बैडमिंटन एक चुस्ती स्फूर्ति और शारीरिक क्षमता को दर्शाता खेल है। पूरी दुनिया में खेला जाने वाला यह खेल भारत में भी काफी लोकप्रिय है। आइए जानते हैं इसका इतिहास-
बैडमिंटन का इतिहास
बैडमिंटन का इतिहास दूसरे खेलों के मुकाबले बहुत पुराना तो नहीं है मगर इस खेल की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में यानि ब्रिटिश भारत की मानी जाती है।
उस समय ब्रिटिश अफसर इस खेल को खेला करते थे मगर उस दौर में शटलकॉक की जगह ऊन से बनी गेंद का उपयोग किया जाता था। शुरुआती समय में इसे अधिकतम 4 व्यक्ति खेल सकते थे।
सन 1860 में इस खेल को अपना आधिकारिक नाम ‘बैडमिंटन‘ दिया गया, उसके बाद सन 1893 में ‘बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंग्लैंड’ ने इस खेल के नियम सुनिश्चित किए और समय के साथ ही वर्ष 1934 में अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन संघ की स्थापना हुई। भारत 1936 में इसमें सहयोगी के रूप में शामिल हुआ।
क्या हैं इस खेल के नियम?
समय के साथ-साथ ही इस खेल के नियमों में परिवर्तन होता रहा है। शुरुआती समय में तो यह खेल बस एक मनोरंजन के लिए खेला जाता था। इस खेल के शुरुआत में टॉस किया जाता है और टॉस जीतने वाला खिलाड़ी पहले सर्विस करता है।
खेल में रेकेट की मदद से खिलाड़ी शटलकॉक का आदान-प्रदान करते हैं और बीच में एक नेट होती है, जिसके दोनों तरफ से खिलाड़ी एक-दूसरे से आमना सामना करते हैं।
इसे खेलते समय यदि किसी भी खिलाड़ी के पाले (साइड) मे शटलकॉक गिरती है, तो सामने वाले खिलाड़ी को अंक प्राप्त होता है। इस खेल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
एक मैच 21 अंकों का होता है। वैसे यह खेल 29 पॉइंट तक खेला जा सकता है और इस 29वें पॉइंट को गोल्डन पॉइंट कहा जाता है, जिसे हासिल करने वाला खिलाड़ी विजेता घोषित किया जाता है।
बैडमिंटन में इतिहास रचने वाले भारतीय खिलाड़ी
गॉड ऑफ बैडमिंटन- नंदू नाटेकर, जिन्हें गॉड ऑफ बैडमिंटन के नाम से भी जाता है। वो बैडमिंटन खेल जगत के ऐसे खिलाड़ी रहे हैं, जिन्होंने 1956 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश को पहला पदक दिलाया था।
साथ ही वो 6 बार नैशनल चैम्पियन रहे और 1961 में अर्जुन पुरस्कार से उन्हें सम्मानित भी किया गया था।
प्रकाश पादुकोण- बैडमिंटन की दुनिया में इतिहास रचने वाले खिलाड़ी, जिनके नाम के बिना बैडमिंटन का इतिहास अधूरा है और वो भी बैडमिंटन के बिना अधूरे से हैं।
वर्ष 1980 में प्रकाश पादुकोण ने विश्व में अपनी नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में पहचान हासिल कर ली थी। साथ ही उन्हें वर्ष 1972 मे अर्जुन अवार्ड से और 1982 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
पुल्लेला गोपीचन्द- गोपीचन्द ना ही सिर्फ एक उम्दा दर्जे़ के बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं, बल्कि वो इंडियन बैडमिंटन टीम के चीफ नैशनल कोच भी हैं। साथ ही उन्होंने देश को पी.वी सिंधु और साइना नेहवाल जेसी खिलाड़ी भी दी हैं।
पुल्लेला को अर्जुन अवॉर्ड, पद्मश्री और द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
साइना नेहवाल- साइना, महिला बैडमिंटन खिलाड़ियों में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं। साइना लंदन ओलंपिक 2012 में इतिहास रचकर महिला एकल स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल करने वाली पहली खिलाड़ी हैं।
उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, पद्मश्री व पद्मभूषण और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
पी.वी सिंधु- सिंधु ने बैडमिंटन में अपनी अंतराष्ट्रीय पहचान 17 वर्ष की आयु में हासिल कर ली थी, जब वो बी डब्लू अफ़ की टॉप 20 में अपनी जगह बना पाई थीं।
सिंधु पहली भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्होनें विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में मेडल हासिल किया है और वर्ष 2018 में रजत पदक और वर्ष 2019 में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं। सिंधु को अर्जुन अवॉर्ड, पद्मश्री और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।