पहले यह पढ़ो, इसमें वो सब लिखा है, जो मैं बोलना चाहती हूं। उसने लेटर देते हुए कहा, हमें वो लेटर पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं थी। जो प्यार भरी फीलिंग उसने लेटर में शायद बयान की थी, वो हम उसके चेहरे पर साफ-साफ देख सकते थे।
ऐसे नाज़ुक पलों में हम सच बोल कर उसका दिल नहीं तोड़ना चाहते थे, पर अब कोई चारा भी हमारे पास नहीं था। हमने आनन-फानन उसको अपना सच बता दिया कि हम गे (समलैंगिक) हैं। उसने एक झटके में लेटर हमारे हाथ से लेकर वहीं हमारे सामने फाड़ कर फेंक दिया। हमने इस बात पर कुछ रिएक्ट नहीं किया और चुपचाप बेंच पर बैठे रहे। उसे इस झटके से उबरने का समय दिया और इसके बाद जब वो धीरे-धीरे नार्मल हुई, हमने उससे बात करनी शुरू की। उसके बाद हम वहां दो घंटे और थे।
इसी बीच बारिश और तेज़ होने लगी थी, बाकी गार्डन में वाक करने वालों की घूरती पुलिसिया नज़रों में हम दोनों एक कपल थे, जो जुलाई की गीली बारिश में बड़े पेड़ के नीचे बेंच पर बैठे दुनिया से बेखबर आपस में मगशूल थे पर हमारी यार की नाराज़गी हमारी पहचान से नहीं थी, वो इस बात पर हमसे गुस्सा थी कि हमने उसको अपना राज़दार बनने के लायक भी नहीं समझा और उससे अपनी सच्चाई उससे छुपा के रखी। हमारी सेक्सुअल पहचान का राज, जो हमारे तीन करीबी दोस्तों को मालूम था पर उसको नहीं।
अलंकृता उस वक़्त हमारे उस छोटे से ग्रुप का हिस्सा नहीं थी, हमारे वो दोस्त जिन पर हम अपनी दोनों आंख मूंद कर विश्वास कर सकते थे और हमें उस टाइम लगा था कि अगर उसे सच का पता चलेगा, तो वो हम से कभी बात नहीं करेगी। उस मुलाकात के हफ्तों बाद तक अलंकृता खुद को ही कोसती रही और बार-बार यह कहती रही कि वो कितनी बेवकूफ थी, पर क्या वो सही में बेवकूफ थी? उसे लगा था कि हमारे बीच जो एक टेंशन था, उसको उसने गलत समझा था, जिस तरह का विश्वास और करीबीपन वो हमारे साथ महसूस करती थी, वैसे उसने किसी स्ट्रेट मर्द के साथ कभी महसूस नहीं किया था।
हमारे बीच एक अलग ही कनेक्शन सा था। हमारी छुअन में प्यार भरी छुअन की एक मिठास थी, जिस तरह हम एक-दूसरे को प्यार से छूते थे, वो मुझे भी बहुत पसंद था। हम अक्सर ही एक-दूसरे से चिपक कर बैठे हुए पाए जाते थे। अगर वो मर्द होती तो मेरे दिमाग में उसके साथ सेक्स करने का आईडिया ज़रूर आता माना कि हम दोनों सेक्सुअल रिलेशनशिप में नहीं थे, पर क्या इससे हमारे बीच का वो टेंशन कुछ भी मायने नहीं रखता था? हम दोनों के बीच कामुक टेंशन अभी भी था पर अपनी पहचान के बारे में हमारे उस खुलासे से हम दोनों के बीच का इक्वेशन बदल गया, क्योंकि हमारे समाज में अलग-अलग रिलेशनशिप को अलग-अलग सीमाओं में बांध कर रखा जाता है। हर रिलेशनशिप के लिए अलग-अलग नियम पहले से ही बना कर रखे हुए हैं।
जब हम नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में थे तो वहां भी लोग रिलेशनशिप के अनकहे रूल्ज़ फॉलो करते थे। अगर एक लड़का और लड़की के बीच थोड़ा सा भी आकर्षण हो तो अगला कदम प्रोपोज़ करना ही होता था। उनके बारे में पूरे कैंपस में खुसुर-फ़ुसुर शुरू हो जाती थी, क्योंकि हमारे समाज में एक रिलेशनशिप को इसी तरीके से देखा जाता है। अगर आपको कोई प्रोपोज़ करे तो ऐसा लगने लगता जैसे आप लाइफ के खेल में एक लेवल आगे बढ़ गए हों।
सिंगल लोगों की स्टॉल वाली सीट से, आप यूं एक झटके से गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड वाली बाल्कनी पर पहुंच जाते थे, चूंकि मैंने अपनी सच्चाई किसी को नहीं बताई थी तो लोगों ने मुझे स्ट्रेट ही मान लिया था। वैसे भी बाहर की दुनिया की तरह ही वहां इंस्टिट्यूट में भी रोमांटिक रिलेशनशिप को सबसे टॉप स्थान दिया जाता था। उसके बाद दोस्ती का नम्बर आता था, लेकिन प्यार और दोस्ती के बीच भी एक ज़ोन होता है जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता और ना ही इसमें होने का कोई इकरार भी करता है।
लोग अपने जिस दोस्त को ‘उस तरह’ से नहीं चाहते उसको फ्रेंडज़ोन के कैदखाने में बंद कर देते हैं यानि उस दोस्ती को उन सीमाओं में कस के बांध दिया जाता है। इसमें वो लोग शामिल होते थे, जो अपने किसी एक दोस्त से थोड़े ज़्यादा करीब होते हैं पर उन्हें अपने दोस्त के लिए ‘वो वाली फीलिंग’ नहीं आती है जैसे कामुकता और दोस्ती का कोई मेल ही नहीं है।
दो दोस्तों के बीच बिना सेक्स हुए आकर्षण होना लोगों के समझ के बाहर था। यह माना जाता था कि दोस्तों के बीच आकर्षण नहीं हो सकता और अगर आकर्षण है तो सेक्स भी होगा ही। यदि हम सेक्स की बात करें तो यहां पर भी लोगों ने उसका रास्ता फिक्स कर रखा था। इसके चार लेवल थे, जो लोगों द्वारा ही बनाये गए थे, जिसके अनुसार, शुरुआत चुम्मे/किस से होती है और सेक्स पर खत्म होती है। इन रूल्ज़ को सब फॉलो करते थे और जो इन नियमों का उल्लंघन करते उनको फिर से जीरो पर से शुरुआत करनी पड़ती थी।
अलंकृता के प्रपोज़ल को ठुकरा देने के बाद हमारे बीच उस मीठी छुअन की कोई जगह ही नहीं रही। हमने इस नई दोस्ती के रूल्स में फिट होने की भरपूर कोशिश की पर धीरे-धीरे हम दोनों के बीच का कनेक्शन ऐसा टूटा कि फिर जुड़ ही नहीं पाया और हमारे रिश्ते का एक खामोश अंत हो गया।
अलंकृता से अलग होने के समय तक हमारे दिमाग का घड़ा सवालों से भर चुका था, ये जिसको सेक्स कहते हैं इसकी शुरुआत कहां से होती है? अगर किसी को पसंद करो तो लोग ये क्यों पूछते कि बात कितने आगे बढ़ी? ऐसा ज़रूरी है कि किसी को पसंद करने का अंत बिस्तर पर ही हो? किसी को अगर चाहो तो लोग ये पहले क्यों पूछते हैं कि मामला कितना आगे बढ़ा? दो लोगों के बीच जो एक अनकहा मीठा सा एहसास होता है ज़रूरी तो नहीं कि आगे चल के उसका अंत सेक्स ही हो?
चाहत और कामुकता केवल शारीरिक ही होती है? मन की खुशी का क्या? हर रिश्ते को पूरा करने के लिए, क्या सेक्स होना ही चाहिए? क्या हम अपने किसी दोस्त को अपनी जान से ज़्यादा करीबी साथी नहीं बुला सकते? किसी दोस्त के साथ बिना सेक्स के रिलेशनशिप नहीं हो सकती है? हम दोस्ती के पानी में जितना उतरते गए सेक्स, चाहत और प्यार के बारे में हमारे ख्याल बदलते गए।
अलंकृता के बाद हम जिस भी लड़की के करीब होते, हम उसे अपनी सच्चाई बता देते ताकि उनके लिए दोस्ती वाली फीलिंग के अलावा कोई दूसरी फीलिंग एक हलकी, गीली, मदहोश सी धुंध बनकर हमारी दोस्ती पर फैल ना जाए और हम इस तरह की फीलिंग को अपने अंदर उठने से रोक सकें यानि हमारे मन में आदर्श फ्रेंडशिप वो थी जिसमें कुछ भी सेक्सुअल ना हो और हम इस तरह अपनी दोस्तियों को उस मुकाम पर ले जाने की कोशिश कर रहे थे और वह हमारी बहुत बड़ी ही बेकार कोशिश थी।
आंचल और हम कॉलेज की ड्रामेटिक सोसाइटी में थे। हमारी मुलाकात उसी के ज़रिये हुई थी। हमने साथ में कई ड्रामे लिखे, डायरेक्ट किए और उनमें एक्टिंग भी की। रोज़ रिहर्सल के बाद होस्टल जाते समय हमारी बात होती थी। हम एक-दूसरे से काफी ओपन थे और खुशी में एक-दूसरे का हाथ थामना, बीच सड़क गले लगाना, बर्थडे में स्पेशल गिफ्ट्स बनाना, लम्बे वॉक्स पर जाना और एक-दूसरे की तारीफ करना सब शामिल था। उसे सच बताने में हमें कोई परेशानी नहीं हुई हां, उसे भी बाकी लड़कियों की तरह लगा था कि हम उसे प्रोपोज़ कर रहे हैं पर उसने खुले दिल से हमें एक्सेप्ट करते हुए कहा अरे आदि अब हम साथ में लड़के ताड़ेंगे।
उसका जवाब सुनकर हम तो लाल ही हो गए। उसके साथ अपने दिल की इतनी प्राइवेट बात शेयर करके हम और करीब आ गए थे। हमने ऐसा किसी और के साथ पहले कभी नहीं किया था। अब हम अपनी फंतासी और चाहतों के बारे में खुलकर एक-दूसरे से बात कर सकते थे। उसके साथ हमें काफी कम्फ़र्टेबल लगता था, क्योंकि बिना घबराए हुए हम उसके साथ कुछ भी शेयर कर सकते थे और उस शेयर करने का हमारी दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ता था।
हम एक-दूसरे के साथ सेक्स करने में इंटरेस्टेड नहीं थे पर चांदनी रातों में एक-दूसरे के साथ टहलते हुए, जो कामुक आकर्षण हम महसूस करते थे, वो हमें अच्छा लगता था। हमें एक-दूसरे के करीब रहना अच्छा लगता था और साथ में बहुत सारी चीज़ें करना, एक-दूसरे की बात सुनना अच्छा लगता था। लोग हमें कपल ही मानते थे, क्योंकि हम एक-दूसरे के साथ वैसा ही बर्ताव करते दिखते थे। हमें अपने बारे में हर तरह की कहानी और गॉसिप सुनने में मज़ा आता था।
हमने और आंचल ने अपने रिश्ते को किसी खास वर्ग में फिट होने के लिए अपनी फीलिंग्स या आकर्षण को बदला नहीं एक गे लड़का और स्ट्रेट लड़की की दोस्ती के आदर्श केटेगरी में फिट होने की कोशिश नहीं की। इसकी हमें कभी ज़रुरत ही नहीं पड़ी। उसके पहले बॉयफ्रेंड ने हमें इस केटेगरी में फिट करने की कोशिश की थी, क्योंकि शायद उसके लिए, हमारे और आंचल के रिश्ते को समझना मुश्किल था या फिर यह हमारे रिश्ते को एक्सेप्ट करने का उसका तरीका था।
हमारा ऐसा कनेक्शन स्ट्रेट मर्दों के साथ नहीं हुआ और ज़्यादा देर तक हम उनके साथ नहीं निभा सकते थे। उनसे बात करते वक्त भी हमारे दिमाग के पीछे ये ही चलता रहता था कि हम में और उनमें फर्क है। ऐसा नहीं था कि हमारे बीच कामुक भावना की कमी थी। एक बार हम एक दोस्त के साथ एक शो की तैयारी कर रहे थे। उसमें बहुत से सीन में हम दोनों काफी करीब थे। रिहर्सल के दौरान हमने बिना ये डांस जाने, बॉलरूम डांस किया और एक-दूसरे के इतने करीब थे, कि हम एक दूसरे की सांसों की गर्माहट एक-दूसरे पर महसूस कर सकते थे।
उसके बाद रिहर्सल में हम कभी शादीशुदा कपल्स बने या मालिक और नौकर, जो बाद में प्रेमी बन गए थे। हमारी प्रैक्टिस ज़्यादा दिन नहीं चली पर उसके बाद भी लोग सोशल मीडिया पर हमारी परफॉर्मेंस की तारीफ करते रहे जिसे देख कर हम दोनों थोड़े लाल हो जाते थे पर ये इक्वेशन तब तक ही रहा जब तक उसे मेरी सच्चाई का पता नहीं चला। उसके बाद तारीफें भी रुक गईं और हम दोनों के बीच भी सिर्फ अजीब सा हाई-हेलो ही रह गया। वो भी सिर्फ कैंटीन में होता था, जहां एक-दूसरे को इग्नोर करना बहुत मुश्किल था।
एक बार हमने कॉलेज जूनियर को बताया कि हम गे हैं तो उसका पहला सवाल था कि कहीं इंटरेस्टेड तो नहीं हैं? मैं स्ट्रेट हूं। इन स्ट्रेट मर्दों के अंदर आपसी दोस्ती में अगर आकर्षण या शारीरिक करीबीपन का एहसास होने लगता है, तो वो थोड़े सकपका से जाते हैं, क्योंकि ये उनके स्ट्रेट होने के रूल्स के खिलाफ हो जाता है, जिसे वो समझ नहीं पाते हैं। उन्हें अपनी सेक्सुअलिटी के सच का सामना करने में डर लगता है। वो इस फीलिंग को नाम नहीं दे पाते या सकते हैं। इसे समाज के रूल्स के अंदर नहीं बांधा जा सकता है।
हमारा तो यही तजुर्बा रहा है। हमने इसके बारे में उनसे बातचीत नहीं की, क्योंकि हमें डर था कि कहीं उन्हें हमारी बातें, उनकी मर्दानगी पर सवाल उठाने जैसी ना लगें और गुस्से में हमारे मुंह पर एक घूंसा रसीद कर दिया जाए पर कॉलेज में कुछ लड़के थे, जिनके हम करीब आए शायद जैसा हम आंचल के साथ फील करते थे। वैसे ही वो हमारे साथ करते थे पर उनके लिए इस फीलिंग को समझना मुश्किल था। उनके पास इस के लिए कोई नाम नहीं था शायद उन्हें पता नहीं था कि सेक्स के बिना भी दोस्ती में नज़दीकियां संभव हैं और हमें इस किस्म की कामुकता को समझने और अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।
हमारा एक बाईसेक्सुअल दोस्त है सुयश दोस्ती में आकर्षण को लेकर उसके हमसे अलग अनुभव थे। उसकी कामुकता ने स्ट्रेट मर्द के साथ उसकी दोस्ती को और पक्का कर दिया। उसने अपने दोस्त के बारे में बताया मैं जब तनवीर से मिला था तो मुझे शुरुआत में इंटरेस्टिंग लगा था पर उतना पसंद नहीं आया था। उसे देख कर थोड़ा डर भी लगता था। मेरे इर्द-गिर्द के और सिस-विषमलैंगिक आदमियों जैसे फिर हम साथ टाइम बिताने लगे और मैं ये समझा कि मुझे उससे घबराने की ज़रुरत नहीं है।
इस तरह हम एक-दूसरे के करीब आए और इससे हमारी दोस्ती बढ़ी। हमारी एकदम जय-वीरू वाली दोस्ती थी। उसके लिए मेरी चाहत भी तभी बढ़ी और एक बार मुझे घर बदलना पड़ा पर मैं उसके फ्लैट पर नहीं जाना चाहता था। तू नहीं जाएगा और किसी के साथ नहीं जाएगा चल मेरे साथ ही रहेगा तू वो हर बार बोलता था और आखिर में कई इमोशनल कॉल्स के बाद और बाकी सारे रास्ते बंद कर के उसने मुझे उसके साथ रहने को मना ही लिया फिर मैंने उसे अपनी सच्चाई बता दी। इसके बावजूद की मैं उसे पसंद करता हूं, उसने हमारी दोस्ती नहीं तोड़ी नहीं तो ज़्यादातर स्ट्रेट मर्द मेरी सच्चाई जानकार थोड़े घबरा जाते हैं पर तनवीर के साथ मेरे सच बोलने के बाद भी हमारी दोस्ती और पक्की होती गई।
अपने एल.जी. बी. टी. क्यू+ दोस्तों के साथ हमारी अनकही फीलिंग्स शेयर करना आसान था। हम अपनी चाहतों और दोस्ती को बिना नाम दिए उन्हें बढ़ने की आज़ादी दे सकते थे। उन्होंने हमें प्यार के नए मायने दिए ताकि बिना किसी उम्मीद या समाज के रिलेशनशिप के नियमों का पालन किए हम अपनी फीलिंग्स को दिल खोल कर अपना सकें। उनका जश्न मना सकें और इसकी झलक हमें अपने एक क्वीयर फ्रेंड में दिखी। उसका नाम रमन था, वो गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था। उसने अपनी दोस्ती का राज़ बताया और जो उसकी महिला दोस्तों के रिश्ते को मज़बूत करती है।
मेरी एक दोस्त दूसरी यूनिवर्सिटी में पढ़ती है। हम लोग एक-दूसरे को तन और मन दोनों से जानने की कोशिश कर रहे हैं। वह मेरे बारे में सब जानती है। हम वो सब करते हैं, जो एक नार्मल कपल करते हैं। हम दोनों रिलेशनशिप में नहीं हैं और वो ये भी जानती है कि मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है पर हम दोनों को एक-दूसरे के साथ हम-बिस्तर होना अच्छा लगता है। इसे समझना थोड़ा मुश्किल है पर हमारे बीच का सेक्स थोड़ा अलग सा है। वो केवल शारीरिक सुख तक सीमित नहीं है। हम एक-दूसरे को अपने हुक-अप्स/ hook ups के बारे में बताते हैं।
मैं उससे पूछता हूं कि उसे बिस्तर पर क्या अच्छा लगता है? उसे क्या मज़ा देता है ताकि मैं भी उसे वो सुख का अनुभव करा सकूं। हम दोनों एक-दूसरे के सामने खुली किताब से हैं ना कोई शर्म है, ना कोई पर्दा। इतना ओपन तो मैं मर्दों के साथ भी नहीं हूं। हालांकि, उनके साथ मुझे सेक्स करना अच्छा लगता है पर इन लड़कियों को हमसे ऐसी कोई उम्मीद नहीं होती है, जिससे हम दोनों अपनी बॉडी को लेकर कम्फ़र्टेबल महसूस करते हैं।
कई बार लगता है मर्दों के मुकाबले औरतें ज़्यादा सेंसिटिव और अपनाने की ताकत रखती हैं। मैं भले ही मर्दों की तरफ आकर्षित हूं पर औरतों के साथ एक अपनापन और करीबपना महसूस करता हूं। मुझे स्ट्रेट मर्दों से बात करना अच्छा नहीं लगता है, क्योंकि उन्हें लगता है, कि मैं उन पर लाइन मार रहा हूं और वो मेरा मज़ाक बनाते हैं। उनका ईगो शीशे की ग्लास की तरह होता है।
एक गे आदमी के आसपास वो स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं। क्या पता अगर उन्हें ये गे इंसान पसंद आ जाए और छन्न से उनका ईगो टूट जाए? मैं खुद का परिचय अब क्वीयर के रूप में देता हूं, क्योंकि मेरी दोस्त की तरफ मेरी फीलिंग्स क्वीयर हैं। मुझे लगता है दोस्ती में कोई नियम नहीं होने चाहिए कि ये कर सकते हैं, ये नहीं कर सकते हैं। दोस्ती में हमें एक-दूसरे को समझने की ज़रुरत होती है। हर दोस्ती अलग होती है और उन्हें एक ही मापदंड से नहीं मापा जा सकता है।
अनामिका और क्रिया लखनऊ में रहने वाली हमारी दो हिजड़े दोस्त हैं, जो इस तरह की दोस्ती निभा रही हैं। कभी ये मेरी हसबैंड बन जाती हैं, कभी मैं इनकी हसबैंड बन जाती हूं। अनामिका को कंधों से बांहों में लेते हुए क्रिया बताती है। कई मर्द उनके साथ सेक्सुअल रिलेशनशिप रखना चाहते हैं पर वो उन्हें अपनी दूसरी औरत के रूप में देखना चाहते हैं ना ही उनको पार्टनर का दर्जा मिलता है और हिजड़ा कम्युनिटी की होने के कारण उन्हें औरत से कम ही समझा जाता है।
मर्दों के साथ सेक्सुअल रिलेशनशिप में उनको कोई कामुक आकर्षण महसूस नहीं होता है। केवल आपसी दोस्ती में ही वो इसे महसूस कर पाती हैं। इस तरह वो ज़िन्दगी को नए आत्मविश्वास के साथ जी रही हैं और साथ ही प्यार के नए अवतारों से मुलाकत होती है, जो जीने के लिए ज़रूरी होते हैं। इन रिश्तों को समाज अपने बनाए हुए नियमों और तरीकों के आधार पर नाम कैसे दे पायेगा? क्या वो शादीशुदा हैं? या फिर ये दोस्ती ऐसे ही काम करती है।
सुयश फ्रेंडज़ोन के बारे में कहता है कि फ्रेंडज़ोन बड़ा ही नेगेटिव शब्द है। इससे दो लोगों के बीच के रिश्ते की इम्पोर्टेंस कम हो जाती है। ये सब शब्द अपने साथ खुद के नियम ले कर आते हैं। ये हदें हमारी ज़िन्दगी को दिशा देती हैं पर एक गहरे काम्प्लेक्स रिलेशनशिप से वंचित भी कर देती हैं और इन रिश्तों का अपमान कर देती हैं।
हमारी समझ में एक बात आ गई है कि दोस्ती को किसी हद के अंदर नहीं बांध सकते। प्यार को हमें थोड़ा क्वीयर रंगों वाले चश्मे से देखना चाहिए, ऐसे रूप में जहां कोई ऊंच-नीच नहीं है। उसमें सब तरह के प्यार की जगह है। यूं हम अपनी ज़िन्दगी अपनी सच्चाई को अपना कर जी सकते हैं। किस करना, केवल रोमांस तक ही सीमित क्यों हो?
अगर अपने दोस्तों के साथ हमारे कामुक आकर्षण से भरे रिश्ते हमारे सेक्सुअल पार्टनर्स के साथ हमारे रिश्ते जितने अहम् हों या उससे ज़्यादा तो क्या हो? समाज द्वारा बनाए गए रिश्तों के रूल्स के अलावा हम अलग-अलग तरह की दोस्ती के लिए कैसे जगह बना सकते हैं? अगर हम इन जज़्बातों को नाम दे सकें और इनका इज़हार करने की हिम्मत करें तो हम अपने को किस नई दुनिया में पाएंगे ?
आदित्य विक्रम अपनी सुबह बिना खिड़की के रूम में कविता लिख कर बिताते हैं और शाम छत पर नाच कर और उनकी कविताओं के विषय क्वीयर आज़ादी, पिता -पुत्र के रिश्तों और कुछ खो डालने के बाद की स्थिति को लेकर हैं। आजकल वो अशोका यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी विषय में मास्टर्स कर रहे हैं।
लेख – आदित्य विक्रम द्वारा
चित्रण – शिखा श्रीनिवास द्वारा
अनुवाद – प्राचिर कुमार