अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था, “एक चीज़ जिसकी जानकारी आपको होनी चाहिए, वह है पुस्तकालय का स्थान।” लेकिन क्या हो अगर पुस्तकालय हमारे घर तक आ जाए? कैसा रहेगा अगर किताबें हमारे दरवाज़े खटखटाएं और कहें, “हमें पढ़ो ना।” ठीक ऐसा ही हो रहा है रेत के टीलों के पार राजस्थान के गाँवों में कहीं। घर-घर तक जा रहा है पुस्तकालय। बच्चे पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं और बड़े सुना रहे हैं।
2020 एक ऐसा साल रहा जब वर्तमान पीढ़ी ने “लॉकडाउन” जैसा कोई शब्द सुना। उस समय जब यातायात करना कोई बड़ी बात नहीं है, लोग घरों में बंद हो गए। चन्द किलोमीटर की दूरी तय करने की हिमाक़त करना भी किसी को मुनासिब न लग रहा था। स्कूल, होटल, सफ़र, दुकानें सब बन्द हो गए। 1 साल से ज़्यादा समय तक स्कूली सिस्टम से बाहर रहने के कारण बच्चे सीखने से बहुत दूर हो चले हैं। स्कूल न जा पाने के कारण किताबों से हज़ारों बच्चों का ताल्लुक़ कम होता जा रहा है। यही नहीं, 2020 की रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र का कहना था कि COVID-19 से आर्थिक पतन के कारण 2021 में लगभग 2 करोड़ 40 लाख़ बच्चों के स्कूल न लौटने का ख़तरा है।
राजस्थान सरकार की असरदार पहल मोबाइल लाइब्रेरी
मुस्तकबिल परिस्थितियों का अंदाज़ा किसी को न था। मिलना मुमकिन नहीं था। क्लासरूम या स्कूल जैसे “भीड़भाड़ वाले समाज” में तो बिल्कुल भी नहीं। इस समस्या का एक विकल्प राजस्थान सरकार ने खोज निकाला। गैर लाभकारी संगठन ‘रूम टू रीड’ के साथ मिलकर राजस्थान सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार किया है।
मोबाइल लाइब्रेरी की शुरुआत की है। राजस्थान का जहाज़ अपने ऊपर लेकर चला है अनेकों दुनिया। कहीं झूल रहे हैं पंचतंत्र के पात्र, किसी कोने में कर रहे हैं बातें विक्रम-बेताल, एक ओर से आवाज़ आ रही है कछुए खरगोश के बीच दौड़ के ऐलान की तो कहीं दिख रही है दौड़ती सिंड्रेला। गुब्बारों और फूलों से सजा जहाज़ मानो निकल पड़ा है रेतीले पहाड़ों का मुआयना करने।
जोधपुर, राजस्थान के एक गाँव की रहने वाली शिक्षार्थी का कहना है – “जब मैं पहले स्कूल जाती थी, हमारे विद्यालय में रूम टू रीड लाइब्रेरी की व्यवस्था थी। मैं वहाँ रोज़ाना जाती थी और रोज़ अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ती थी। लेकिन अचानक कोरोना की वजह से हमारा स्कूल बन्द हो गया, जिससे मैं लाइब्रेरी की किताबें नहीं पढ़ पाई।” ये कहानी बस एक बच्ची की नहीं है।
कोरोनावायरस ने स्कूल की सीखने-सिखाने की पूरी प्रक्रिया को नेस्तनाबूद कर दिया। लाखों बच्चे उस सिस्टम से दूर हो गए जहां एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में ही सही, बच्चे साथ मिलकर कुछ नया सीखा करते थे। अपने गाँव में ऊँट पर सवार लाइब्रेरी को देखकर उस शिक्षार्थी का कहना था – “आज हमारे गाँव में रूम टू रीड लाइब्रेरी की गाड़ी आई, जिसे देखकर मैं बहुत ज़्यादा खुश हो गई।”
बच्चों को फिर से जोड़ने के लिए हमने आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए मोबाइल लाइब्रेरी
जोधपुर, राजस्थान के दिल में बसे इस शहर में यह पहल की गई। गुब्बारों और फूलों से सजी इस ऊँटगाड़ी को 1,500 किताबें मिलकर एक लाइब्रेरी बनाती हैं। मोबाइल लाइब्रेरी में ज़्यादातर किताबें कहानी और चित्रकारी की हैं। उन कहानियों को आवाज़ देने के लिए लाइब्रेरी में एक स्टोरी टैलर भी मौजूद है। वह बच्चों को किताबें देने के साथ-साथ कहानियां पढ़ने में उनकी मदद भी करते हैं।
जोधपुर स्कूल शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक प्रेम चंद सांखला के अनुसार ‘इंडिया गेट्स रीडिंग एट होम’ विषय के साथ यह पठन अभियान जिला प्रशासन और एनजीओ रूम टू रीड की ओर से बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए एक पहल है। उन्होंने कहा कि – “कोरोना महामारी ने बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित किया है। उनमें से कुछ पूरी तरह से पढ़ाई से अलग हो गए हैं। इन बच्चों को फिर से जोड़ने के लिए हमने आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए मोबाइल लाइब्रेरी का आयोजन किया है।”
नहीं रुकेंगे नन्हें कदम, घर पर भी सीखेंगे हम
जोधपुर के दूरस्थ क्षेत्र ओसिया में रीडिंग कैंपेन “मैं जहां सीखना वहां, #इंडिया गेट्स रीडिंग एट होम – नहीं रुकेंगे नन्हें कदम, घर पर भी सीखेंगे हम” के क्रियान्वयन के बाद यह अभियान देश के 9 अन्य राज्यों में भी चल रहा है। कुछ सप्ताहों तक यह मोबाइल लाइब्रेरी एक क्षेत्र के अलग-अलग गाँवों का दौरा करती है।
इस पहल का उद्देश्य अभिभावकों को पढ़ने की संस्कृति के प्रति जागरूक करना भी है। अभिभावकों से यह उम्मीद की जाती है कि वे 15-25 मिनट नियमित तौर पर अपने बच्चों के साथ पढ़ने की गतिविधियां करें और रीडिंग के समय को सुनिश्चित करें। गाँव से रवाना होने से पहले लाइब्रेरी की किताबें गाँव के प्राथमिक विद्यालय में रखवा दी जाती हैं, ताकि बच्चों को ज़रूरत पड़ने पर वहाँ से किताबें उपलब्ध कराई जा सकें।
अभियान के एक पड़ाव को पार करने के बाद यह सपनों और विचारों का जहाज़ चल पड़ता है दूसरी दुनिया में अपनी नई दुनिया बसाने। अमेरिकी लेखक, निर्देशक और फिल्म निर्माता सिडनी शेल्डन के शब्दों में, “पुस्तकालय उस ऊर्जा को संग्रहित करते हैं जो कल्पना को बढ़ावा देती है।” उर्जा का यह केंद्र कहीं भी हो सकता है। रेत के टीलों के ऊपर। ज़मीन के नीचे। या फिर आम की बगिया में। बस पता होना चाहिए पुस्तकालय का स्थान।
रिया नानकमत्ता, उत्तराखंड की निवासी हैं। अभी नानकमत्ता पब्लिक स्कूल की कक्षा 11वीं में मानविकी की लर्नर हैं। रिया को लिखना, किताबें पढ़ना, लोगों से मिलना बातें करना, अपने आसपास की चीज़ों को एक्सप्लोर करना और बोलना बहुत पसंद है। वह अपने स्कूल की पत्रिका “The Explorer” की संपादक भी रह चुकी हैं और सामुदायिक लाइब्रेरी अभियान से जुड़ी हैं।