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कैसे बना अफगानिस्तान आतंकीस्तान

talibaan in qabul afganistaan

15अगस्त 2021 का वह दिन अफगानिस्तान के इतिहास में एक ऐसा काला दिन बन गया जिसे पूरी दुनिया मौन होकर देखती रही अफगानिस्तान को तालिबान के हाथों में जाते हुए। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान ने अपना कब्जा जमा कर यह स्पष्ट कर दिया है कि अब तालिबान वहां अपना निरंकुश और राजग शासन स्थापित करेगा।

तालिबान की शुरुआत कब हुई।
1994 दक्षिण अफगानिस्तान में इसकी शुरुआत हुई थी। छात्रों को पश्तो जुबान में तालिबान कहा जाता है। लेकिन यह ऐसे छात्र थे जो इस्लामिक कट्टरपंती की विचारधारा रखते थे। तालिबान की सदयस्ता केवल उन्हीं छात्रों को मिलती हैं जो पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के मदरसों में पढ़ते हैं। सोवियत संघ ने जब अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाया उसी दौर में तालिबान का उभार हुआ। ऐसा माना जाता है कि धार्मिक मदरसों में पश्तो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार भी किया जाता था और ऐसा भी कहा जाता है कि इस आंदोलन की फंडिंग सऊदी अरब से की जाती थी। सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा किया और उसके ठीक 1 साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर अपना कब्जा कायम कर लिया। फरवरी सन 2009 में तालिबान ने पाकिस्तान की उत्तर-पश्चिमी सरहद के करीब पाकिस्तान के साथ समझौता किया कि वे लोगों को मारना बंद करेंगे और इसके बदले उन्हें शरीयत के अनुसार काम करने की छूट मिलेगी।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शरिया कानून।
शरिया शब्द का मतलब है “पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता”। यह इस्लामिक कानून व्यवस्था है। इसे कुरान और इस्लामी विद्वानों के फतवों को मिलाकर तैयार किया गया है। इस कानून का उद्देश्य केवल मुसलमानों को यह समझाने का है कि उन्हें अल्लाह की इच्छा के अनुसार कैसे अपना जीवन जीना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान पर दोबारा से अपना कब्जा जमा चुका तालिबान फिर से अफ़ग़ानिस्तान में शरिया क़ानून लागू कर रहा है। तालीबान के प्रवक्ता जबीहुल्ल मुजाहिद ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि हर देश का अपना कानून और न्याय नीति है उसी तरह हमारी धार्मिक मान्यताओ और मूल्यों के अनुसार अफगानों को अपने कानून और
नियम तय करने का पूर्ण अधिकार है। साथ ही मुजाहिद ने यह भी साफ कर दिया है की “हम शरिया के अनुसार महिलाओं के हक तय करने को प्रतिबद्ध है”।

तालिबान और अमेरिका।
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद तालिबान दुनिया की नजरों में आ गया था। उस आतंकी हमले के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को सन 2001 में सत्ता से बाहर निकाल फेंका था। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के वादे के बाद तालिबान को फिर से अपने पांव पसारने का और अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने का मौका मिल गया।
अब दो दशको की लड़ाई के बाद तालिबान ने फिर एक बार अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया है। काबुल के पूर्व में स्थित मैदान बर्दाक भी तालिबान के हिस्से में चला गया है। अब अफगानिस्तान के ऐसे हालत देख उसे तालिबानिस्तान कहना गलत नहीं होगा(होना चाहिए)।
कितने और किस तरह के हथियार और विमान तालिबान के पास।
एक रिपोर्ट के अनुसार जून अंत तक उड़ान वायुसेना के पास कुल 167 लड़ाकू एयरक्राफ्ट थे। परंतु यहां स्पष्ट नहीं कहा जा सकता की उन 167 एयरक्राफ्ट में से तालिबान ने कितनों अपने नियंत्रण में ले लिया है। 16 जुलाई को ली गई एक सैटेलाइट इमेज 16 एयरक्राफ्ट देखे जा सकते हैं। जिसमें 5 फिक्स्ड विंग विमान दो एम आई 17 और नो ब्लैक हॉक्स हेलीकॉप्टर शामिल है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि कुछ विमानों को दूसरे एयरबेस या फिर अफगानिस्तान की सीमा से बाहर ले जाया गया है। अमेरिकी सरकार की सन 2003 से 2016 के बीच की अकाउंटेबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने अफगानिस्तान को विभिन्न प्रकार के उपकरण और सैन्य बल को बढ़ाने के लिए 3 लाख 58 हजार राइफल्स 64000 से भी अधिक मशीनगन 25,000 से अधिक ग्रेनेड और 22000 से भी अधिक हर सतह पर चलने वाली गाड़ियां भी दी थी।
कहां से और कैसे आता है तालिबान के पास इतना पैसा।
‌साल 1996 से 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया था। तालिबान की वार्षिक आय साल 2011 में लगभग 2900 करोड़ रुपए थी लेकिन एक पड़ताल में पाया गया कि साल 2018 के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 11000 करोड़ रुपए हो गया था। आम धारणा के मुताबिक तालिबान की कमाई का मुख्य जरिया नशीले पदार्थ जैसे कि अफीम और हेरोइन हैं। अफगानिस्तान अफीम और हीरोइन के उत्पादन में पूरे विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है हर साल अफगानिस्तान से लगभग 2 से 3 अरब डॉलर का अफीम दूसरे देशों में भेजा जाता है इससे भी तालिबान को अपनी आय का आंकड़ा बढ़ाने में मदद मिलेगी। लेकिन जानकारों का कहना है कि नशीले पदार्थ के अलावा भी तालिबान के पास कमाई की कई सारे जरिए है जिनमें मुख्य रूप से खनिजों का कारोबार और उसके कब्जे में आए इलाकों में से वसूले जाने वाला कर भी शामिल है। यह भी माना जाता है तालिबान को विदेशी मुल्कों से भी चंदा मिलता है जिनमें पाकिस्तान सहित सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे खाड़ी के देश शामिल है और लंबे समय से उनके संबंध तालिबान है परंतु इन देशों ने इस बात को कभी स्वीकारा नहीं। साथ ही साथ अफगानिस्तान कीमती पत्थर और खनिजो के मामले में भी काफी अमीर है अफगानिस्तान के पूर्व अधिकारियों और जानकारों के मुताबिक अफगान देश का खनन उद्योग लगभग एक अरब डॉलर की सीमा तक पहुंच चुका है। साल 2014 में यूएन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि हेलमंद प्रांत अवैध खनन से तालिबान ने हर साल एक करोड़ रूपये से भी ज्यादा कमाए थे।अब तो यह तालिबान और उसकी अफ़गानिस्तान बनने वाली सरकार पर निर्भर करता है कि वह अफगान की प्राक्रतिक और मानव निर्मित चीज़ों का किस तरह से उपयोग करेंगे।

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