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वीर योद्धा महाराजा छत्रसाल की संक्षिप्त जीवनी (ऑडियो सहित) | Short Biography of Chhatrasal

वीर योद्धा महाराजा छत्रसाल की संक्षिप्त जीवनी (ऑडियो सहित) | Short Biography Of Chhatrasal

महाराजा छत्रसाल कौन थे?

वीर योद्धा महाराजा छत्रसाल को कौन नहीं जानता । जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने भारत देश में स्वराज्य की अलख जगाई थी । वैसे ही महाराजा छत्रसाल ने भी बुन्देल खण्ड जो आज का मध्यप्रदेश है, उसमें अपना साहस और पराक्रम आतातायी मुसलमानों को दिखाया था । ये दोनों ही वीर एक ही समय के प्रबल योद्धा थे । महाराज छत्रसाल का जन्म क्षत्रिय राजपूत परिवार में हुआ था और वे ओरछा के महाराज रुद्र प्रताप सिंह जी के वंश में उत्पन्न हुए थे । इनके पिता छत्रसाल पन्नानरेश महाराज चम्पतराव बड़े ही धर्मनिष्ठ एवं स्वाभिमानी व्यक्ति थे और इन्होंने भी मुस्लिम आक्रांताओं से लोहा लेने में कोई कसर नहीं छोडी थी । बुन्देल खण्ड को आजाद कराकर वीर छत्रसाल ने अपने पिता के स्वप्न को साकार किया था ।

महाराजा छत्रसाल का जन्म कब, कहाँ और कैसे हुआ?

कहते हैं जब इनका जन्म हुआ इनके पिता मुगलों से लोहा ले रहे थे । महाराजा छत्रसाल का जन्म मोर पहाड़ी के जंगल में हुआ था । मुगल तानाशाह क्रूर शासक शाहजहाँ की सेना चारों ओर से घेरा डालने के प्रयास में थी । इनके पिता ने छिपे रहना आवश्यक समझा और पुत्र के जन्म पर भी इन्होंने कोई उत्सव नहीं मनाया । एक बार तो शत्रुसेना इतनी निकट आ गयी थी कि इन सबको  प्राण बचाने के लिये जंगलों में छिपने के लिये भागना पड़ा । इस भाग-दौड़ में शिशु छत्रसाल मैदान में ही छूट गये । परन्तु कहते हैं न कि जाको राखै साइयाँ मार सके नहिं कोय । बाल न बाँका करि सकै जो जग बैरी होय ॥ ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था । इनके द्वारा देश कि आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण कार्य जो लेना था । इसलिए बालक छत्रसाल पर शत्रुओं की दृष्टि ही नहीं पड़ी । भगवान ने इनकी रक्षा कर ली ।

बालक छत्रसाल का बचपन कैसे बीता और उनके दिल में आजादी की आग कब लगी?

चार साल की उम्र तक इन्हें अपने माता के घर ननिहाल में ही रहना पड़ा । बालक छत्रसाल केवल सात वर्ष की अवस्था तक अपने पिता के साथ रह सके । ऐसा कहते हैं कि जब ये पाँच वर्ष के थे तब भगवान श्रीराम के मन्दिर में इन्होंने भगवान राम लक्ष्मण की मूर्तियों को अपने जैसा बालक समझकर उनके साथ खेलना चाहा । तब सचमुच भगवान इनके साथ खेलेने के लिए प्रगट भी हुए थे । 12 वर्ष की छोटी उमर में ही इनके सिर से पिता का साया उठ गया था । पिता के देहान्त के बाद ये 13 साल की उम्र तक ये ननिहाल में ही रहे । उसके बाद वे पन्ना आ गये थे जहाँ इनके चाचा सुजानराव जी ने इन्हें सैन्य शिक्षा दी थी । अपने पिता का अदम्य साहस और शौर्य तो इन्हें पहले ही विरासत में मिला था । दिल्ली के सिंहासन पर क्रूर और आतातायी मुस्लिम शासक औरंगजेब बैठ चुका था । उसके अन्याय से लोग पिडित और त्रस्त हो रहे थे । जगह जगह से कन्याओं और स्त्रीयों को उठाकर वैश्यालयों में भरा जाने लगा । प्रजा से कर वसूलने के नाम पर उनके सभी संपत्तियों को जबरन जप्त कर लिया जाता था । दिन दहाडे लूटपाट और हत्याएँ एक आम बात हो चुकी थी । देश में वैह्शी दरिंदों का राज था । जिसे देख बालक छत्रसाल का मन स्वराज्य और आजादी की और बडी तेजी से दौडने लगा । कैसे अपने देश को इन आताताइयों से आजाद कराया जाये ये ही उनके मन में चलता रहता था ।

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एक समय की बात है वीर छत्रसाल की आयु 13 साल की रही होगी । माता विंध्यवासिनी के मन्दिर में मेला लगा हुआ था । चारों और चहल – पहल थी । दूर दूर से लोग माता विंध्यवासिनी के दर्शन करने पहुँच रहे थे । इनके चाचा  महाराज सुजानराव अपने सरदारों से कुछ बातचीत करने में लगे थे । बालक छत्रसाल एक डलिया लेकर देवी माँ की पूजा के लिये फूल चुनने वाटिका में पहुँचे । उनके साथ उनके दूसरे राजपूत मित्र बालक भी थे । फूल चुनते हुए ये लोग कुछ दूर चले गये । इन्होंने देखा कि वहाँ कुछ मुसलमान सैनिक घोड़ों से मंदिर की ओर आ रहे हैं । इनके पास आकर उन सैनिकों ने पूछा “विन्ध्यवासिनी का मन्दिर कहाँ है ?’

बालक छत्रसाल ने कहा ‘क्या, तुम्हें भी माता की पूजा करनी है !

मुसलमान सरदार बोला ‘हम तो मंदिर तोडने आये हैं ।’

बालक छत्रसाल गरज उठे ‘मुँह सम्हालकर बोल ! फिर ऐसी बात बोली तो जीभ काट लूँगा ।’

उनका सैनापति हँसा और बोला ‘तू छोटा सा बालक भला, हमारा क्या कर लेगा । तेरी बेचारी देवी…’ उसकी बात पूरी हो उससे पहले उस दुष्ट सैनापति का सिर धरती पर था । छत्रसाल की तलवार गरज उठी । एक युद्ध छिड़ गया उस फूलों की बाटिका में । जिन बालकों के पास तलवार नहीं थी, वे तलवार लेने दौड़ मंदिर की ओर । मन्दिर में ये समाचार आग की तरह फैल गया ।  इनके चाचा महाराजा सुजानराव और राजपूतों ने कवच पहने और तलवार लेकर जैसे ही वाटिका की ओर बढे तो क्या देखते हैं ! कि वीर बालक छत्रसाल तो एक हाथ में रक्त से भीगी तलवार तथा दूसरे हाथ में ‘फूलों की डलिया लेक हँसते हुए उन्हीं की ओर आ रहे हैं । इस वीर बालक ने अकेले ही शत्रु सैनिकों को धराशाई दिया था । महाराज सुजानराव ने बालक छत्रसाल को अपने सीने से लगा लिया । देवीमाँ विश्ध्यवासिनी भी अपने सच्चे पुजारी के शौर्य पुष्पों को पाकर पुलकित हो उठीं ।

वीर छत्रसाल ने शिवाजी महाराज से मिलकर आजादी की लड़ाई कैसे लड़ी?

वीर छत्रसाल दिन रात बस अपनी मातृभूमी को इन क्रूर आताताईयों से आजाद कराने के विषय में ही सोचते रहते थे । इन्हीं दिनों हमारे देश के आकाश में स्वराज का सूर्य बनकर आये थे, छत्रपति शिवाजी महाराज । वीर छत्रसाल ने शिवाजी महाराज से मिलकर आजादी की लडाई में उनका मार्गदर्शन पाने का प्रयत्न किया । छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलने के लिए इन्होंने एक योजना बनायी । ये मुगल सैना में भर्ती हो गये । इनको सैना की एक टुकडी का संचालन करने को मिला और जब ये सैना महाराज शिवाजी के इलाके में पहुँची, तब छत्रसाल भेष बदलकर शिवाजी महाराज से मिलने के लिए अकेले ही रात के अंधेरे में चुपचाप निकल पडे । रास्ते में इन्हें कुछ गाँवों से होकर गुजरना पडा । एक गाँव में कुँए में एक बालक गिर पडा था लोगों को कुँए के समीप एकत्र हुआ देख ये तुरंत ही कुएँ में कूद पडे औऱ उस बालक को बाहर निकाला । आगे भी महाराज छत्रसाल कई गाँवों, कस्बों में रूकते-रूकते शिवाजी महाराज के किले तक पहुँचे । किले में पहुँचते ही इनको द्वार रक्षकों ने अंदर जाने दिया । और इनको महाराज शिवाजी के पास ले जाया गया । शिवाजी महाराज ने कहा आओ छत्रसाल हम आपका ही इन्तजार कर रहे थे । इनका परिचय जाने बिना ही इनको शिवाजी महाराज ने कैसे पहचाना इस बात से ये आश्चर्य चकित हो उठे । महाराज ने कहा कि आप भोजन किजिये भोजन के पश्चात आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे । भोजन करने के बाद शिवाजी महाराज और इनके बीच वार्ता हुई इन्होंने पूछा महाराज आपने मुझे कैसे पहचाना तब शिवाजी महाराज ने कहा संत समर्थ ने हमारे राज्य में कई मंदिरों का निर्माण करवाया है । जहाँ शाम के समय सभी एकत्रित होते हैं । उनके बीच जो भी वार्ता दिन भर की होती है उसका समाचार हमारे सैनिक हमारे तक पहुँचाते हैं । हम हर रोज अपने राज्य में होने वाली सभी गतिविधियों पर नजर रखते हैं, आपने जब हमारे राज्य में प्रवेश किया तभी से हमारे लोग आप पर नजर बनाये हुए थे । महाराज ने छत्रसाल को बहुत सी युद्ध नितियाँ समझाई और मुगलों से लोहा लेने में सहाय करने का आश्वासन भी दिया । कहा जब भी हमारी आवश्यकता आपको पडे तभी आप याद कर लिजीयेगा । आप अपने बुन्देल खंड को इन आताताइयों से आजाद करवाईये । वीर छत्रसाल ने शिवाजी महाराज के मार्गदर्शन और अपने रणकौशल एवं छापामार युद्ध नीति के बल पर मुगलों के छक्के छुडा दिये । बुन्देलखंड से मुगलों का एकछत्र शासन वीर राजा छत्रसाल ने समाप्त करके दिखाया ।

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महाराज बाजीराव द्वारा वीर छत्रसाल की मदद

वीर छत्रसाल अपने समय के महान शूरवीर, कुशल और प्रतापी राजा थे । इनको अपने शासन काल में कई बार मुगलों के आक्रमण से जूझना पडा । जब मुग्लों को इनको जीतना असंभव जान पडा तो  मुग्लों ने एक बडी सैना लेकर महाराजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया । तब तक छत्रपति शिवाजी राजे शरीर छोड चुके थे । उनके स्वराज की बागडौर अब महाराज बाजिराव संभाल चुके थे । तब वीर राजा छत्रसाल ने चारों और से अपने को घिरा देख महाराज बाजीराव से मदद की आशा में एक पत्र लिखा उस संदेश को एक दोहे में उन्होंने लिखकर भेजा ।

जो गति ग्राह गजेन्द्र की, सो गति भइ है आज ।
बाजी जात बुन्देल की, राखो बाजी लाज ।।

इसे पढते ही महाराज बाजीराव भी अपनी सेना लेकर इनकी सहायता के लिये पहुंचे । वीर छत्रसाल और महाराज बाजीराव ने मिलकर उस बडी सेना को हराकर वापिस लौटा दिया । महाराज छत्रसाल ने देश की आजादी और स्वराज्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता । ऐसे वीरों के बलिदान से ही आज हम स्वतंत्रता का लाभ ले पा रहे हैं । ऐसे वीरों को नमन है ।

 

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