पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएंगे जब सर पे ना साया होगा।
क़ैफ़ी आज़मी की ये चंद शेर के अशआर आज दिल्ली की आबोहवा पर बिल्कुल सटीक और सार्थक बैठते हैं। आज विज्ञान के इस युग में मनुष्य को जहां कुछ वरदान मिले हैं, वहीं कुछ अभिशाप भी मिले हैं। जैसे- प्रदूषण! प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप है, जो विज्ञान की कोख से जन्मा है और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।
लोग मजबूर हैं ऐसे वातावरण में रहने के लिए जहां उनके स्वास्थ्य से लेकर मानसिक संतुलन को बिगड़ने से कोई नहीं रोक सकता। यदि प्रदूषण की परिभाषा की ओर एक नज़र डालें तो प्रदूषण का अर्थ है प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। ना शुद्ध वायु मिलना, ना शुद्ध जल मिलना, ना शुद्ध खाद्य मिलना और ना ही शांत वातावरण मिलना।
दम घोटते ज़हरीले आंकड़े
बात करें भारत देश की तो हम पाएंगे कि चारों महानगरों में प्रदूषण और वनों की कटाई में दिल्ली अव्वल रहा है, जो कि घातक है। दिल्ली में स्थिति अरावली पर्वतमाला में कीकर के पेड़ों की कटाई से और भी भयंकर परिणाम देखने को मिल रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में 106.6ug/m3 के औसत वार्षिक PM 2.5 स्तर के साथ सबसे अधिक प्रदूषित था, जिसकी वजह से यह चीन में होतान (110.2 ug/m3) के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बन गया। गाज़ियाबाद से सटी दिल्ली, इस समय प्रदूषण के मामले में शीर्ष पर है। अपार पेड़ों की कटाई और उससे होने वाले नुकसानों से समाज अभी अंजान है। इसके बहुत ही घातक परिणाम हो सकते हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद दिल्ली सरकार द्वारा अपनी वेबसाइट पर साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले 13 वर्षों में दिल्ली में हर घंटे औसतन एक पेड़ काटा गया है। अब जब दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से जुड़ने के लिए राज्य ने अपनी कमर कसी है, उससे तो साफ ज़ाहिर है ना जाने कितने सैकड़ों की तादाद में पेड़ों की कटाई की जाएगी। आंकड़ों से पता चलता है कि 2005 से फरवरी 2018 तक कुल 112,169 पेड़ काटे गए हैं यानि कि औसतन 24 प्रति दिन।
दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे की आड़ में सैकड़ों पेड़ों की बलि
समय को बचाने के लिए विज्ञान ने तरह-तरह के कई तकनीकी विकास किए हैं। उनमें से प्रमुख हैं जंगलों की कटाई और उससे निकलने वाले रास्ते या एक्सप्रेसवे। फिलहाल दिल्ली और देहरादून ने मिलकर एक प्रोजेक्ट पास किया है। प्रोजेक्ट एक्सप्रेस-वे बनाने को लेकर है, जिसमें दोनों राज्यों के हज़ारों पेड़ बलि की भेंट चढ़ेंगे।
उत्तराखंड में 2,500 से अधिक पेड़ों को काटने में मुश्किल से 2.5 घंटे लगेंगे, जिनमें से अधिकांश शाल के पेड़ हैं, जो एक सदी से अधिक पुराने हैं। यह प्रस्तावित वनों की कटाई, जो लगभग 4 किमी के खंड में होनी है, जिसमें राजमार्ग का सारा लेखा-जोखा शामिल है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि शिवालिक रेंज को अपूरणीय क्षति होगी, जिससे इसकी ढलान अस्थिर हो जाएगी और बाढ़ आने का ख़तरा बढ़ जाएगा।
सूत्रों ने कहा कि इस खंड में पेड़ों की 33 प्रजातियों को काटा जाना है। टीओआई द्वारा विशेष रूप से एक्सेस किए गए विवरण के अनुसार, जिन 2,572 पेड़ों की कटाई की जानी है, उनमें से 1,622 (60%) ‘दून शाल’ के पेड़ हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटिश युग के पेड़, जिनमें से कुछ 100 से 120 साल पुराने हैं, उन्हें फिर से उगाना और पुनर्जीवित करना लगभग असंभव होगा।
पुराने पेड़ों को काटने से काफी नुकसान हो सकता है। शाल के जंगल शिवालिक रेंज की फिसलन भरी पहाड़ियों और उसके रास्तों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और तेंदुओं, बाघों और हाथियों जैसी वन्यजीव प्रजातियों के लिए एक आदर्श आवास हैं। ये पेड़ ब्रिटिश काल के हैं और इन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।
सेंट्रल विस्टा योजना और पर्यावरण की तबाही
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) ने एक नया संसद भवन बनाने और 194 पेड़ों को काटने की पर्यावरण विभाग दिल्ली से मंज़ूरी मांगी थी। देखते-देखते ये 194 पेड़ 300 तक पहुंच चुके हैं।
जामुन और अमलताश के पेड़ों को खासा नुकसान हुआ है। दोनों पेड़ आयुर्वेदा के क्षेत्र की दवाईयां बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही साथ साइट पर वायु, जल, मिट्टी प्रदूषित होने के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण का निर्माण होना भी लाज़मी है।
कॉमनवेल्थ गेम्स और मेट्रो प्रोजेक्ट से खोखली होती दिल्ली
2005 और 2010 के बीच विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा काटे गए पेड़ों की संख्या पर वन विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) और रेलवे द्वारा सबसे अधिक पेड़ काटे गए।
पीडब्ल्यूडी को जहां 15,762 पेड़ काटने की अनुमति मिली, वहीं डीएमआरसी को 15,276 पेड़ों को काटने की अनुमति मिली। रेलवे को पांच साल की अवधि के दौरान 6,388 पेड़ काटने की अनुमति दी गई थी।
पीडब्ल्यूडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 के लिए शहर के मेकओवर के लिए 2005 और 2010 के बीच ज्यादातर पेड़ों को काटा गया था। खेलों के लिए कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं जैसे कि फ्लाईओवर का निर्माण, आवास परिसरों और सड़कों को चौड़ा किया गया।
दिल्ली मेट्रो की निर्माणाधीन साइट पर एक अधिकारी ने बताया कि पेड़ों की कटाई कानूनी रूप से की गई मगर इसके साथ-साथ भू-माफियाओं ने भी पेड़ों की अवैध कटाई करवाई, जिसका कोई भी लेखा-जोखा नहीं है। सरकार पेड़ों के काटने पर वृक्षारोपण का आश्वासन हमेशा से देती आई है मगर सरकार ने कभी भी संतुष्ट परिणाम देने की ज़हमत नहीं उठाई।
पर्यावरणविदों की चिंता और सार्थकता
पर्यावरणविद इस बात से नाराज हैं कि दिल्ली ट्री अथॉरिटी शहर में पेड़ों की सुरक्षा कम कर रही है। 2018 की भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, प्राधिकरण ने पिछले तीन वर्षों में 12 बैठकों की अनिवार्य संख्या के मुकाबले सिर्फ एक बार बैठक की थी। इस बात का आक्रोश लोगों में घर कर गया है। कई पर्यावरणविद इस बात से खासे नाराज़ नज़र आ रहे हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि प्राधिकरण ने प्रतिपूरक वृक्षारोपण की जांच और निगरानी के लिए कोई उपाय नहीं किया है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के शोधकर्ता कांची कोहली ने कहा, “प्रतिपूरक वृक्षारोपण की आड़ में पेड़ों को काटने की अनुमति दी जा रही है लेकिन पेड़ लगाने का जो लक्ष्य बनाया गया, वो कहीं से भी पूरा होता नहीं दिख रहा। यह इस तथ्य के बावजूद है कि प्रतिपूरक वृक्षारोपण एक पूरी तरह से विकसित पेड़ और जैव विविधता के नुकसान की जगह नहीं ले सकता है।”
देश के पहले रीजनल रैपिड रेल प्रोजेक्ट के कारण केवल दिल्ली में 1900 पेड़ों की बलि चढ़ी
कहते हैं तरक्की हमेशा तभी आती है, जब वो प्रकृति को ताक पर रख देती है। दिल्ली से मेरठ के सफर को कम करने के लिए रीजनल रैपिड रेल का प्रोजेक्ट पास किया गया। दिल्ली से महज़ 55 मिनट में मेरठ पहुंचने के लिए सरकार ने प्रकृति को तबाह कर दिया। लगभग 1900 पेड़ों की कटाई की गई, जिनमें बबूल, कीकर, जामुन, अमलताश और शहतूत के पेड़ थे।
दिल्ली के सराय काले खां से शुरू होती रेपिड रेल मेरठ के मोदीपुरम तक जाएगी। इसका काम फिलहाल दिल्ली और ग़ाज़ियाबाद में ज़ोरों पर चल रहा है। 82 किलोमीटर के इस कॉरिडोर में ना जाने कितने ही पेड़ों की कटाई और प्रदूषण हमारे वातावरण को अशुद्घ करेंगे।
Youth Ki Awaaz की तरफ से सराय काले खां का दौरा करने जाने पर वहां के एरिया मैनेजर से बात हुई। उन्होंने अपना नाम ना छापने की शर्त पर हमसे कई पेचीदा बातों का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि सराय काले खां से न्यू अशोक नगर तक का एरिया मेरे पास है। ये 7 किलोमीटर का दायरा है। इसमें अभी 1900 पेड़ों की कटाई का ज़िम्मा हमको मिला है। साथ ही साथ इस रास्ते के बीच यमुना नदी भी आ रही है।
वो कहते हैं, “यह बात वास्तविक है कि पुल निर्माण में मलबे के कारण नदी को खासा नुकसान पहुंचता है। साथ ही साथ अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण भी होता है। सड़क या पुल के निर्माण में प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता रहा है। वहीं, इस वजह से इनके कंस्ट्रक्शन में प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान अधिक होता है और फायदा कम।”
वो आगे बताते हैं, “यमुना नदी के आसपास पेड़ों का अधिक संख्या में लगना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि बरसात के दिनों में हरियाणा के हथनीकुंड बैराज से पानी छूटने पर दिल्ली की यमुना में बाढ़ की स्थिति पैदा होती है, जो वहां के जीवन के लिए एक अभिशाप है। हम सरकारी कर्मचारी हैं और हमको रोटी के लिए सरकार के मसौदों पर काम करना ही पड़ता है।”
यमुना खादर की जिस जगह ये निर्माण चल रहा है, वहां पर खरबूज, खीरे और तरबूज की खेती की जाती थी और उसी जगह से थोड़ा आगे चलकर हरी सब्ज़ियों की खेती की जाती थी। फिलहाल कुल बोया गया क्षेत्र और हरित क्षेत्र के अनुपात में भारी गिरावट दर्ज़ की जाएगी। खैर, सरकारी रिपोर्ट्स का इंतज़ार है।
चारों मेट्रोपोलिटन सिटीज़ की बात करें तो दिल्ली हरित क्षेत्र में आगे रही है। वहीं, मुम्बई आखिरी! मगर हालात अब कुछ और ही बयां कर रहे हैं। तकनीकी क्षेत्र का विस्तार करते-करते हम अपनी प्रकृति को भूलते जा रहे हैं।
“क्लीन दिल्ली ग्रीन दिल्ली” इस छोटे से कैप्शन का वजूद दिनों दिन मिटता जा रहा है। ऐसा लगता है कि आगे चलकर भविष्य में हमको पेड़ पौधे और प्रकृति का जायज़ा लेने के लिए गाँव या दूसरे देशों का सहारा लेना पड़ सकता है।
सोर्स लिंक- ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच, हिन्दुस्तान टाइम्स, हिन्दुस्तान टाइम्स- 1, टाइम्स ऑफ इंडिया