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हम जानते हैं, लेकिन हम करते नहीं..

कभी-कभी हम दिखावा करते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं और जो हम जानते हैं वह केवल सही है और बाकी को उसका पालन करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि अगर कोई सही है तो दूसरा गलत है। हमें सभी के ज्ञान का सम्मान करना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए। कुछ जानना आसान है। वास्तव में इसे अमल में लाना पूरी तरह से अलग है। हम सभी जानते हैं कि हमें स्वस्थ खाना चाहिए, व्यायाम करना चाहिए, कड़ी मेहनत करनी चाहिए और अनुशासित रहना चाहिए। लेकिन हममें से कितने लोग उन सिद्धांतों को जीते हैं जिनका हम पालन करते हैं?
जानने-समझने का अंतर, ज्ञान और क्रिया के बीच का अंतर है। हम उन लोगों की प्रशंसा करते हैं जिन्होंने केवल तथ्य और डेटा एकत्र किया है। विरले ही वे बुद्धिमान होते हैं जिन्होंने अपने को भीतर से बदल लिया हो। प्राचीन भारतीय संतों ने ज्ञान पर जोर दिया और एक स्पष्ट मार्ग निर्धारित किया जिसके द्वारा इस जानने-समझने की अंतर संपूर्ण करे । ज्ञान को मुख्यतया आँख, कान, नाक, जीभ व् त्वचा जैसी ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त किया जाता है। दुनिया को बदलने की इच्छा से बेहतर है की हम आपने आप को बदले। एक सुखी मन एक सुखी संसार की कल्पना करता है, एक तड़पता हुआ मन एक दयनीय संसार को देखता है। अपने विचार बदलें और आपकी दुनिया चमत्कारिक रूप से बदल जाए ।
भगवद् गीता आपको खुद को समझने, अपनी ताकत की पहचान करने और कमजोरी को दूर करने के लिए मदद करती है। वह ज्ञान को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है और मूल सोच को प्रज्वलित करता है।
मनुष्य के रूप में, हमारे पास दुनिया पर ध्यान केंद्रित करने, या आत्मा में प्रवेश करने का विकल्प है।
हमें पूर्ण पूर्ति के लक्ष्य के लिए सबसे प्रभावी मार्ग खोजने की जरूरत है। कुछ लोग कल्पना करते हैं कि जो भौतिक स्तर से परे है और भगवान की पूजा करता है। वे स्थायी सुख चाहते हैं। वे ज्ञान को प्राप्त होते हैं। मोक्ष से मुक्ति मिल सकती है। इसे प्राप्त करने के लिए दो रास्ते हैं। ज्ञान या भक्ति,चुनाव आपका है।
धन्यवाद
किसलय कुमार झा

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