लोगों के द्वारा ही नदियां अपवित्र और गन्दी होती हैं और इससे होने वाली परेशानी भी लोगों के लिए ही होती है। हमने गंगा नदी को बचाने के लिए अनगिनत अभियान चलाए हैं। हाल ही में दिल्ली में बहती यमुना का हाल जानने के लिए ‘Youth Ki Awaaz’ ने एक सर्वेक्षण किया।
गीता कॉलोनी में रहने वालों से कटने लगे हैं लोग
यमुना नदी के लिए हमने स्वच्छ भारत अभियान के अलावा कोई भी अभियान अमल में लाता हुआ नहीं देखा। मेहन्द्री, जो कि गीता कॉलोनी के पार खेती करती हैं, वो बताती हैं कि जब आस-पड़ोस के लोगों ने हमारे बच्चों को और हमको समाज से दूर करना चाहा और हमसे और हमारे बच्चों से दूर भागने लगे, तब उन लोगों का कहना था कि हमारे अंदर से गोबर और भैंस की बदबू आती है। वो आगे कहती हैं,
इतना ही नहीं, हमारे बच्चों के साथ स्कूल में भी साथ पढ़ने वाले बच्चों और टीचरों द्वारा भी यही कहना था कि तुम भैंस वाले हो, नहा-धोकर आया करो। मेरे बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया।
मेहन्द्री बताती हैं, “हमने भैंस घर में पाल रखी थी मगर 8 साल तक यह सब देखते हुए हमने फैसला किया कि हम भैसों को बेले (खेतों) में रखेंगे। अब खेतों में भी गंदगी फैलाने के आरोप लगाए जा रहे हैं।”
यमुना से सिंचाईं का खासा खामियाज़ा भुगतना पड़ा किसानों को
गरीब किसान राजबीरी देवी बताती हैं कि “यमुना नदी के गंदे पानी की वजह से हमारी खेती को खासा नुकसान हुआ है। चौलाई और लाल साग, पालक जैसी पत्तेदार सब्ज़ियों में नदी के पानी से तराई करना हमको बहुत महंगा पड़ा।
पिछले 1 महीने में 30-40 किलो हरी पत्तेदार सब्ज़ियों में से नाले के पानी की बदबू के कारण हमारी सब्ज़ी किसी ने नहीं खरीदी। पानी का कोई और साधन नहीं है, हमें यमुना के पानी से ही सिंचाई करना होती है।
क्यारियों में हमने यमुना का पानी दिया था, उसके 3 माह बाद फिर दोबारा छिड़काव किया, तब यमुना का पानी यमुना का ना होकर नाले की तरह बदबू देने लगा। हमारी खेती हमको ले डूबी। बट्टे पर पैसे लिए थे वो भी नहीं दे पाए और बाकी कुछ सामान मोल (पैसे से खरीद कर) का भी लाते हैं।”
वज़ीराबाद यमुना बैराज: ज़हरीली मछलियों से मरते लोग
कहते हैं ज़ुबान का ज़ायका किसको नहीं भाता? सब सोचते हैं अच्छा खाएं मगर इंसान को गरीबी बहुत पीछे की ओर धकेल देती है।
फिलहाल बात करते हैं वज़ीराबाद यमुना बैराज की, जहां मांगुर नाम की मछली लोग पकड़कर 60 रुपए किलो के हिसाब से बेचते हैं। यह मछली ज़हरीली होने के साथ साथ ऐसी कई बीमारियों को न्यौता देती हैं, जिनका इलाज बहुत मुश्किल है, जैसे- कैंसर!
लेकिन गरीब तबके के लोग यहां से मछली खरीदकर खाते हैं। शास्त्री पार्क की झुग्गियों से लेकर भजनपुरा की झुग्गियों तक यहां की मछलियों की सप्लाई होती है।
वज़ीराबाद यमुना बैराज से मछली पकड़कर अपने अपने घर ले जाने वाले 4 लड़कों की हैजे से मौत ने वहां के परिवारों यानि कि झुग्गियों में अफरा तफरी मचा दी। मछलियां प्रदूषित पानी की वजह से पहले से ही अस्वस्थ हालत में थी और लड़कों ने उनको पकड़ कर घर ले जाने की गलती कर दी, जो वास्तव में उनके काल की वजह बन गईं।
स्वच्छ भारत अभियान यमुना मंडल, गीता कॉलोनी के सुपरवाइज़र दीपक कुमार जायसवाल कहते हैं, “यमुना प्रदूषण की वजह से इंसान ही नहीं, बल्कि पानी में रहने वाले जीव-जंतु भी खतरे के शिकार हो रहे हैं, जिसका परिणाम बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में यमुना का सबसे ज़्यादा प्रदूषित भाग वज़ीराबाद यमुना बैराज ही है, जहां हरियाणा से छोड़ा गया प्रदूषित पानी एकत्र होकर अमोनिया का निर्माण करते हैं, जो अपने आप में बहुत घातक है।”
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण रोकने में विफल
आईटीओ यमुना बैराज में स्वच्छ भारत अभियान के तहत नियुक्त किए गए दीपक जायसवाल बताते हैं मूर्ति विसर्जन पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 2010 के दिशा-निर्देशों और गैर-बायोडिग्रेडेबल मूर्तियों के विसर्जन पर ट्रिब्यूनल द्वारा विशिष्ट प्रतिबंध के बावजूद अधिकारी इसे रोकने में पूरी तरह से विफल रहे हैं।
दिशानिर्देशों का सुझाव है कि मूर्ति विसर्जन की अनुमति केवल ऐसी मूर्तियों की होनी चाहिए, जो बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बनी हों, ना कि प्लास्टिक/प्लास्टर ऑफ पेरिस से। साथ ही मूर्तियों को केवल उन्हीं रंगों में रंगना चाहिए, जो पर्यावरण के अनुकूल हों।”
वो आगे बताते हैं कि आईटीओ यमुना बैराज से वो 1- 2 कूड़ा और प्लास्टिक प्रतिदिन उठवाते हैं और सीधे गाज़ीपुर कूड़ा घर भेज देते हैं।
पुल निर्माण और खोखली होती यमुना
दक्षिणी दिल्ली को पूर्वी दिल्ली से जोड़ने का काम इस समय ज़ोरों पर है और यह काम यमुना पर पुल बनाने को लेकर शुरू हुआ। सीमेंट, बदरपुर और भी ना जाने कौन-कौन सी सामग्री इस समय यमुना की भेंट चढ़ रही है।
पुल बनाने के कार्य में सैकड़ों मज़दूर लगे हैं, जिन्होंने यमुना किनारे ही तिरपाल डालकर झुग्गियां बनाई हुई हैं। अब इन सैकड़ों मज़दूरों का मल त्याग, ईंधन का कचरा सब कुछ यमुना पर ही निर्भर है। मैंने यहां निरीक्षण किया और उसके बाद जाना कि यहां आसपास के किसान भी अपना मलमूत्र और कचरा फेंकने के लिए यमुना तक ही आते हैं।
भैंस और गाय के गोबर का या तो उपला बनाया जाता है या फिर सीधा यमुना नदी में बहा दिया जाता है। हम सभी सोचते हैं कि कचरा तो नाली में जाता है, फिर यमुना मैली कैसी हो जाती है? यमुना के प्रदूषित होने में वहां के किसानों एवं मज़दूरों का भी योगदान है।
यमुना का ओखला धोबी घाट और अतिक्रमण का कूड़ाघर
ओखला के धोबी घाट को दिल्ली सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हटाने का आदेश 2019 में ही दे दिया था मगर उसके बाद से देश NRC और फिर कोरोना से निबट नहीं पाया है।
वहीं, धोबी समुदाय का कहना है कि हम यहां से नहीं हटेंगे, नहीं तो हम यमुना में कूदकर सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे। लगभग वहां से फिलहाल 300 झुग्गियों को हटाया गया है।
वहीं, प्रशासन का कहना है कि ओखला के रिहायशी इलाकों से जितना भी मलबा निकलता है, उसका निबटान यहीं किया जाता है, जो अपने आप में प्रदूषण की जड़ है।
इस बात के विपक्ष में धोबी समुदाय ने कोर्ट में याचिका भी दायर की, जिसमें साफ शब्दों में कहा गया कि यह क्षेत्र यमुना नदी के ‘ओ’ क्षेत्र में पड़ता है, जहां निर्माण करना प्रतिबंधित है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यमुना के किनारे वाले हिस्से के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम संतोषजनक हैं और अतिक्रमण काफी ज़्यादा है। पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट है कि डूब क्षेत्र से अतिक्रमण को दिल्ली विकास प्राधिकरण हटाएगा, जिसे उसने मास्टर प्लान में ‘ओ’ क्षेत्र के तौर पर चिह्नित किया है।”
अमोनिया और अम्ल के झाग से प्रदूषित होती यमुना कालिंदी कुंज बैराज
दिल्ली बॉर्डर की समाप्ति से पहले ही कालिंदी कुंज बैराज का हाल और भी बुरा है। यहां ओखला इंडस्ट्रियल एरिया और मीठापुर के छोटे-छोटे कारखानों का सारा कचरा यहीं पर बहकर आता है।
यहां पर जो यमुना का हिस्सा है, उसमें फॉस्फेट की मात्रा 0.51 मिलीग्राम/लीटर पाई गई, जो सामान्य सीमा 0.005 से 0.05 मिलीग्राम/लीटर से अधिक है। फॉस्फेट की यह प्रचुरता नदियों को ढकने वाले ज़हरीले झाग की परतों का निर्माण करती है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति: 90% अपशिष्ट यमुना में
जानकारी के मुताबिक, दिल्ली में डिटर्जेंट बनाने वाली फैक्ट्रियों का गंदा पानी नाली के जरिए यमुना नदी में पहुंचता है और सीवर के अशोधित पानी में फॉस्फेट और अम्ल की मौजूदगी के कारण नदी में झाग बनते हैं। यानि यमुना नदी में यह प्रदूषण औद्योगिक कचरे की वजह से फैलता है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा यमुना प्रदूषण नियंत्रण समिति को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, शहर में कम-से-कम 90% घरेलू अपशिष्ट यमुना में बह जाता है। अपशिष्ट जल मुख्य रूप से घरेलू गतिविधियों से आता है, इसलिए डिटर्जेंट, कपड़े धोने के रसायनों और फॉस्फेट यौगिकों की उच्च सामग्री की उपस्थिति होती है।