गोदान के होरी, धनिया और गोबर, मीना दादी के लिए ईद पर चिमटा खरीदता अब्दुल, प्रसव-पीडा से कराह रही धनिया, लाचार व मदमस्त मदिरा पीते बाप बेटे घीसू और माधव, ठाकुर के कुएं पर पानी भरने गई गंगी, पूस की रात में खेत पर कांप रहा हलकू साथ में कूं कूं करता उसका संगी कुत्ता जबरा, अपने दो बैलों हीरा और मोती को प्यार से सहलाता झूरी और तमाम ऐसे चरित्रों के सृजक आज भी अपनी कहानियों के माध्यम से हमारे बीच हैं! मशहूर-ओ-मा’रूफ़, कहानीकार मुंशी प्रेमचंद।
एक लेखक के विचार उनकी कहानियों में हमेशा ज़िंदा रहते हैं। कहानियां, जो प्रभावित होती हैं हमारी दुनिया से। वहीं कहानियां और विचार एक लेखक की विरासत होती है। समय के साथ कई चीज़ें बदल जाती हैं, पर कुछ कहानियां आज भी यथार्थ लगती हैं। प्रसिद्ध लेखक धनपत राय, जिन्हें हम प्रेमचंद के नाम से जानते हैं, भी ऐसी ही एक शख्सियत हैं जिनके लेख आज भी लाखों दिलों में ज़िंदा हैं।
वे एक सफल लेखक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। प्रेमचंद ने अपने विचार अलग-अलग साहित्य रूपों में अभिव्यक्त किए। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में उस समय की सामाजिक स्थितियां झलकती हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया है। उनकी कृतियां भारत के जन सामान्य और विविध जाति-वर्ग की कृतियां हैं। प्रेमचंद अपनी कहानियों से मानव-स्वभाव की आधारभूत महत्ता पर बल देते हैं।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के सिरमौर माने जाते हैं। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का जीता-जागता सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज़ है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज़, बिन मेल की जोड़ियों का विवाह, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष असमानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। राष्ट्रवादी आंदोलन के दौरान मौजूद सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को भी उन्होंने अपनी कहानियों में प्रतिबिंबित किया। भारतीय साहित्य का बहुत सा विमर्श, जो आज भी प्रासंगिक है जैसे दलित साहित्य या नारी साहित्य उसकी जड़ें भी प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं।
हिंदी साहित्य को एक नई दिशा प्रदान करने के लिए जाने जाने वाले प्रेमचंद ने आम आदमी के जीवन में आने वाली परीक्षाओं और समस्याओं को एक नया रूप प्रदान किया। उन्होंने मानवीय भावनाओं और कहानी कहने की कला को नए सिरे से परिभाषित किया।
प्रेमचंद भारत में किसानों के बारे में उस भाषा में लिखने वाले पहले महत्वपूर्ण लेखक थे, जो सामान्य जन की भाषा थी। उन्होंने विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष के तीन दशकों के महत्वपूर्ण इतिहास को भी रेखांकित किया है। प्रेमचंद का लेखन ना केवल राष्ट्रवादी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है बल्कि इस समय की किसान स्थितियों का भी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। उनका उपन्यास एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड जैसा है और इस अवधि के सामाजिक इतिहास का पूरक है।
उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियां, सत्रह उपन्यास, आत्मकथाएं, नाटक और बहुत से लेख लिखे साथ ही टॉल्स्टॉय और गोर्की जैसे लेखकों की रचनाओं का अनुवाद भी किया। उनका यह साहित्य, कल्पना के रूप में जितना अधिक प्रभावी है, उतना ही विश्वसनीय यह समाजशास्त्रीय दस्तावेज़ के रूप में भी स्थापित है।
उनका मानना था कि ‘साहित्य किसी एक व्यक्ति या उसके अहंकार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे मन मस्तिष्क और समाज को अधिक-से-अधिक बदलने की ओर अधिक झुका है।’ साहित्य व्यक्ति को समाज से अलग नहीं देखता इसके विपरीत यह व्यक्ति को समाज के अभिन्न अंग के रूप में देखता है!
हमारे समय की अत्यावश्यकताओं के मद्देनज़र, प्रेमचंद के शब्दों और साहित्य के उद्देश्यों को पढ़ा जाना चाहिए। प्रेमचंद की विरासत का जश्न मनाने का इससे बेहतर तरीका कुछ नहीं हो सकता है। इसलिए भी क्योंकि प्रेमचंद की विरासत ही तो समूचे भारत की असली विरासत है।