प्रेम की दीवार कहाँ नहीं होती है
हर जगह देखने को मिल जाती है
कहीं जाति के नाम पर तो
कहीं धर्म के नाम पर दीवार खड़ी कर दी जाती है!
कहीं विश्वास के नाम पर तो कहीं इंसानियत के नाम पर
प्रेम की दीवार को खड़े होते देखा है!!
जऩाब आपने कौनसी दीवार को खड़ा किया है?
जऩाब-ए-आली…..
आपनें तो सरासर इलज़ाम ही लगा दिया हम पर
कि हमनें भी कोई दीवार खड़ी की है।
हम तो ठहरे वो बेकसूरूर इन्सान जहाँ इन्सान को इन्सान की तरह देखां है, उसको उसके कर्मो से जाना हैं
ना कि उसके धर्म से।
खैर हुजूर …..
कसूर ना आपका हैं और ना ही हमारा हैं
यहाँ हर कोई पत्थरी दिवारों सा व्यवहार जो करता है!
क्योंकि चर्चा तो उनकीं होती है जो चिल्लाना जानतें है
हम जैसे चुपचाप से कर्मो को अंजाम देने वाले को कौन पूछता है?