दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत की उन पांच महिला वीरांगनाओं के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने हमारे देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दोस्तों हम जब भी भारत की आज़ादी के नायकों की बात करते हैं, तो महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, शहीदे आज़म भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद सहित तमाम नाम सामने आते हैं, लेकिन महिला क्रांतिकारियों का नाम बहुत ही कम सामने आता है।
इसमें कोई शक नहीं है कि देश की आज़ादी के लिए सभी क्रांतिकारियों का योगदान अतुलनीय है लेकिन यह भी सच है कि महिला क्रांतिकारियों को भारत की आज़ादी के लिए दो मोर्चों पर लड़ना पड़ा था।
दरअसल, इन महान वीरांगनाओं को आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए समाज की अनगिनत बेड़ियों को पहले तोड़ना पड़ा था। इसका कारण है कि उस समय महिलाओं पर कई तरह के सामाजिक प्रतिबंध होते थे और इसके बावजूद कुछ महिला वीरांगनाओं ने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया था, तो चलिए आज हम देश की 5 ऐसी ही महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानेंगे।
1. कमलादेवी चट्टोपाध्याय
देश की आज़ादी में कमलादेवी चट्टोपाध्याय का बड़ा योगदान है लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही है कि आज देश के कई लोग कमलादेवी चटोपाध्याय का नाम तक नहीं जानते हैं।
कमलादेवी चटोपाध्याय ने ही महात्मा गांधी से सत्याग्रह में महिलाओं की भी भागीदारी सुनिश्चित करने की मांग की थी। देश की आज़ादी के लिए कमलादेवी चटोपाध्याय कई बार जेल भी गईं। साल 1928 में कमलादेवी चटोपाध्याय को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में स्थान दिया गया।
इसके बाद साल 1936 में, उन्हें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की प्रेसिडेंट और साल 1942 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनाया गया। कमलादेवी ने भारत छोड़ो आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था।
2. सरोजिनी नायडू
भारत कोकिला कहलाने वाली सरोजिनी नायडू एक मशहूर कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी और महान वक्ता थी। सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष भी थीं।
साल 1916 में सरोजिनी नायडू की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। महात्मा गांधी से मुलाकात होने के बाद सरोजिनी की सोच में बदलाव आया और वह देश को आज़ाद कराने के आंदोलन में कूद गईं।
सरोजिनी पूरे देश में घूम-घूमकर लोगों के दिलों में आज़ादी की अलख जगाने लगीं। वे देश के अलग-अलग प्रदेश, शहर, गाँवों में जाती और औरतों को समझाती थीं।
सरोजिनी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी हिस्सा लिया और महात्मा गांधी के साथ जेल भी गईं। इसके बाद सरोजिनी ने 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में हिस्सा लिया और 21 महीने के लिए जेल गईं। आज़ादी के बाद सरोजिनी नायडू को उत्तर प्रदेश का गवर्नर बनाया गया था। इस तरह सरोजिनी नायडू देश की पहली महिला गवर्नर बनी थीं।
3. भीखाजी कामा
महिला स्वतंत्रता सेनानी भीखाजी कामा ने भारत की आज़ादी के लिए काफी संघर्ष किया है। भीकाजी कामा को विदेश में सबसे पहले भारत का झंडा फहराने वाली महिला के रूप में भी याद किया जाता है।
अपनी बीमारी के चलते भीखाजी कामा को कई बार भारत से दूर रहना पड़ा, लेकिन उन्होंने विदेश में रहते हुए भी यूरोप के अलग-अलग देशों में जाकर भारत की आज़ादी के नारे लगाए। भीखाजी कामा ने पेरिस इंडियन सोसाइटी की स्थापना की थी।
4. अरुणा आसफ अली
अरुणा आसफ अली को भारतीय स्वतंत्रता की ग्रांड ओल्ड लेडी के रूप में भी याद किया जाता है। साल 1930 में अरुणा ने नमक सत्याग्रह के दौरान सभा को संबोधित भी किया था। देश की आज़ादी के लिए अरुणा कई बार जेल भी गईं और जेल में कैदियों के साथ हो रहे बुरे बर्ताव के खिलाफ हड़ताल भी की।
5. एनी बेसेंट
लंदन में जन्मी एनी बेसेंट साल 1893 में भारत आई थीं। एनी बेसेंट ने भारत में फैली कुरूतियों के खिलाफ जमकर संघर्ष किया।उन्होंने ब्रदर्स ऑफ सर्विस संस्था की स्थापना की और बाल विवाह और जातिवाद सहित कई मुद्दों का विरोध किया।
साल 1916 में एनी बेसेंट ने भारत में ‘होम रूल मूवमेंट’ की शुरुआत की और उन्होंने ‘न्यू इंडिया अखबार’ के ज़रिये ब्रिटिश सरकार से भारत में सेल्फ रूल की मांग की थी।