टोक्यो 2020 ओलंपिक का समापन हो चुका है। भारत ने भी इस बार ओलम्पिक खेलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। सच कहूं तो इतना अच्छा प्रदर्शन भारत के खिलाड़ियों ने किया है कि यह इस समय कोरोना महामारी के दर्द पर मरहम जैसा लगा, पता नहीं क्यों आते हुए हर पदक के साथ हमारी धड़कन तेज़ हो जाती थी, शायद ऐसा हर भारतीय के साथ हुआ होगा।
ओलंपिक खेल के समापन से पहले, हमारे राष्ट्र के नायक ने हमें स्वर्ण पदक भी दिलाया है। स्वर्ण पदक, गोल्ड मेडल सुनने में जितना अच्छा लगता है ना उसे हासिल करना उतना ही मुश्किल होता है। देश के खबरिया चैनलों से पता चला कि भारत को ओलिंपिक खेलों में गोल्ड दशकों बाद मिला है। गोल्ड मेडल मिलते ही पूरे देश में धूम मच गई है। आज सारा देश अपने नायकों पर गर्व कर रहा है, सरकार चाहे वो प्रांतीय सरकार हो या संघीय सरकार सब खिलाड़ियों को पुरस्कार देकर अपना पीठ थपथपा रही हैं।
ओलम्पिक खेलों में मेडल जीतने वाले हर खिलाड़ी को सभी दलों के राजनेता बधाई दे रहे हैं। राजनेता ही क्या सारा देश बधाई दे रहा है और देनी भी चाहिए पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि इतने बड़े आबादी वाले देश में केवल 7 मेडल, उसमें भी गोल्ड खाली 1? मैं देश के खिलाड़ियों का अपमान नहीं कर रहा और ना ही उनके मेहनत का, पर ऐसे क्या कारण हैं, जो हम ओलम्पिक खेलों में एक-एक मेडल के लिए तरस जाते हैं?
मैं पहले ही माफी चाहता हूं अगर मेरे शब्दों से किसी की भावना आहत हुई हो तो आज से पहले हॉकी, भाला फेंक, जैसे खेलों के बारे में हम कितना जानते थे, सच कहूं तो मुझे भारतीय हॉकी टीम के कप्तान का नाम तक नहीं पता था और मुझे भरोसा है कि मेरे जैसे और भी लोग हैं। जिनको हॉकी के इतिहास के बारे में नहीं पता था और इसमें गलती हमारी भी नहीं है, क्योंकि हम ऐसे माहौल में रहते हैं, जहां एक लड़के के हाथ में हॉकी स्टिक पकड़ा दिया जाए तो पूछता है “किसका माथा फोड़ना है?”
हॉकी स्टिक को हम लोगों ने केवल एक हथियार की तरह ही देखा है। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है, हम यह केवल किताबों में ही पढ़े हैं। आज तक हॉकी का कभी कोई मैच नहीं देखे हैं। मैं सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता था। वहां भी हमें खेलने के लिए क्रिकेट, कैरमबोर्ड जैसे खेल ही मिले, खैर वो बात अलग है कि हमारे स्कूल के हुनरमंद बच्चे कैरमबोर्ड के ऊपर पत्ते खेलते थे और क्रिकेट क्लास के भीतर खेलते थे।
हॉकी, जिम्नास्टिक, भाला फेंक ये सब खेलों के बारे में, हमें कभी बताया ही नहीं गया। हां, पढ़ाया ज़रूर गया था। आज सरकार ओलम्पिक खेलों में मेडल जीतने वाले खिलाडियों के लिए पुरस्कारों की बारिश कर रही है। खेल रत्न अवॉर्ड का नाम बदलकर महान खिलाड़ी के नाम पर रखा जा रहा है, जो की बहुत अच्छी बात है। देश के महान खिलाड़ियों को सम्मान मिलना ही चाहिए, पर यह भी सच है कि उनको खेलने का अवसर भी मिलना चाहिए।
देश के खबरिया चैनलों से ही पता चला कि भारतीय महिला हॉकी टीम के एक खिलाड़ी के घर प्रशासन ने टीवी लगवाया, क्योंकि उनके घर टीवी तक नहीं था। एक खिलाड़ी के गाँव तक सड़क बन रही है, क्योंकि उसने मेडल जीता है मतलब खिलाड़ियों को मूलभूत आवश्यक सुविधाएं तक नहीं मिलती हैं। ऐसे में भी हम उनसे मेडल की उम्मीद करते हैं। उनके सम्मान में सर झुक जाता है, जब हमारे खिलाड़ी ऐसी विकट परिस्थितियों को भी पार करके देश के लिए मेडल लाते हैं। ( जब गोल्ड मेडल देश ने जीता और हमारा राष्ट्रगान बजा कसम से रोंगटे खडे हो गए शायद हमारे देश के राष्ट्रगान का यही सही सम्मान भी है ना कि सिनेमा घरों में है)
अभी ही पता चला है कि सरकार ने पिछले साल खेल बजट में कटौती की थी और खबरिया चैनलों से ही पता चला कि इस बार के ओलम्पिक खेलों में, जितने भी मेडल आए सभी हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन के कारण आए हैं।
प्रधानमंत्री का खिलाड़ियों को फोन करना ज़रूरी नहीं है और ना ही उन्हें सरकारी नौकरी देने की ज़रूरत है बस उन्हें खेलने दिया जाए और खेलने के लिए जो भी ज़रूरतें हों, उन्हें पूरा किया जाए। देश में क्रिकेट के लिए कितने ही स्टेडियम हैं पर हॉकी के लिए? मुझे तो एक का भी नाम याद नहीं आ रहा। हां, ओडिशा सरकार ने इस बार पूरे हॉकी टीम को स्पॉन्सर किया था और ओडिशा सरकार विश्वस्तरीय हॉकी स्टेडियम भी बनवा रही है, जो बहुत ही अच्छी बात है।
ओडिशा से सभी राज्य सरकारों को सीखना चाहिए कि पहले आप अपने राज्य के खिलाड़ियों को खेलने का माहौल दें, फिर उनसे मेडल की उम्मीद करें। यहां मैं ज़्यादा नहीं लिखूंगा, क्योंकि लेख बहुत बड़ा हो जाएगा और ज़्यादा लिखूंगा तो भीतर का गुबार बाहर आ जाएगा, जो कि सही नहीं रहेगा।
देश में आज भी महिला हॉकी टीम की खिलाडियों को कभी-ना-कभी अपने कपड़ों के कारण लोगों की घूरती बुरी निगाहों का सामना करना पड़ा है। अभी हमारे देश के अन्य लोग खिलाड़ियों की जाति पर भी बहस कर रहे हैं मतलब हम लोग कितना अच्छा माहौल देते हैं अपने देश के खिलाड़ियों को खेलने के लिए और हमें उनसे ओलम्पिक खेलों में मेडल भी चाहिए।
सरकार सुविधाएं नहीं देती हैं और उन्हें हर खिलाड़ी से ओलम्पिक में मेडल चाहिए। सबसे पहले तो हमें शर्म आनी चाहिए, उसके बाद अपने देश के नायक-नायिकाओं पर छाती ठोककर गर्व करना चाहिए, वो भी जात-पात को नाली में बहाकर।