छत्तीसगढ़ में रहने वाले आदिवासी अलग-अलग प्रकार के काम करके अपना जीवनयापन करते हैं। कोई किसानी करता है तो कोई जंगल के फल, फूल बेचता है तो कोई मछली पकड़ता है। ऐसे ही छत्तीसगढ़ के ग्राम पंचायत पैनारी के पण्डों समुदाय से हैं प्रेमलाल जी। प्रेमलाल जी के पास बहुत कम ज़मीन है। उन्हें अपने परिवार के सदस्यों का पालन पोषण करना पड़ता है। इसलिए वे अभी मछली पकड़ने और बेचने का काम करते हैं। प्रेमलाल जी मछली पकड़ने में और जाल बनाने में माहिर हैं।
चार गोड़ी जाल बनाने का तरीका
मछली पकड़ने के लिए कभी-कभी गोड़ी जाल का उपयोग किया जाता है। आदिवासी इसे चार गोड़ी या घोपी जाल कहते हैं। इसे चार गोड़ी जाल इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसके चार पैर होते हैं। इसको बनाने मे लगभग 15 दिन का समय लगता है।
पहले चार बांस की लकड़ियां काटी जाती हैं फिर ज़मीन में दो-ढ़ाई फुट का गड्ढा खोदकर गड्ढे में बांस के एक छोर को मिट्टी में बंद कर देते हैं और दूसरी छोर को रस्सी में बांधकर मोड़ कर उसी रस्सी में वजनदार पत्थर बांध देते हैं। इसे 15 दिन तक ऐसे ही रखा जाता है।
15 दिन के ऐसे ही रहने के कारण बाद बांस टेढ़ा हो जाता है फिर बाजार से नेट ख़रीदा जाता है, जो बाज़ार में 3000-4000 रु प्रति किलो की कीमत में बेचा जाता है लेकिन इतने नेट की ज़रूरत नहीं पड़ती है। यह जाल बनाने के लिए 200-300 ग्राम नेट ही काफी होता है।
15 दिन के बाद बांस को निकालकर उसको रस्सी में बांधते हैं फिर नेट को चारों पैरों में फसाते हैं। नेट को पैरों में फसाने के बाद उसके चारों तरफ सिलाई कर देते हैं फिर उसको खड़े करने के लिए एक लकड़ी बांध देते हैं। लकड़ी के साथ उसको खींचने के लिए मोटी रस्सी बांध लेते हैं। 16वें दिन यह जाली पूरी तरह बनकर तैयार हो जाती है।
मछली पकड़ने का तरीका
जब चक्की में धान कूटते हैं तो उससे निकलने वाले भूसे को फेंका नहीं जाता है । इसे मछली पकड़ने में इस्तेमाल किया जाता है। मछली पकड़ने के लिए चार गोड़ी जाल को पानी में रख देते हैं। उसके बाद धान का भूसा, जो पहले से छलनी से पतला-पतला छानकर तैयार होता है। इसे पानी में डालकर गीला करके जाल में फेंक देते हैं।
5 मिनट में मछलियां एक-एक करके भूसा खाने पहुंच जाती हैं। इससे जाल में मछलियां फंस जाती हैं। दो-तीन घंटे में जाल को पानी से निकालते हैं फिर चार गोड़ी जाल में फंसी हुई मछलियों को निकालते हैं, फिर से भूसा डालकर पानी में फेंक देते हैं। एक दिन में यह प्रक्रिया तीन-चार बार की जाती है और रात में दो बार की जाती है।
परिवार की आजीविका का मुख्य स्रोत है मछली
इस गाँव में एक छोटा तालाब है, जहां कई लोग मछली पकड़ने आते हैं। वे यहां से मछली बेच कर ही अपने परिवार का जीवनयापन करते हैं। मौसम के अनुसार, एक दिन में कभी एक, कभी दो किलो मछली मिलती है। कभी-कभी इससे भी कम मिलती है। जो भी मछली पकड़ में आती है, उसमें से आधी अपने भोजन के लिए रख लेते हैं और आधी को बस्ती में बेचने जाते हैं। मछली के लिए कोई धान, कोई चावल और कोई पैसा देता है। एक दिन में 300-400 रुपये कमाई हो जाती है। ठंड के मौसम में बहुत कम मछलियां मिलती हैं और गर्मी में ज़्यादा मिलती हैं।
इस प्रकार प्रेमलाल जी की तरह कई आदिवासी मछली पकड़ने और जाल बनाने से अपना जीवनयापन करते हैं। मछली पकड़ना और जाल बनाना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए अनुभव, धीरज और मछलियों की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है।
नोट- यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग शामिल है।