हम 75वे स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहे हैं पर क्या हमारा देश इस मौके पर महिलाओं को आज़ादी, समान अधिकार और सुरक्षित देश दिलाने की पहल और ज़मीनी स्तर पर प्रयास करके इस जश्न को दोगुना कर सकता है?
75वे स्वतंत्रता दिवस का जश्न हम मना रहे हैं पर देश की आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमारा देश महिलाओं को एक ऐसा माहौल नहीं दे पाया है, जहां उनको यह लगे कि हम आज़ाद हैं, सुरक्षित हैं और समान हैं। यह कहते हुए मुझे तकलीफ हो रही है पर अफसोस यही हमारे देश की आज की सच्चाई है।
कोई अपनी सहूलियत के हिसाब से कुछ उदाहरण देकर यह जताने की कोशिश भी करेगा कि पहले की तुलना में अब वर्तमान में महिलाओं के हालात ज़्यादा बेहतर हैं पर ऐसा कहना और समझना ही सबसे बड़ी वजह है कि हम असल समस्या की अनदेखी कर रहे हैं और इस अनदेखी का नतीजा यह है कि महिलाओं की हालत में थोड़ा सा भी सुधार नहीं हो रहा है।
किसी भी समस्या का हल निकालने के लिए सबसे पहले उसको स्वीकार करना ज़रूरी है पर हम वास्तविकता से कोसों दूर हैं और खुद को महान साबित करने के लिए कभी कल्चर, कभी कुछ सकारात्मक उदाहरण, कभी केवल कागज पर दी गई आज़ादी एवं अधिकारों का सहारा लेकर हम सच्चाई को छुपाना चाहते हैं पर इससे समस्या हल नहीं हो रही है बल्कि वह ज़्यादा गंभीर रूप धारण कर रही है। जब तक हम ऐसा मानते रहेंगे कि हमारा देश महिलाओं के लिए सुरक्षित है, तब तक हम महिलाओं की ज़िन्दगी में ज़मीनी स्तर पर बदलाव नहीं देख पाएंगे।
आइए सबसे पहले हम हमारे देश की उस सच्चाई की बात करते हैं, जिस सच्चाई को हमारी सरकार, हमारा मीडिया और खुद हम भी छुपाना चाहते हैं और असल समस्या की अनदेखी कर रहे हैं। जेंडर गैप इंडेक्स में हम 156 देशों में से 140वे स्थान पर हैं। वीमेन, पीस & सिक्योरिटी इंडेक्स (महिलाओं की सुरक्षा एवं शांति सूची) में हम 133वे स्थान पर हैं। हमारे देश में महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा 29% है। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में हमारा देश 131वे स्थान पर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में रोजाना 88 रेप की घटनाएं होती हैं। हमारे देश में महिलाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन 22.3 प्रतिशत है।
समाज की संस्कृति रूपी सामाजिक रूढ़ियों की बेड़ियों में जकड़ी महिलाएं
अब हम बात करते हैं हमारे आदर्श समाज की, जो महिलाओं के सम्मान का झूठा दिखावा करता है। महिलाओं को देवी कहता है। यह बताता है, महिलाएं मल्टी टास्कर होती हैं। यह उनकी क्वालिटी (गुणवत्ता) है। हमें उदाहरण देकर बताता है कि महिलाओं में त्याग और बलिदान कूट-कूट कर भरा हुआ होता है। इन सभी बातों से ऐसा लगता है कि महिलाएं केवल समाज के फायदे के लिए ही पैदा होती हैं, उनकी अपनी कोई पहचान नहीं होती है। उनका अपना कोई वजूद नहीं है। इन सब चीज़ों से समाज का जेंडर बायस होना साफ दिखता है।
संस्कार और संस्कृति के नाम पर हमारा समाज महिलाओं की आज़ादी पर पाबंदियां लगाता है। उनको सामाजिक नियमों की बेड़ियों में जकड़ कर रखता है। जब तक समाज की संस्कृति में महिलाओं के समान अधिकार, उनकी आज़ादी को जगह नहीं मिलती तब तक महिलाओं के हालात बेहतर नहीं हो सकते हैं। महिलाओं को देवी कहकर यह समाज खुद महान बन जाता है और जब भी महिलाएं समाज के सामाजिक नियमों को तोड़ने की कोशिश करती हैं, इन्हें चुनौती देती हैं तब यही समाज, जो महिलाओं को देवी कह रहा था। वह इन महिलाओं को समाज एवं संस्कृति के लिए कलंक बताता है।
दहेज़ प्रथा महिलाओं के लिए एक विकराल चुनौती
दहेज़ प्रथा को यह समाज आज भी अपना हक समझता है और संस्कृति एवं सामाजिक नियमों के नाम पर हो रही घरेलू हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश करता है। महिला सुरक्षा की जब भी बात होती है तब यह समाज महिलाओं को ही बचकर रहने की नसीहत देता है। महिला सुरक्षा के नाम पर नियम बनाकर उसकी बची-कुची आज़ादी को छीन लेता है। अगर कोई महिला किसी जघन्य घटना की शिकार होती है तो उस से ही सवाल पूछता है और उसको ही उसके साथ हुई घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है।
ऐसा नहीं है कि पूरा समाज ऐसा है, बहुत सारे लोगों में महिलाओं को लेकर उनकी मनोदशा में सुधार देखने को मिल रहा है। उनका नज़रिया भी बदल रहा है पर समाज में ऐसे लोगों की गिनती बहुत ही कम है। ऐसे लोगों को यही समाज कहता है कि लोग पढ़-लिख कर बिगड गए हैं और अपनी संस्कृति और संस्कारों को पूरी तरह से भूल चुके हैं। जिस दिन हमारा समाज महिलाओं की पहचान, उनके वजूद को स्वीकार करेगा तब उस दिन हम समझेंगे कि समाज में महिलाओं का स्थान सम्मान- जनक है।
हमें महिला सशक्तिकरण की नीतियों पर अधिक जोर देना होगा
हमारे देश एवं समाज में महिलाओं की सम्मानजनक स्थिति के लिए हमें महिला समर्थक नीतियों का निर्माण करना होगा और उन्हें उचित तरीके से इम्प्लीमेंट करना होगा। महिलाओं की सुरक्षा से सम्बन्धित कानून बनाने से लोगों को ऐसे लगता है कि अब महिलाओं की पूर्ण सुरक्षा हो गई है। महिला दिवस पर बड़े-बड़े मंचों से भाषण देने से, ट्विटर पर नारी शक्ति ट्वीट करने से लोगों को लगता है कि देश में महिला सशक्तिकरण हो गया है।
इस स्वतंत्रता दिवस पर हमारा देश महिलाओं को केवल कागज़ पर ही नहीं बल्कि ज़मीनी स्तर पर आज़ादी, समान अधिकार और सम्मान देने की पहल करे और 2022 के आज़ादी के अमृत महोत्सव पर देश में महिलाओं की स्थिति में सम्मान जनक बदलाव होता हुए दिखे, इसी उम्मीद के साथ मैं सभी भारतवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देता हूं।