Site icon Youth Ki Awaaz

तथ्य ! झूट ….तथ्य ! सच ….. और दिखावा..

 

आज के  दौर का महत्वपूर्ण क्षेत्र  है डाटा माइनिंग जिसका मतलब है नयी नयी तकनीकों से आंकड़े इकठ्ठे करना और फिर उन आंकड़ो से निष्कर्ष निकलना. और आज तकनीक ने इसे आसान बना दिया है . लेकिन तकनीक के इस युग में जब पूरी दुनिया भर की सरकारें नयी नयी तकनीको से अपने नागरिको पर नजर रखती है और उनकी निजी जानकारी को चुराती है . ऐसे में हमारी सरकार का हर बात पे ये कहना की हमारे पास आंकड़े ही नहीं है ये किस और इशारा करता है.

सबसे पहले बात करेंगे कोरोना महामारी के दौरान हुई मौतों के बारे में जिस पर सरकार का कहना है कि केवल 3.5 लाख मौत ही कोरोना से हुई है उसमे भी ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत ही नहीं हुई. जबकि मुराद बानाजी और आशीष गुप्ता की हिन्दू अखबार में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 28 लाख मौते कोरोना महामारी के दौरान हुई है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में देश के 12 सबसे बड़े राज्यों से आधिकारिक आंकड़े इकठ्ठा किये जिसमे देश की लगभग 60 फिसद जनता निवास करती है. उन्होंने जनवरी 2018 से लेके मई 2021 तक हुई राज्यों में मौत के रजिस्ट्रेशन के आंकड़े को इसका आधार बनाया. उन्होंने बताया कि अप्रैल 2020 से मई 2021 के दौरान 60 लाख मौत का आंकड़ा मिला जिसमे 2019 में हुई मौतों के आंकड़े से 13 लाख मौते ज्यादा थी. अगर इसमें उन मौतों को भी जोड़ दें जिनका रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ तो यह आंकड़ा मई महीने तक 17 लाख को पार कर देता है. अगर इन 12 राज्यों के आंकड़ो को भारत की एक तस्वीर मानलो तो अप्रैल 2020 से मई 2021 तक भारत में कोरोना से हुई मौते 28 लाख के करीब होंगी. जो की कोरोना-19 के अधिकारिक रूप से दर्ज 3 लाख 32 हजार मौतों के आंकड़े से 8 गुना अधिक है.

इसका मतलब है कि केन्द्र सरकार कुछ और आंकड़े दिखाती है और राज्य सरकारें कुछ और आंकड़े पेश करती है जबकि असल आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान करते हैं

WHO के अनुसार भारत में लगभग 70% लोग महामारी का शिकार हुए है और पूरी दुनिया में कोरोना में हुई मौत के आंकड़े पर नजर डाले तो भारत में मरने वालों  की संख्या 20 लाख से 40 लाख होनी चाहिए. पर ऐसे में जब पूरी दुनिया के पास भारत के आंकड़े है तब भारत सरकार का कहना है की उनके पास कोई आंकड़ा  ही नहीं है.

सितम्बर 2020 जब भारत सरकार से पूछा गया की कोरोना महामारी के दौरान कितने front line  worker मारे गये तब हेल्थ मिनिस्टर ने कहा कोई आंकड़ा नहीं है. 24 मार्च के अचानक किये गये lockdown के बाद सारी दुनिया ने मीडिया के माध्यम से देखा की किस तरह से प्रवासी मजदुर पैदल अपने अपने गाँव जा रहे थे. और अप्रैल 2020 में वर्ल्ड बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया की भारत में 40 करोड़ प्रवासीयो के काम धंधे इससे प्रभावित होंगे. इसपे भी जब भारत सरकार से पूछा गया तो जवाब फिर से एक ही था कि कोई आंकड़ा नहीं है

 

खैर इसी तरह के और भी मामले है :- NSS द्वारा 2017-18 के दौरान किया गया अखिल भारतीय राष्ट्रिय  उपभोक्ता खर्च के सर्वे की रिपोर्ट जोकि ठीक 2019 के चुनाव से पहले आनी थी उसे नवम्बर 2019 में ये कह के रोक दिया गया कि आंकड़ो की गुणवत्ता में कमी है. लेकिन रिपोर्ट के लीक हो जाने से पता चला की 1972-73  से जब से आंकड़े इकठ्ठा करना शुरू किया है तब से ये पहली बार हुआ की उपभोक्ता खर्च में इतनी ज्यादा गिरावट आई है.

हाथ से नाले साफ़ करने वालो की मौत के आंकड़े पर भी सरकार का जवाब है कि उनके पास कोई आंकड़ा नहीं है .

ऑक्सीजन के बिना कोरोना से हुई मौतों का उनके पास कोई आंकड़ा नहीं है .

किसान आन्दोलन में हुई किसानो की मौत पर भी सरकार का कहना है कि कोई आंकड़ा नहीं है.

इन्टरनेट बंद करने के मामले में भारत सरकार सबसे आगे है लेकिन इंटरनेट बंद करने से हुए आर्थिक नुकसान के बारे में जब पूछा गया तब भी सरकार ने कहा की कोई आंकड़ा नहीं है.

हाल ही में NHMHMIS से बहुत ही संवेदनशील आंकड़े गुम हो गये. अधिकारिओं ने कहा की डाटा दुबारा से डाल दिया गया है लेकिन जब आंकड़े देखे तो पता चला इस बार ऑक्सीजन से मरने वालों का कोई आंकड़ा इसमें उपलब्ध नहीं है

जुलाई 2020 में कोरोना वैक्सीन की कमी के चलते बंद हुए वैक्सीनेशन केन्द्रों के उपर जब संसद में सवाल उठाया गया तो स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि ये आंकड़े गलत है वैक्सीन की कोई कमी नहीं है और कोई वैक्सीनेशन केन्द्र बंद नहीं हुआ है .

ऐसा नहीं है कि सरकार के पास आंकड़े नहीं है. उसके पास हर आंकड़ा है लेकिन सरकार आंकड़ो के महत्व को समझती है और उन्हें कैसे पेश करना है ये भी सरकार भलीभांति समझती है. लेकिन गलत तरीके से आंकड़ो को पेश करने के सरकार को कुछ फायदे है  

पहला तो यह कि आंकड़े उपलब्ध नहीं है ये कहना सरकार को निम्नलिखित फायदे पहुंचता है

  1. जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती है
  2. सवाल जवाब से मुक्त हो जाती है
  3. छानबीन से मुक्त हो जाती है

अगर सरकार आंकड़ो के बारे में नकारती है तो किसानो के आत्महत्या के मसले, उपभोक्ता खर्च में हुई कटौती, भूख से मरने वाले, कोरोना महामारी के दौरान की अव्यवस्था की जिम्मेदारियों से भी दूर हो जाती है. और बहाना भी बना सकती है कि कोई मरा ही नहीं, किसी की नौकरी गयी ही नहीं, और कोई दुर्घटना हुई ही नहीं. और इस तरह वह अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड लेती है.

  1. और दूसरा यह की सत्ता के दुसरे ताकत के केन्द्रों (जैसे की राज्य सरकारें, विपक्ष) के प्रति भी कोई जवाबदेही नहीं रहेगी. मतलब की विपक्ष किस बात पे सवाल उठाएगा. जब कुछ हुआ ही नहीं .

पिछले 5 सालों में राज्यों के करों की हिस्सेदारी में इतनी गिरावट कभी नहीं रही जितनी अभी है.  

ऐसे में अपने नागरिकों को लुभाने के लिए और केन्दिकरण का फायदा समझाने के लिए ये जरूरी है की सरकार जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाये और सारा बोझ राज्य सरकारों पे डाल दे . जैसा की ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों के आंकड़े पर सरकार ने कहा कि स्वास्थ्य राज्य सरकार का मसला है और राज्य सरकार की तरफ से इस तरह का कोई भी आंकड़ा नहीं आया है. और यदि कभी कभी आरोप राज्य सरकार पर नहीं मढना हो तो फिर आरोप या तो विपक्ष पे लगता है या फिर पिछली सरकार पे.

  1. सरकार द्वारा आंकड़े उपलब्ध नहीं है को सीधे पेश करने का तीसरा बड़ा फायदा यह है कि आप एक नयी कहानी गढ़ सकते हो . इसका मतलब यह नहीं की आप इतिहास के साथ छेड़ छाड़ कर रहे हैं. इसका मतलब है की आज और भविष्य में किस तरह से सत्ता में बने रहे इसकी कहानी अपने पक्ष में लिखना . कहानी से जितना फर्क पड़ता है उतना सच कहने से नहीं पड़ता..

जानकारी एक ताकत है और जानकारी ना होना एक कमजोरी . और जनता और सरकारों के बीच यह जानकारी का अंतर बहुत बड़ा है और बढ़ता ही जा रहा है . सरकार एक तरफ तो जानकारी इकठठा करने का इतना बड़ा तकनिकी तंत्र तैयार करने में जुटी हुई है जैसे आधार कार्ड जिसमे हर नगरिक  की जैविक निजी जानकारी को रिकॉर्ड किया जाता है. हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर NSA जैसे संस्था में काम करने वाले Advard Snowden ने इस पुरी जालसाजी का कच्चा चिटठा खोल के रख दिया था. जिसमे बताया गया था की कैसे जनता को गुमराह करके रखा जाता है और उनकी हर एक हरकत पे नजर रखीं जाती है और वहीँ दूसरी ओर शाषकों की पहुंच हर जगह रहती है .

पुराने ज़माने में या आज भी युद्ध की स्थिति में यदि आपके पास दुश्मन की ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो तो उसका फायदा होता है कि आप रणनीतिक रूप से आगे रहते हैं और उसी हिसाब से अपनी योजना भी तैयार कर सकते है और आप कोशिश करते हैं कि अपनी गोपोनीय जानकारी आपके दुश्मन तक न पोहुंचे ताकि दुश्मन उस जानकारी का फायदा न उठा सके. 

आज जिस तरह से दुनिया भर की सरकारे अपने नागरिको की पल पल की हरकतों पे नजर रख रही है और अगर नागरिक, सरकार से अपने हक़ की संवेधानिक जानकारी की मांग रखता है तो आंकड़े उपलब्ध न होने कि बात कह के उसको टरका दिया जाता है. तो क्या सरकार अपने नागरिको को अपना दुश्मन समझती है जिसके साथ उसका युद्ध चल रहा है ?

Exit mobile version