पीरियड् (माहवारी) एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर महिलाएं भी खुलकर बात करने से झिझकती हैं। हालांकि, बदलते परिवेश ने महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं के खिलाफ बोलने की बुलंदी प्रदान की है, मगर धरातल पर बदलाव बेहद कम ही देखने को मिलते हैं।
भले ही शहरों में महिलाएं बेबाकी से बोलने की हिम्मत जुटा भी लें, मगर गाँवों में महिलाएं घूंघट से ही घिरी रहती हैं इसलिए उनके लिए अपनी परेशानियों को बांटने का कोई ज़रिया मौजूद नहीं होता है। वहां महिलाएं खुले में एक-दूसरे से भी महिलाओं वाली परेशानी के बारे में बातें नहीं करती हैं। ऐसे में अगर कोई पुरुष, गाँवों में बदलाव लाने की कमान अपने हाथों में संभाले, तब संघर्ष का आसमान विशाल हो जाता है।
पाठशाला में पढ़ते बच्चे।
भीख मांगती बच्ची ने बदली ज़िन्दगी
प्रयागराज के रहने वाले अभिषेक शुक्ला, ग्रामीण इलाकों में जाकर माहवारी के बारे में ना केवल महिलाओं को जागरूक करने का काम कर रहें हैं बल्कि झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा भी प्रदान कर रहे हैं। 28 वर्षीय अभिषेक ने सितंबर, 2016 को एक रोज़ रेलवे क्रॉसिंग पर एक बच्ची को भीख मांगते हुए देखा था।
पहले उन्होंने बच्ची पर ध्यान नहीं दिया मगर जब बच्ची लगातार आग्रह करने लगी तब अभिषेक ने बच्ची से बात की, जिसमें बच्ची ने बताया था कि उसकी माँ नहीं है, पिता शराब के नशे में डूबे रहते हैं और घर में एक छोटा भाई है। बच्ची की बात पर तसल्ली करने के लिए अभिषेक उसके साथ गए। वहां पहुंचकर, उन्हें एहसास हो गया कि बच्ची के आंसू असली थे।
पढ़ाई करते झुग्गियों में रहने वाले बच्चे।
बस, वहीं से अभिषेक ने उन बच्चों के लिए बदलाव लाने का मन बना लिया। हालांकि, उनके लिए यह सफर आसान नहीं रहा, क्योंकि अभिषेक की बातों का वहां रहने वाले बच्चों के माता-पिता पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि लोगों के लिए एनजीओ और मदद केवल खास दिनों के लिए ही होती थी। अभिषेक को काफी मेहनत करनी पड़ी मगर दृढ़-विश्वास के बल पर ही अभिषेक ने लोगों के सहयोग से ‘शुरुआत- एक ज्योति शिक्षा’ की स्थापना की। उनकी टीम में शालिनी यादव, अंजू सिंह, अंजली सिंह, अंजली, आशिया, अंकिता, श्रद्धा, शुभांगी, स्नेहा, अनुश्री घोष, शिवानी, अवंतिका, आकाश, निर्देश, अमित, प्रवर, अक्षित, अभिषेक कुमार, अर्पित, आयुष और रीता शामिल हैं। ‘शुरुआत संस्थान’ में बच्चों को बेसिक शिक्षा प्रदान की जाती है। उसके बाद बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया जाता है। सबकी फंडिंग लोगों के सहयोग द्वारा ही होती है, जिसके लिए अभिषेक समय-समय पर कैंपन चलाते हैं।
‘शुरुआत संस्थान’
लड़कियों ने छोड़ी पीरियड्स के कारण पढ़ाई
अभिषेक के साथ अब तक 150 बच्चे जुड़ चुके हैं, जिनमें से 110 लड़कियां हैं। लड़कियों को जोड़ने में अभिषेक और उनकी टीम को बहुत मेहनत उठानी पड़ी, क्योंकि लड़कियां एक तय समय के बाद पढ़ना छोड़ रही थीं। अभिषेक ने लड़कियों के घर जाकर और लड़कियों से बात करके कारण जानने की कोशिश की मगर बात सामने नहीं आ पा रही थी, जिसे टीम की महिला सदस्यों ने पहचान लिया। अधिकांश लड़कियां पीरियड्स होने के कारण पढ़ाई करने नहीं आ पाती थीं, क्योंकि उनके पास सुविधा नहीं होती थी कि पीरियड्स के साथ पढ़ाई कैसे करें? जब अभिषेक को यह बात पता चली, तब उन्हें वर्षों की मेहनत बेकार लगने लगी, क्योंकि सालों की मेहनत पीरियड्स के कारण डगमगाने लगी थी। लड़कियां पढ़ाई आगे जारी रह सकें इसलिए उन्होंने 1 जनवरी, 2021 को लड़कियों के लिए पैड बैंक शुरु किया, जहां से लड़कियां पीरियड्स होने पर पैड की सुविधा ले सकती थीं।
पैड बैंक
पैड बैंक की स्थापना होने के बाद हम उम्र की महिलाओं ने अभिषेक के साथ चलना स्वीकार किया, क्योंकि ग्रामीण महिलाओं के लिए पीरियड्स किसी समस्या से कम नहीं था। अब अभिषेक के पास लड़कियों के साथ-साथ हर उम्र की महिलाएं अक्षर-ज्ञान सीखने आती हैं। जहां महिलाएं घूंघट से केवल झांकती थीं, वहां अब महिलाएं हाथों में कलम पकड़े आंखों में सपने बुन रही हैं। कहा जा सकता है कि जब महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर बात करने का माहौल बना, तब महिलाओं ने अपने कदम आगे बढ़ाने शुरु किए।
अभिषेक को प्रयागराज का पहला और उत्तर प्रदेश का तीसरा पैड बैंक शुरु करने का श्रेय दिया जाता है, जिस कारण अभिषेक वहां रहने वाली महिलाओं के लिए पैडमैन हो गए हैं। अभिषेक सोशल मीडिया के सहयोग से ही लोगों को अपने कार्य के बारे में बताते हैं, जिससे आर्थिक सहयोग के साथ-साथ, उन्हें अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का ज़रिया भी मिल जाता है।
पैड बैंक का उद्घाटन।
आने वाली पीढ़ी को नहीं होगी परेशानी
पैड बैंक में लोग पैड डोनेट करते हैं, वहीं कुछ लोग पैसों से सहायता प्रदान करते हैं, ताकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं को अपनी सेहत से समझौता ना करना पड़े। पैड लेने के लिए हर एक महिला को पासबुक मुहैया कराई जाती है, जिसमें आधार कार्ड का नंबर लिखा होता है। पैड लेने के बाद पासबुक में पैड लेने की तारीख को दर्ज़ कर दिया जाता है। इसे एक पैसों की लेनदेन करने वाले बैंक की तरह ही संचालित किया जाता है। पैड डोनेट करने वाली एक महिला ने बताया कि उन्हें भी शुरुआत में उनकी माँ द्वारा कपड़ा ही इस्तेमाल करने के लिए दिया गया था, जिस कारण उन्हें परेशानी होती थी मगर माँ के सामने बोलने में डर लगता था।
घर से बाहर निकलने के बाद जब लड़कियों से बातचीत हुई और सोच का दायरा बढ़ा तब उन्होंने पैड का इस्तेमाल करना शुरु किया था। उन्होंने आगे बताया कि पैड डोनेट करने से उन्हें ऐसा लगता है, मानो उन्होंने एक जिंदगी की रक्षा की है। वहीं लड़कियों का कहना है कि अब उन्हें पैड का महत्व पता चल गया है, जिस कारण वे अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए पीरियड्स को एक समस्या का रुप धारण नहीं करने देंगी।
पैड पासबुक
इसके साथ ही पैड लेने आनी वाली महिलाओं ने बताया कि पैड बैंक खुलने से उन्हें काफी आराम हुआ है, क्योंकि ऐसे भी महिलाओं को बचत करने की आदत होती है, जिसमें वे सबसे अंत में अपनी ज़रुरतों को पूरी करती हैं। इन्हीं सब कारणों से महिला का स्वास्थ्य नज़रअंदाज़ हो जाता है। अब पैड बैंक के रहने से माहवारी एक समस्या नहीं बल्कि आरामदायक महीना लगता है।
सरकार ने उठाए कदम
लोगों की मेहनत और जागरूकता से प्रेरणा पाकर सरकार ने भी अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। बिहार सरकार ने आठ ज़िलों में 40 सेनेटरी पैड बैंक खोलने का ऐलान किया है, जिससे ना केवल महिलाओं की सेहत में सुधार आएगा बल्कि महिलाओं को पंचायत स्तर पर रोज़गार भी मिलेगा।
हर ज़िले में पांच-पांच सेनेटरी पैड बैंक खोलने का अनुमान लगाया जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 58 प्रतिशत किशोरी और महिलाएं ही माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। बाज़ार में सेनेटरी पैड की अधिक कीमत होने के कारण कई किशोरियां और महिलाएं पैड नहीं खरीद पाती हैं। उन्हें बैंक से सस्ती दरों पर पैड की सुविधा मुहैया कराई जाएगी। अब देखना बस ये है कि सरकार ने जिन बातों की घोषणा की है, उनका धरातल पर अवतरण कब होगा?