प्रति वर्ष 26 सितंबर को ‘विश्व गर्भनिरोधक दिवस’ मनाया जाता है। महिलाओं और लड़कियों के प्रजनन अधिकारों का समर्थन करने वाले वैश्विक समूह ‘एफपी2020’ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 13.9 करोड़ से अधिक महिलाएं गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं और भारत सहित कम आयवाले 13 देशों में आधुनिक गर्भनिरोधक उपयोगकर्ताओं की संख्या 2012 के बाद से दोगुनी हो गई है।
हालांकि, पुरुषों की तुलना में ऐसी महिलाओं का आंकड़ा कहीं अधिक है। भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 12 वर्षों में देश में गर्भनिरोधक के कुल इस्तेमाल में 52 फीसदी जबकि पुरुष नसबंदी में 73 फीसदी की गिरावट हुई है। ये आंकड़े निश्चित रुप से पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने की अनिच्छा का संकेत देते हैं।
आखिर क्या वजह है कि नौ महीने गर्भावस्था का दर्द झेलने के साथ ही गर्भनिरोध के साइड इफेक्ट्स को झेलने की उम्मीद भी महिलाओं से ही की जाती है, जबकि चिकित्सा विज्ञान इस बात की पुष्टि कर चुका है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक का उपयोग महिलाओं की तुलना में अधिक सुरक्षित और आरामदायक है।
फ्रंटीयर्स इन न्यूरोसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार
वर्ष 2019 में ‘फ्रंटीयर्स इन न्यूरोसाइंस’ नामक एक पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की चेहरे की हाव-भावों को पढ़ने की क्षमता प्रभावित होती है, जिसका असर उनके अंतरंग संबंधों पर भी पड़ सकता है।
जर्मनी में ग्रीफ्सवाल्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में में पता चला है कि गोलियों का इस्तेमाल नहीं करने वाली महिलाओं की तुलना में ओसीपी (Oral Contraceptive Pills) प्रयोगकर्ताओं में तकरीबन 10 फीसदी बुरा असर है।
ग्रीफ्सवाल्ड विश्वविद्यालय के एलेक्जेंडर लिश्चके ने बताया कि दुनिया भर में 10 करोड़ महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती हैं लेकिन इससे उनकी भावनाओं, बोध तथा व्यवहार पर पड़ने वाले असर के बारे में अभी भी हमारे पास बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। अब तक ज़्यादातर शोध गर्भनिरोध गोलियों से शरीर पर पडने वाले शारीरिक प्रभावों पर ही हुए हैं।
अमेरिका में हुआ था पहली गर्भनिरोधक गोली का निर्माण
सर्वप्रथम वर्ष 1951 में अमेरिका के ऑर्गेनिक केमिस्ट कार्लजेरासी ने अपने सहयोगियों जॉर्ज रोजेनक्रांत्ज तथा लुइस मिरामॉन्टेस के साथ मिल कर दुनिया की पहली गर्भनिरोधक गोली का निर्माण किया था। इसे करीब दस वर्षों बाद 1960 में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन (FDA) द्वारा गर्भनिरोधक गोलियों के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी। उसके बाद से बर्थ कंट्रोल के लिए इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
यह एक बेहद क्रांतिकारी खोज साबित हुई, जिसने पहली बार महिलाओं को गर्भधारण करने या ना करने संबंधी निर्णय लेने की व्यक्तिगत आज़ादी दी। भारत की बात करें तो लखनऊ स्थित सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट (CDRI) के प्रोफेसर डॉ. नित्या आंनद और उनकी टीम ने कार्लजेरासी की खोज से प्रभावित होकर करीब एक दशक के अथक प्रयासों के पश्चात वर्ष 1971 में पहले देसी गर्भनिरोधक गोली का सफल प्रयोग किया। इसके बाद आगे वर्ष 1990 में हिंदुस्तान लैटेक्स लाइफ केयर को इसके थोक उत्पादन की अनुमति मिली। इस तरह भारतीय महिलाओं को ‘सहेली’ के रूप में उनकी पहली गर्भनिरोधक गोली मिली। वर्तमान में राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत WHO द्वारा मान्यता प्राप्त इसी गोली का निःशुल्क वितरण किया जाता है।
भारतीय समाज में पुरुष नसबंदी से जुड़ी हैं कई भ्रांतियां
किसी गर्भनिरोधक गोली का इस्तेमाल करना या ना करना अथवा किस प्रकार के गर्भनिरोध का इस्तेमाल करना है? यह सब किसी भी व्यक्ति का बेहद निजी फैसला है फिर भी यह जानना दिलचस्प है कि पिछले 12 वर्षों में देश में गर्भनिरोधक के कुल इस्तेमाल में 52 फीसदी जबकि पुरुष नसबंदी में 73 फीसदी की गिरावट हुई है। ये आंकड़े निश्चित रुप से पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने की अनिच्छा का संकेत देते हैं।
भारत के प्रसूति और स्त्रीरोग संबंधी सोसायटी ‘एफओजीएसआइ (Federation of Obstetric and Gynecological Societies of India)’ के उप महासचिव नोजर शेरियर कहते हैं, “लोगों को लगता है कि महिलाओं को ही हर स्थिति से गुज़रना चाहिए, क्योंकि पुरुष नसबंदी को पुंसत्व-हरण के रुप में देखते हैं। भारतीय समाज में पुरुष नसबंदी के संबंध में सूचना, शिक्षा और पर्याप्त संचार का अभाव है और इसके साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में भी इन चीज़ों की व्यापक रुप से कमी है।”
वहीं भारत में असुरक्षित गर्भपात से मौत और विकलांगता को रोकने की दिशा में काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन आइपास (i-pass) के प्रशिक्षण टीम के सदस्य उमेश कुलकर्णी कहते हैं, “भारतीय पुरुषों का मानना है कि कंडोम उनके यौन सुख को और नसबंदी उनकी मर्दानगी को कम करती है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।” महिलाओं के लिए आइयूसीडी और गोलियों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव भी चिंता के विषय हैं।
गर्भनिरोधक गोलियों के हैं कई साइड इफेक्ट्स
रिम्स (RIIMS), रांची के प्रसूति विभाग की प्रोफेसर डॉ शशिबाला सिंह का कहना है कि महिलाओं द्वारा गर्भनिरोध का इस्तेमाल करने से उनमें गर्भाशय कैंसर या फायब्रॉयड की समस्या होने की संभावना कम रहती है। इसके साथ ही पीरियड के दौरान ब्लीडिंग या दर्द में भी राहत मिलती है लेकिन इन दवाओं के निर्माण में कई तरह के हॉर्मोन का उपयोग किया जाता है, इसलिए इसके कई साइड इफेक्ट् भी हैं जैसे- रक्त के थक्के जमना, हृदयाघात की संभावना, स्ट्रोक की समस्या, गाल ब्लडर, लीवर ट्यूमर, प्रजनन अंगों का कैंसर आदि।
इसके अलावा, महिला नसबंदी के लिए बड़ा ऑपरेशन करना पड़ता है, जो कि काफी पीड़ादायी होता है जबकि पुरुषों की नसबंदी नॉन-स्टेपल तरीके से होती है। इसके लिए मात्र एक छोटा-सा चीरा लगाना पड़ता है, जिसका घाव एक-दो दिनों में भर जाता है। पुरुष नसबंदी का उनके यौन संबंधों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। यह सब बेकार की बातें हैं।
धूम्रपान करने वाली महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग से घातक बीमारियों की संभावना
वह आगे बताती हैं कि जो महिलाएं स्मोकिंग करती हैं, उन्हें हाइ ब्लड प्रेशर, डायबीटिज, हाइ कॉलेस्ट्रॉल, मोटापा जैसी बीमारी होने की संभावना अधिक होती है। आज कल लो-डोज वाली गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन इनके इस्तेमाल से महिलाओं में मोटापा की समस्या आम होती जा रही है। इसके अलावा 35 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाएं अगर बर्थ कंट्रोल के लिए गोलियों का सेवन करती हैं तो उनमें हृदयाघात, स्ट्रोक, ब्लड क्लॉटिंग आदि की संभावनाएं दोगुनी हो जाती हैं।
पटना के सीनियर गाइनोकोलॉजिस्ट और आइवीएफ एक्सपर्ट डॉ हिमांशु राय का कहना है, “पुरुष गर्भनिरोधक का इस्तेमाल अगर सही तरीके से किया जाए तो यह अधिक प्रभावी और सुरक्षित साबित हो सकता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है लेकिन समस्या यह है कि हमारे देश में इस संबंध में कई सारी भ्रांतियां व्याप्त हैं, जिसको दूर करने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाने की ज़रूरत है।” इसके साथ ही पुरुष गर्भनिरोध के साथ-साथ पुरुष नसबंदी को भी बढ़ावा देने की ज़रूरत है।”