हर 4 साल पर यह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें दुनिया भर के देश कुल 32 स्पोर्ट्स इवेंटस में भाग लेते हैं और 300 से ज्यादा स्वर्ण पदकों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि भारत भी हर बार एक बड़े दल-बल के साथ प्रतियोगिता में भागीदार बनता है, मगर लगभग हर बार हमें एक अदद गोल्ड मेडल के लिए तरसना पड़ता है।
भारतीयों को हर बार की तरह निराशा ही हाथ लगती है और हमें यह सोचने पर मज़बूर होना पड़ता है कि क्या सच में, भारत में प्रतिभा की कमी है या भारतीयों में प्रतिभा है? बस उसे मौका नहीं दिया जाता या उसे दिखाया नहीं जाता है। एक तरह का अपराध बोध हमारे अंदर जगह बना लेता है। इसी बीच अगर 1 या 2 रजत या कांस्य पदक मिल भी जाएं तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है।
हम इसे राष्ट्रीय स्तर पर हर्ष का विषय मानते हैं। भारत की आबादी 135 करोड़ से ज़्यादा है, जबकि दुनिया के कई ऐसे देश हैं जिनकी आबादी भारत से बहुत कम है मसलन क्यूबा जिसकी आबादी मात्र एक करोड़ है लेकिन 5 स्वर्ण, ऑस्ट्रेलिया जिसकी आबादी मात्र दो करोड़ लेकिन 7 स्वर्ण इसी तरह एशिया यूरोप और अफ्रीका के ऐसे बहुत से देश हैं जिनकी आबादी भारत की तुलना में बहुत ही कम है, लेकिन मेडल तालिका में और वह भी गोल्ड मेडल की तालिका में भारत से कहीं बहुत आगे हैं। उस तालिका में अक्सर भारत 50 से 60वें स्थान पर पाया जाता है। कई बार उससे भी नीचे दिखता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर हम कहां पिछड़ रहे हैं? दरअसल, ओलंपिक के अधिकतम मेडल व्यक्तिगत प्रतिस्पर्द्धाओं में होते हैं। आपको यह जानकर बहुत ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि ओलंपिक में लगभग 300 के करीब खेल प्रतियोगिताएं होती हैं मतलब कि 300 से ज़्यादा बार गोल्ड मेडल मिलने की संभावना लेकिन इन खेलों में सबसे ज़्यादा पदक तैराकी या पानी से जुड़े खेलों में होते हैं।
उसी प्रकार दूसरे नंबर पर एथलेटिक से जुडी हुई खेल प्रतियोगिता, जिसमें दौड़ना, उछल-कूद जैसे खेल शामिल हैं। इन खेलों में भी लगभग 17 से 18% मेडल होते हैं। इसी तरह जिमनास्टिक खेलों में लगभग 10 से 12% मेडल होते हैं। इन तीनो खेलों को मिला दिया जाए तो लगभग आधे मेडल इनमें शामिल हो जाएंगे।
यह ऐसे खेल हैं, जिसमें व्यक्तिगत रूप से खेल प्रतिभा का होना या प्रतिस्पर्धा को जीत पाने की व्यक्तिगत क्षमता महत्व रखती है, जबकि भारत अधिकतर जिन खेलों में कोई पदक जीत पाया वो खेल हैं हॉकी, पहलवानी, बॉक्सिंग और शूटिंग। हां, कई बार टेनिस और बैडमिंटन में भी हमने कुछ पदक पाए हैं। आप गौर से ध्यान देंगे तो हमें पता चलेगा कि भारत ने इन खेलों में अब तक 9 गोल्ड मेडल प्राप्त किए हैं, जिसमें से 8 गोल्ड मेडल सिर्फ हॉकी में ही मिले हैं मतलब कि भारत टीम भावना से खेल कर तो जीत प्राप्त कर सकता है लेकिन व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में शायद हम पीछे रह जाते हैं।
दरअसल, खेल प्रतिस्पर्धा का चुनाव बहुत मायने रखता है। मैं इस कीमत पर हरगिज़ नहीं कह रहा कि भारतीयों में प्रतिभा की कमी है या फिर हम प्रतिभाओं को मौका नहीं देते हैं। वास्तव में असली बात, इससे कही कोसों दूर है। शायद हमने ओलंपिक के इस माइंड गेम को समझा ही नहीं है। यही वजह है कि भारत से आबादी की तुलना में सैकड़ों गुना छोटे देश भी तैराकी जिमनास्टिक और एथलेटिक खेल जैसी प्रतिस्पर्धा में भाग लेकर अधिक से अधिक पदक जीत ले जाते हैं और हम लोग अपने अंदर हीन भावना को भरते रहते हैं।
उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया की पदक तालिका पर गौर करेंगे तो भारत के मुकाबले, बहुत कम आबादी होने के बावजूद भी यह हर ओलंपिक में टॉप 10 की सूची में या टॉप पदक विजेता सूची में शामिल होता है। ऑस्ट्रेलिया की टीम मुख्य रूप से तैराकी, दौड़, जंपिंग, एथलेटिक और जिमनास्टिक जैसे खेलों में विशेष स्थान रखती है और अधिकतम गोल्ड और रजत पदक प्राप्त करती है।
उसी प्रकार अफ्रीका के कई देश, जिनको सामान्य रूप से हम भूगोल या GK की पुस्तकों में ही पाते हैं लेकिन पदक तालिका में वह शीर्ष स्थानों में पाए जाते हैं। अगर हमें ओलंपिक जैसी प्रतिस्पर्धा में पदकों की संख्या बढ़ानी है, गोल्ड मेडल की संख्या बढ़ानी है, रजत पदक की संख्या बढ़ानी है तो हमें व्यक्तिगत प्रतिभा वाले खेलों में भारतीयों की रूचि बनानी पड़ेगी।
तैराकी, एथलेटिक्स और जिमनास्टिक खेल, जिनमें अधिकतर पदक दांव पर लगाया जाता है, उन खेलों पर ध्यान देना पड़ेगा। हमें आशा है कि ज़ल्द ही खेल प्रेमी, खेल परिषद, खेल भावना से ओतप्रोत हमारे देश के उद्यमी, राजनीतिज्ञ और आम जनता इस मुद्दे को समझेगी और भारत को 2024 ना सही, लेकिन 2028 के ओलंपिक खेलों में पदक तालिका की शीर्ष सूची में शामिल करा पाएगी।