देश ने 100 करोड़ वैक्सीन लगाने का इतिहास रच दिया है। इस लक्ष्य को पूरा करने में जिन राज्यों ने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है, उसमें उत्तराखंड भी प्रमुख है।
इस इतिहास को रचने से पूर्व ही उत्तराखंड ने अपने सभी नागरिकों को कम-से-कम एक डोज़ देने का शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर लिया था। वास्तव में देश के विकास में उत्तराखंड का हमेशा से विशेष योगदान रहा है।
बात चाहे सैनिक के रूप में सरहदों की रक्षा की हो या फिर पर्यटन को बढ़ावा देने की। इस राज्य का योगदान हमेशा से ही अतुलनीय रहा है लेकिन इसके बावजूद आज भी उत्तराखंड देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा पिछड़ा हुआ है। विशेषकर इसके ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार की आधारभूत बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
इन्हीं में से एक है लमचूला गाँव। उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले से करीब 20 किमी दूर गरूड़ ब्लॉक में स्थित इस गाँव की आबादी लगभग सात सौ है। यहां की अधिकतर आबादी अनुसूचित जाति से संबंध रखती है।
पहाड़ों की गोद में बसे इस गाँव को दो हिस्सों तल्ला लमचूला और मल्ला लमचूला के रूप में जाना जाता है। तल्ला लमचूला जहां पहाड़ की तराई में बसा है, वहीं मल्ला लमचूला पहाड़ों पर है।
अत्यधिक ठंड और बर्फबारी के दिनों में तल्ला लमचूला की अधिकतर आबादी अपने मवेशियों के साथ पहाड़ों की तरफ मल्ला लमचूला की ओर कूच कर जाती है, जहां मवेशियों के लिए आसानी से चारा उपलब्ध हो जाता है। मौसम के सामान्य होते ही आबादी वापस तल्ला लमचूला आ जाती है।
जहां तक बात विकास की है, तो अब भी यहां कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। गाँव में पहुंचने के लिए पूरी तरह से पक्की सड़कें नहीं हैं। अधिकतर सड़कें कच्ची हैं, जो पक्की भी हैं तो वे इतनी जर्जर हो चुकी हैं कि उन पर से गुज़रना काफी कष्टकारी होता है।
ऐसे में बारिश और बर्फबारी के दिनों में लोगों को किस प्रकार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा, इसका केवल अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। आर्थिक रूप से भी लमचूला गाँव काफी पिछड़ा हुआ है।
गाँव की अधिकतर आबादी खेती और पशुपालन पर निर्भर है। वहीं कुछ ग्रामीण बांस के बने डलिया बना कर बाज़ारों में बेचते हैं और आय का साधन जुटाते हैं। गाँव के इक्का-दुक्का युवा सेना में अपना योगदान देते हैं। वहीं नाममात्र के युवा प्राइवेट या सरकारी नौकरी में देखे जाते हैं। गाँव के अधिकतर युवा बेरोजगार हैं।
जागरूकता की कमी के कारण इस गाँव में परिवारों की आबादी काफी बड़ी होती है। एक-एक परिवार में पांच से अधिक बच्चे होते हैं और बेटे की आस में यह संख्या और भी बढ़ जाती है।
अशिक्षा के कारण गाँव में आज भी लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक महत्व दिया जाता है। आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण गाँव वालों की आय के साधन भी काफी सीमित हैं, जिससे ना केवल उनके रहन-सहन का स्तर निम्न है बल्कि वह अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देने से वंचित रह जाते हैं।
कागज़ों में यह गाँव भले ही खुले में शौच से मुक्त हो चुका है लेकिन वास्तव में अब भी कई घरों में शौचालय का नहीं होना इसके पिछड़ेपन को दर्शाता है।
लमचूला में शिक्षा का प्रतिशत अन्य गाँवों की तुलना में बेहद कम है। गाँव में एक प्राथमिक और एक माध्यमिक उच्च विद्यालय है, जहां दसवीं तक की पढ़ाई होती है। इस माध्यमिक उच्च विद्यालय में करीब 80 बच्चे पढ़ते हैं, जिनमें लगभग 35 से अधिक लड़कियां हैं।
हालांकि, स्कूल में संसाधन और शिक्षकों की कमी के कारण इसका नकारात्मक प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। कई वर्षों से शिक्षकों के कई पद खाली हैं, जिन्हें भरने के लिए कई बार ग्रामीण शिक्षा विभाग से गुहार भी लगा चुके हैं लेकिन अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है।
वहीं इंटर स्कूल दूर होने के कारण ज़्यादातर लड़कियां हायर एजुकेशन प्राप्त करने से वंचित रह जाती हैं। इंटर कॉलेज के लिए छात्र-छात्राओं को सलानी गाँव जाना पड़ता है, जहां पहुंचने के लिए दो घंटे पैदल पहाड़ से होकर गुज़रना पड़ता है। ऐसे में माता-पिता लड़कियों को भेजने से कतराते हैं और उन्हें आगे पढ़ाने की जगह उनकी शादी कर देते हैं।
लमचूला की अधिकतर लड़कियों की शादी 12वीं के बाद कर दी जाती है। इस गाँव में मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाली लड़कियों का प्रतिशत लगभग नगण्य है। कम उम्र में शादी और फिर जल्द गर्भवती होने के नकारात्मक प्रभाव लड़कियों की सेहत पर देखने को मिलते हैं।
अधिकतर विवाहिताओं में पोषण की कमी पाई गई है। पौष्टिकता की कमी और एक के बाद एक बच्चों को जन्म देने के कारण कई महिलाओं की कम उम्र में ही मौत हो जाती है, जो इस गाँव की ना केवल सबसे बड़ी विडंबना है बल्कि लड़कियों के जीवन के साथ भी यह बहुत बड़ा अन्याय है।
जिसे केवल जागरूकता के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है। इतना ही नहीं, यह सरकार के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के उचित क्रियान्वयन के नहीं होने को भी दर्शाता है जिस पर सरकार को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
लमचूला में विकास की गति का आलम यह है कि यहां दो वर्ष पूर्व बिजली आई है, जो कई बार चले जाने पर हफ्तों तक भी नहीं आती है। कोरोना काल में यह मुश्किल और भी बढ़ गई है, जब बच्चों की पढ़ाई मोबाइल के माध्यम से कराई जा रही थी।
आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण घर में एक ही मोबाइल उपलब्ध होता था, वह भी कई बार बिजली नहीं होने के कारण चार्ज नहीं हो पाता था। यही कारण है कि Covid-19 के दौर में लमचूला गाँव के अधिकतर बच्चे पढ़ाई में पिछड़ गए हैं। सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध तो करा दी, परंतु गरीब होने के कारण अधिकतर परिवार के पास एंड्रॉइड फोन उपलब्ध नहीं थे, जिसके कारण कई घरों के बच्चे इस दौरान पूरी तरह से शिक्षा से दूर हो गए।
वहीं दूसरी ओर अब भी गाँव वालों को दूर-दराज़ रहने वाले अपने रिश्तेदारों से बात करने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गाँव में मोबाइल टावर का सिग्नल काफी सीमित स्थानों पर ही उपलब्ध है, उन्हें अपनों से बात करने के लिए पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ कर एक नियत स्थान पर खड़ा होना पड़ता है, जिसके बाद ही वह फोन पर बात करने में सक्षम हो पाते हैं।
नज़दीक में स्वास्थ्य केंद्र का होना किसी भी क्षेत्र की बुनियादी आवश्यकता होती है लेकिन लमचूला गाँव के लोगों को अभी तक यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है। गाँव के बुज़ुर्ग या गर्भवती महिलाओं के समुचित इलाज के लिए उन्हें 20 किमी दूर बागेश्वर ज़िला मुख्यालय जाने पर मज़बूर होना पड़ता है।
जो गाँव वालों विशेषकर प्रसव पीड़ित महिलाओं के लिए काफी कष्टकारी होता है। बारिश और बर्फबारी के दिनों में यह मुश्किल और भी बढ़ जाती है, जिसकी तरफ सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को सबसे पहले ध्यान देने की आवश्यकता है।
पिछले वर्ष मार्च में सरकार ने लमचूला सहित बागेश्वर ज़िले के 16 गाँवों को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत उन्हें संवारने और उनका कायाकल्प करने की योजना की घोषणा की थी। ऐसे गाँव जो अनुसूचित जाति बहुल हो और जिनकी आबादी पांच सौ से अधिक हो।
इस योजना के अंतर्गत गाँव में बिजली, पेयजल, स्वच्छता, स्वास्थ्य-पोषण, सामाजिक सुरक्षा, उन्नत सड़कें, आवास, स्वास्थ्य, ईंधन, कृषि, वित्तीय समावेशन, डिजिटलीकरण और कौशल विकास जैसी सुविधाओं को विकसित करना प्रमुख है।
सरकार की यह योजना लमचूला जैसे आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े गाँवों के लिए बहुत ज़रूरी है, ताकि यह गाँव भी देश के विकास में कदम-से-कदम मिला कर चल सके।
नोट- यह आलेख उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले के अंतर्गत एक अति पिछड़ा गाँव लमचूला की रहने वाली 11वीं कक्षा की छात्रा कुमारी मनीषा ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।