Site icon Youth Ki Awaaz

मज़दूरों का पलायन करना उनकी अज्ञानता नहीं, सरकारी असफलता थी

आप पलायन कर रहे मज़दूरो को सिर्फ गाली देकर नहीं बच सकते। उनकी स्थिति समझिए, उनका दर्द सुनिये और उनकी व्यवस्था कीजिये अन्यथा आप अराजकता का शिकार बनने की ओर बढ़ रहे हैं।

अगर आप कह रहे हैं कि हर किसी को मदद दी जाएगी तो वह मदद दिखती क्यों नहीं? अगर आपको पता था कि दिल्ली में 20 लाख लोग बाहर से आकर मज़दूरी कर रहे हैं तो उनके लिये इंतज़ाम क्यों नहीं हुए? आपको पता था कि महिलाएं और बच्चे भी हैं, उनके साथ गरीबी और भूख है फिर लॉकडाउन होने से पहले इन बिंदुओं पर योजना क्यो नहीं बनाई गई?

पलायन कर रहे मज़दूरों के एक ओर कुआं तो दूसरी ओर खाई है, यह उन्हें पता है लेकिन घर के लिए भागना उन्हें शायद एक उम्मीद दे रहा है। दिल्ली में इन मज़दूरों के लिये आवश्यक सुविधाएं ना जुटाकर उन्हें अफवाहों के माध्यम से पलायन करने के लिए प्रेरित किये जाने की खबरें मिल रही हैं। उन्हें किसी तरह दिल्ली की सीमा के बाहर किये जाने की असंवेदनशील सोच इस भयावह स्थिति को जन्म दे रही है।

किसी भी सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि जो लोग आज भूखे, प्यासे और बिना पैसे के अपने घरों की ओर बढ़ रहे हैं, उनकी आत्मा अंदर से रो रही है। एक गुस्सा और एक आक्रोश को दिल मे दबाए हुए यह लोग क्या बदल सकते हैं इसका अंदाज़ा भी नहीं है।

यह मंज़र किसी भी सरकार को आने वाले दिनों में हिला सकता है। यह भूख और बेरोज़गारी का मंज़र है। यह आपकी निष्क्रियता का प्रमाण है। यह डंडे के दमपर रुकने वाली भीड़ नही है बल्कि मजबूरी में सुरक्षित ठिकानों के अभाव में भागता हुआ जनसैलाब है। तुम इसे अपने अनुकूल जैसे चाहो परिभाषित कर लो लेकिन वास्तविकता वह नहीं है जो तुम परोस रहे हो।

आप सिर्फ अपील कर रहे हैं बिना यह सोचे कि इनपर इसका असर क्यों नही पड़ रहा। आप कोरोना को हराने का दमखम दिखा रहे हैं, ताल ठोक रहे हैं एकजुट होने की किंतु बिना इसकी परवाह किये हुए कि आपके शहर से लोग भूख से परेशान होकर निकल रहे हैं। आपके बारे में अच्छी सोच के साथ नहीं जा रहे हैं इतने सारे लोग।

आपने अपनी फैक्ट्रीज़ बंद कर दी किंतु इन्हें राहत के लिए कोई अग्रिम नोटिस या मदद तक नहीं दी। आपने मार्केट बंद कर दिया किंतु बिना इनके खाने की व्यवस्था किये हुए। आपने इशारों में ही इन्हें समझा दिया कि “भई काम नहीं तो दाम भी नहीं है अब”। आपको पता है कि आपके इशारों को यह बहुत दिनों से समझते हैं।

कंधों पर गट्ठर, गट्ठर पर बच्चे और बच्चों के मुरझाए हुए चेहरे आप से नाराज़ होकर लौट रहे हैं। उस दिल्ली से नाराज़ होकर जिसे वह बड़े गर्व के साथ अपनी दिल्ली, अपनी राजधानी बोलते थे। उन्हें पता है कि गांव में भी लोग उनका मज़ाक बनाएंगे। लेकिन यहां पर भी तो कोरोना की आड़ में उनका मज़ाक बन गया है। यहां उनके मालिकों ने मज़ाक बनाया वहां अपने लोग बना लेंगे। लेकिन वह अपने स्वाभिमान के साथ तुम पर थूककर जा रहे हैं।

अगर कोरोना को हराने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है तो शहर में रह रहे इन लोगों को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी भी हम सबकी ही है।

Exit mobile version