क्रीम का कोई असर तो नहीं हुआ मगर उसकी झोली में एक बेटी ज़रूर आ गई, जिसके बाद उसे लगा कि कहीं अब वो (उसका पति) बदल जाए मगर हुआ उसके एकदम विपरीत, एक तो खुद सांवली हो, ऊपर से बेटी और वो भी सांवली ये कहकर उसे घर से ही निकाल दिया गया।
उसके बाद उसके माँ-बाप ने कोशिशें तो कीं कि उनकी बेटी ‘अपने’ घर वापस चली जाए लेकिन ऐसा शुभ दिन उनके जीवन में नहीं आया और आज हिमांशी अपने माँ-बाप के साथ ही रहती है।
मेरी जब उससे बात हुई, तब उसने बताया कि वो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है, ताकि अपनी बेटी को फेयरनेस क्रीम के चोंचलों से दूर रख सके। साथ ही उसे अफसोस इस बात का भी है कि अगर उसकी माँ ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती, तो शायद उसे अपने रंग से इतनी ज़्यादा नफरत नहीं होती।
रंग क्यों है सुंदरता का पैमाना?
हमारा समाज ही काले-गोरे के पैमाने को रचने का काम करता है। आज भी पेपर में और मैट्रिमोनियल साइट्स आदि में ऐसे अनेक विज्ञापन मिलेंगे, जहां लड़का अगर गोरा है, तो गोरी लड़की की ही मांग की जाती है।
लेकिन दोष केवल समाज का नहीं है, क्योंकि गानों की अधिकतर लाइन्स गोरी, गोरिया रे, गोरे-गोरे मुखड़े आदि से ही शुरू होतीं हैं, जिसे लोगों ने सुंदरता का पैमाना बना लिया है।
ऐसे भी दो लोग अगर किसी लड़की के बारे में बात करते हैं, तब सबसे पहला शब्द यही होता है, “लड़की बहुत सुंदर है, गोरी-चिट्टी है।” या “गोरी सुंदर और दुबली-पतली है।”
वहीं, लड़कियों का गोरा होना माता-पिता समेत ससुराल में भी शान की बात होती है, क्योंकि अब बच्चे तो गोरे ही होंगे। जैसे बच्चों को पैदा करने के साथ-साथ रंगत देने का ज़िम्मा भी माँ का ही होता हो?
आज भी सांवले रंग को बदसूरत कहा जाता है
यहां तक कि आज भी गाँव से सटे इलाकों में लोग जब नई बहू अर्थात लड़की देखने जाते हैं, तब लोग कहते हैं कि लड़की काली है, उतनी सुंदर नहीं है। गाँव में भी जब लोग नई बहू को देखने जाते हैं, तब रंग सांवला होने पर कहते हैं कि कनिया का रंग सांवला है।
मेरी दोस्त का मानना है कि रेसिज़्म कभी खत्म नहीं होगा, क्योकि लोग सुंदरता के लिए गोरे रंग को ही पैमाना मानते हैं, जिसे लोगों की आंखों से साफ करना बहुत मुश्किल है।
मुझे अफसोस है कि भले ही अब बाज़ार में क्रीम की मार्केटिंग, फेयर शब्द के बिना हो रही है लेकिन एक शब्द बदल देने से लड़कियों की स्थिति में बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है।
माँओं को सबसे पहले अपनी बेटियों को गोरे चेहरे के दलदल के बारे में बताना चाहिए कि इसमें फंसना कभी ना निकलने जैसा है, ताकि फिर कोई लड़की हिमांशी ना बने।