जब आप पत्रकार शब्द सुनते हैं तो उसके साथ एक ज़िम्मेदारी के जुड़े होने का भी एहसास आपको होने लगता है। अब वो दौर रहा नहीं, जब आप लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहलाएं, क्योंकि मॉडर्न भारत के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार भी अब आधुनिक रूप में ढल चुके हैं।
किसी ज़माने में बगल में थैला लटकाए पत्रकार बाबू को समाज में बड़ी ही इज्जत से देखा जाता था। पत्रकार वो होता था, जिस पर जनता अपना आंख बंद करके विश्वास जता सकती थी। उस जनता को, यह बात पता थी कि फिल्मी पर्दे पर हीरो के मार-धाड़ वाले दृश्यों में सीटी बजाने से बेशक कुछ ना हासिल हो, पर पत्रकार को अपनी परेशानी बताने से हमारी बात सरकार के अधिकारियों तक पहुंच सकती है।
मैं ऐसा बिलकुल नहीं कह रहा हूं कि अब पत्रकार बोलने पर लोग आपसे हाथापाई पर मज़बूर हो जाएंगे पर शायद जनता की समस्या सुने बिना पत्रकारिता करें तो ये ख्वाब भी हकीकत बन जाए। ये दौर डिजिटल क्रांति का है। अब आप आसानी से मोबाइल जर्नलिज्म कर सकते हैं, इसलिए कहते हैं कि आजकल हर कोई अपने आप में एक पत्रकार है।
लेकिन, जो पत्रकारिता के गंभीर आकांक्षी हैं। उनके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी हो जाता है कि आगे की राह क्या रहने वाली है? क्योंकि अक्सर महिला खुद को अंजना ओम कश्यप और पुरुष खुद को रविश कुमार की जगह देखने लगते हैं। अब आपकी बारी है इसलिए बिना किसी व्यर्थ इच्छा किए अपनी बेस्ट रिपोर्ट देने मे जुट जाइए। अब अगर आप एक फील्ड रिपोर्टर हैं तो इसमे कोई दो राय नहीं है कि आपकी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ खबर के लिए सफर करने में खर्च हो जाएगा।
आपको बचत करने के लिए कई बार अपने कुछ इच्छाओं का भी बलिदान देना पड़ सकता है। आपके पास समय बिल्कुल भी नहीं रहेगा फिर चाहे परिवार के लिए या दोस्तों के लिए और धीरे-धीरे आपको इसकी आदत भी पड़ जाएगी। जब आप अपनी खबर और आपकी रिपोर्ट से पड़ने वाले बदलावों कों देखेंगे तो आपको अपनी तनख्वाह से ज़्यादा इस बात की खुशी होगी।
मैं अगर अपना तजुर्बा सांझा करूं तो एक बार कांग्रेस का प्रदर्शन चल रहा था। मैं उस समय केबीसी मीडिया के लिए उस प्रदर्शन को कवर कर रहा था। जब वो प्रदर्शन समाप्त हुआ तो मैं जी न्यूज़ के एक पत्रकार से बात करने गया, वो उस समय ज़ल्दी में थे और मुझे डांटने लगे कि तुम्हें किसने कहा इस लाइन में आने के लिए तुम अभी जवान हो तुम इसको बदल सकते हो। मुझे देखो मेरे बेटे को स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए 2.5 लाख की ज़रूरत थी, जो मैं नहीं कर सका और फिर वो अपनी गाडी में चले गए।
ऐसा ही एक मुद्दा किसान आंदोलन का था, जब मैं प्रो नेशन न्यूज़ के लिए सिंघु बॉर्डर कवर कर रहा था तब न्यूज़ 24 के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा जी से मुलाकात हुई। उन्होंने मुझसे कहा कि हम लोग इस लाइन को छोड़ कर जा रहे हैं और तुम आना चाह रहे हो। किसी न्यूज़ चैनल में एंकर बनो तो ठीक भी है, लेकिन ग्राउंड के पत्रकारों को अपनी ज़िन्दगी में बहुत चुनौतियां देखनी पडती हैं। जनता का आक्रोश, जनता का गुस्सा, आपके चैनल के एंकर द्वारा कुछ उलटी सीधी बात बोल दी गई हो तो उसको भी आप लोग ही संभालेंगे। तुम अभी युवा हो इसलिए अपने लिए कुछ अच्छा ढूंढ लो।
अब अगर बात मैं अपने घर की करूं तो कितनी बार मेरे देर शाम तक घर आने पर मेरी माँ पूछती है कि क्या सच में पत्रकारिता ही करनी है? मेरा जवाब अक्सर हां ही रहा और रहेगा आपको फील्ड में यकीनन काफी मेहनत करनी पडती है। धूप में पसीने, बरसात में सिहरन सब परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। एक तरीके से आप इसको पढ़ी-लिखी मज़दूरी भी कह सकते हैं।
आपको उन सभी तरह की कुर्बानियों के लिए तैयार रहना पड़ेगा, जो ये फील्ड रिपोर्टिंग आपसे मांगेगी। अगर कभी तकनीकी खराबी या अच्छा कनेक्शन ना होने के कारण आपकी खबर बर्बाद होगी तो लगेगा की वर्ल्ड कप जीतने के बाद भी आपको ट्रॉफी कप नहीं दिया गया। मेरे ऐसे कितने दोस्त हैं, जो इस लाइन से स्विच कर गए और उनमें से कितने आज मुझसे अच्छा पैसा कमा रहे हैं और अपनी ज़िन्दगी में भी खुश हैं।
यह भी एक कड़वा सच है कि आपको यह समझना होगा कि आप घर से निकले हैं आम जनमानस की समस्याओं का हल करने ना कि किसी एसी दफ्तर में बैठ कर कम्प्यूटर पर खट-पिट करने के लिए। कई बार ऐसा हो सकता है कि आपको राजा-महाराजाओं की तरह स्वागत सत्कार मिले और कितनी बार संगीन अपराधी की तरह जिल्लत भी मिले। अगर इन सभी बाधाओं को पार करने के लिए आप तैयार हैं तो मेरे यार मुबारक हो आप अपनी ज़िन्दगी में कामयाब हैं।