महामारियां मानव सभ्यता के लिए अभिशाप हैं। जो मानव सभ्यता को तहस-नहस कर देती हैं। दशकों बाद मानव सभ्यता ने एक ऐसी महामारी का सामना किया जिसने अपने सर्वोत्तम विकास का दंभ भर रही मानव जाति को नि:सहाय कर दिया और इंसान चहुंओर अपनी जान की भीख मांगने लगा।
यूं तो इस महामारी ने पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया था और संसार में सब कुछ थम गया था। इस महामारी से कुछ क्षेत्र ऐसे रहे जो बहुत ही ज़्यादा इससे प्रभावित हुए और उन क्षेत्रों में से एक क्षेत्र शिक्षा का था। शिक्षा जो किसी भी देश के विकास की प्रमुख आधार होती है। उसको इस महामारी ने व्यापक पैमाने पर तबाह कर दिया और इस आधार को तोड़ने में इस महामारी के साथ हमारे देश की सरकार की शिक्षा के प्रति उदासीनता ने भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाई। सरकार ने यूं तो कागज़ों में देश के शिक्षा स्तर को सुधारने की भरपूर कोशिश की है परंतु सतही तौर पर हमें उसका कहीं भी प्रभाव देखने को नहीं मिलता है।
खाने के हैं लाले टीवी पर चल दिए पढ़ाने
एक तरफ देश में महामारी के कारण सब कुछ बंद हो जाने से लोगों के बड़ी संख्या में रोज़गार छिन चुके थे और आम जनमानस को अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए समस्याओं से जूझना पड़ रहा था। इन सब के बीच घरों में लोग अपने परिवार के लिए दो समय के भोजन के लिए प्रबंध करने में जुटे हुए थे और वहीं दूसरी ओर सरकार शिक्षा को लेकर इस कदर संवेदनशील थी कि देशभर के विद्यार्थियों को घर बैठे दूरदर्शन से पढ़ाने का दावा कर रही थी, जबकि सतही तौर पर मूल्यांकन करने पर हमें पता चलता है कि हमारे देश भारत में अभी भी सात करोड़ की आबादी वाले ऐसे परिवार हैं, जहां टीवी सेट एवं अन्य आधारभूत संसाधनों की उपलब्धता नगण्य है। इस महामारी की भयावह स्थिति में देश की सरकार द्वारा आम जनमानस एवं विद्यार्थियों को शिक्षा के नाम पर केवल गुमराह ही किया जा रहा है।
टूट चुकी है पूरी तरह से विद्यार्थियों की निरंतरता
कोरोना महामारी में जब देश में चारों तरफ आम चुनाव कराए जा रहे थे, उस वक्त विद्यार्थी शिक्षण संस्थान खुलवाने के लिए आंदोलन कर रहे थे लेकिन सरकार का कहना था कि शिक्षण संस्थानों का शिक्षा के लिए खोलना कोरोना महामारी को बढ़ावा देना होगा। कई विद्यार्थियों से बात करने पर उनका कहना है कि एक लंबे समय तक शिक्षण एवं पठन-पाठन की गतिविधियां बंद हो जाने से विद्यार्थियों में शिक्षा की जो निरंतरता थी, अब वह पूरी तरह से टूट चुकी है और जो पुरानी चीज़ें थीं, अब वो भी धीरे-धीरे विद्यार्थियों के मानस पटल से पूर्ण रूप से विस्मृत हो चुकी हैं। कहीं-ना-कहीं यह चीज़ें देश में शिक्षा के गिरते स्तर एवं सरकार की विद्यार्थियों एवं शिक्षा के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शित करती हैं।
ऑनलाइन परीक्षाओं को लेकर नहीं दिखी गंभीरता
इस महामारी के दौरान जब कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान पूर्ण रूप से बंद थे तो शिक्षा प्रणाली में बदलाव करते हुए विद्यार्थियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा को जारी रखने का कार्य किया गया और साथ-ही-साथ परीक्षा भी ओपन बुक वाली प्रक्रिया के माध्यम से ली गई, जिसमें विद्यार्थियों ने ऑनलाइन मोड़ में अपनी परीक्षा के दौरान किताबें खोलकर परीक्षाएं दी।
वर्तमान में विद्यार्थियों की इस परीक्षा प्रणाली को देखते हुए ऐसी विचारधारा बन चुकी है कि जब किताबों को खोलकर एवं देखकर ही परीक्षा देनी है तो क्यों ही पुस्तकों को पढ़ा जाए, क्यों परीक्षाओं के लिए जी-तोड़ मेहनत की जाए और इस प्रकार के विचार कहीं-ना-कहीं उन्हें शिक्षा से दूर करते गए और इस प्रकार उनमें शिक्षा के प्रति उनकी गंभीरता, जीवटता समाप्त हो गई।
सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों की चिंता बना रही उन्हें अवसाद का शिकार
कोरोना महामारी से यदि सबसे ज़्यादा किसी के भविष्य पर संकट गहराया है तो वह सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटे हुए परीक्षार्थियों की उम्मीदों एवं उनके भविष्य पर गहराया है, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण देश में पूर्ण रूप से दो साल तक सारी गतिविधियां पूर्ण रूप से ठप्प पड़ी हुई थी और इसके चलते सरकार अपनी निश्चित समय सीमा में परीक्षार्थियों के लिए एग्जाम आयोजित नहीं करवा पाई, कुछ प्रतियोगी परीक्षाएं टाल दी गईं, कुछ सरकार की उदासीनता के कारण एक अनिश्चित समय के लिए ठंडे बस्ते में चली गईं।
इस भयावह स्थिति में परीक्षार्थियों के लिए बिना किसी उम्मीद के तैयारी में लगे रहना बहुत मुश्किल हो गया था और इसके साथ-ही-साथ बहुत युवाओं की सरकारी नौकरियों के लिए तय आयु सीमा भी समाप्त हो रही थी। इस तरह से उनकी बढ़ चुकी आयु भी उनके भविष्य के लिए बाधक बन रही थी।
मैंने सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले बहुत से युवाओं से बात की और उनके अंतर्मन की मनोस्थिति को जानने की कोशिश की बात करने पर मुझे पता चला कि उन्हें ऐसी ही तमाम चिंताएं धीरे-धीरे अवसाद की ओर ले जा रही हैं और यदि इस विषय पर वक्त रहते सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया गया तो संभव है आने वाले समय में सबसे युवाशील जनसंख्या वाला देश सबसे ज़्यादा अवसादग्रस्त युवाओं का केंद्र बन सकता है। ऐसे में यह कहीं-ना-कहीं एक गंभीर चिंता का विषय है, जिस पर हमें खुलकर विचार-विमर्श करने की सख्त ज़रूरत है।
वक्त रहते शिक्षा को लेकर उठाने होंगे ज़रूरी कदम
महामारी तो गुज़रते वक्त के साथ खत्म हो जाएगी और उसके प्रभाव से भी धीरे-धीरे लोग उबर जाएंगे परंतु यदि वक्त रहते शिक्षा को लेकर सरकार द्वारा गंभीरता नहीं दिखाई गई और ऐसे ही उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया तो आने वाले समय में शिक्षा के प्रति यह असंवेदनशीलता देश के लिए महामारी से भी भीषण संकट का रूप ले सकती है, क्योंकि यह महामारी अवसाद ग्रस्त बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी करके गई है और यदि इस फौज को समय रहते सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया तो इसका मंजर भयानक हो सकता है। इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि समय रहते हुए सरकार एवं आम जनमानस इस विषय पर गंभीरता से सोच-विचार करे।
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नोट- कृष्ण कांत त्रिपाठी, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवम्बर 2021 बैच के इंटर्न हैं। वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हॉस्पिटैलिटी एवं मैनेजमेंट कोर्स में अध्ययनरत हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में कोरोना महामारी के कारण देश में विद्यार्थियों एवं युवाओं को शिक्षा ग्रहण करने के लिए किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और सरकार की शिक्षा के प्रति उदासीनता एवं ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के कारण देश के युवाओं का भविष्य अधर में क्यों जा रहा है, इस पर प्रकाश डाला है।