कोरोना के संक्रमण ने जिस तरह हमारे गाँवों को प्रभावित किया था, उससे यह साफ अंदाजा हो गया था कि इसे लेकर अभी भी लोगों में जागरुकता का अभाव है। वहीं अभी भले ही आंकड़ों में कमी आई है और टीकाकरण की रफ्तार को बल दिया गया है मगर कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों में डर कायम है।
‘हाउ इंडिया लिव्स’ ने बीबीसी मॉनिटरिंग के शोध का आंकड़ा देते हुए बताया है कि दूसरी लहर के दौरान देश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना तेज़ी से अपना पैर पसारने में कामयाब रहा था, जिसके पीछे अनेक कारण थे। इनमें युवाओं के पास अपने ही इलाके में रोज़गार नहीं होने के कारण उनका पलायन करना भी एक प्रमुख कारण था। रोज़गार के लिए दूसरे राज्यों में गए युवा लॉकडाउन के कारण जब घर वापस आए तो इनमें संक्रमितों की एक बड़ी संख्या थी, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के प्रकोप को बढ़ाने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई थी।
बढ़ती हुई बेरोजगारी देश के युवाओं की मुख्य समस्या
हमारे देश में युवाओं के सामने रोज़गार का संकट कोई नया नहीं है बल्कि यह मुद्दा हमेशा से सामाजिक रूप से शिखर पर ही रहा है। रोज़गार की कमी और पैसों के अभाव में लोग अपनी जड़ें छोड़कर पलायन करने पर मज़बूर हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही घटना राजस्थान के उगरियावास गाँव की भी है।
इस गाँव की आबादी करीब 4000 है, लेकिन दुखद बात यह है कि गाँव में रोज़गार का कोई बड़ा साधन नहीं है, जिस कारण लोग सुबह ट्रेन पकड़कर जयपुर शहर जाते हैं और वहां दिनभर काम करने के बाद शाम के वक्त अपने गाँव लौट आते हैं, जिस कारण गाँव वालों के दिल में डर बरकरार रहता था कि कहीं उनका रोज़गार गाँव में कोरोना के वायरस को बढ़ाने का कारण ना बन जाए।
गाँव वालों से बातचीत में पता चला कि गाँव में संक्रमण को रोकने की कोई भी मुकम्मल तैयारी नहीं थी। वहां के लोगों ने बताया कि जब उन्हें कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो वह काफी डर गए थे लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने कहा कि हमारे गाँव में कोरोना वायरस का डर नहीं है। वहीं युवाओं का तर्क था कि भले ही जयपुर में कोरोना वायरस का संक्रमण है, मगर रोज़गार के लिए हम जयपुर जाना छोड़ नहीं सकते हैं। हमारे लिए इसके अलावा कोई पैसे कमाने का दूसरा ज़रिया नहीं है।
रोज़गार के कारण गाँवों से पलायन कर रहे हैं युवा
गाँव के लोगों की बातों से साफ है कि लोग रोज़गार के कारण ही घर और अपनी ज़मीन से दूर होते हैं, अगर उनके गाँव में ही रोज़गार के साधन बना दिए जाएं, तो बड़ी संख्या में पलायन रुक सकता है। इसके लिए गाँवों में कारखाने लगाएं जा सकते हैं, ताकि मज़दूरी करने के लिए भी दूसरे शहर या राज्य ना जाना पड़े। शहरों की तरह गाँवों में भी स्कूलों को उच्च मानक का बनाने की आवश्यकता है, ताकि शिक्षा की खातिर बच्चों का पलायन रुके।
इन सब में सबसे ज़रूरी बात यह है कि गाँवों में अस्पतालों को नए पैमाने पर निरीक्षण करते हुए उसे दोबारा नए तरीके से खड़ा किया जाना चाहिए ताकि गाँव में ही रह कर ग्रामीणों को स्वास्थ्य से जुड़ी सभी सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। इससे शहर के अस्पतालों पर भी बोझ कम पड़ेगा। ग्रामीण दुर्गा लाल ने बताया कि हमने अखबारों में पढ़ा था कि सर्दी-खांसी है तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए और 2 मीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए मगर हमारे गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में सुविधाओं का अभाव है, जिसकी वजह से हमें शहर के अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।
ग्रामीणों के अनुसार, गाँव में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तो है, जहां तैनात डॉक्टर गाँव वालों को कोरोना वायरस से बचने के उपाय तो बताते हैं, लेकिन किसी प्रकार की बीमारी होने पर वहां दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में लोग दवा के नाम पर आयुर्वेदिक और देशी इलाज करवाने पर मज़बूर हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य समस्याओं की बदहाली
वास्तव में भारत को कृषि प्रधान और गाँवों का देश कहा जाता है। ऐसे में अगर भारत के गाँव सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो भारत ही सुरक्षित नहीं रह पाएगा। कोरोना के इस खतरनाक दौर में यदि हम गाँवों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने में नाकाम रहे, तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। देश ने कोरोना की दूसरी लहर की भयानक त्रासदी को देखा है, जिसमें ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की चरमराई सूरतेहाल सामने आई है। बड़ी संख्या में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से निपटने के इंतज़ामों की पोल खुल गई है। ऐसे में तीसरी लहर और उससे होने वाली किसी भी तबाही को हमें समय से पहले रोकने की आवश्यकता है। हमें ज़रूरत है समय रहते इससे सबक लेने और गाँव-गाँव की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की।
इसके साथ-साथ सबसे बड़ी ज़रूरत गाँवों में रोज़गार उत्पन्न करने की है, ताकि युवाओं के पलायन को रोका जा सके। ग्रामीण युवाओं के हुनर से गाँवों की तकदीर को बदलना मुमकिन है। हमें ज़रूरत केवल इच्छाशक्ति की है। केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें युवाओं के हुनर को निखारने के लिए कई प्रकार की योजनाएं चला रही हैं।
यदि उन योजनाओं को ईमानदारी से धरातल पर उतारा जाए और युवाओं को उससे जोड़ा जाए तो ना केवल पलायन जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है बल्कि इससे कोरोना और उसकी जैसी फैलने वाली अन्य घातक बीमारियों को भी आसानी से रोका जा सकता है। गाँवों में हुनर की कमी नहीं है, कमी है तो उस हुनर को पहचानने और उसे रोज़गार से जोड़ने की। यही वो मंत्र है, जो गाँवों से युवाओं के पलायन जैसी समस्या को रोक सकता है।
नोट- यह आलेख रांची, झारखंड से नेहा कुमारी ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।