नथालपति वेंकट रमण, जिनका जन्म आंध्र प्रदेश के तेलुगु भाषी कृषि परिवार में 27 अगस्त, 1957 को कृष्णा ज़िले के पोन्नवरम गाँव में हुआ था, जो कि वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 48वें मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) के रूप में कार्यरत हैं।
नथालपति वेंकट रमण, ने भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में 24 अप्रैल, 2021 को शपथ ग्रहण की है और वे अगस्त 2022 तक इस पद पर आसीन रहेंगे। इन्हें हमारे देश के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण कराई।
इमरजेंसी (आपातकाल) के दौरान लड़ी नागरिक स्वतंत्रता की लड़ाई
रमण अपने शुरुआती जीवन से ही नागरिक स्वतंत्रता के पक्षधर रहे हैं और उन्होंने एक छात्र नेता के रूप में 1975 की राष्ट्रव्यापी इमरजेंसी (आपातकाल) के दौरान अपने एक शैक्षणिक वर्ष का बलिदान करते हुए नागरिक स्वतंत्रता के लिए भी लड़ाई लड़ी है।
न्यायमूर्ति के.सुब्बाराव भारत के नौवें मुख्य न्यायाधीश (1966-67) थे। रमण उनके बाद आंध्र प्रदेश से भारत के ऐसे दूसरे मुख्य न्यायाधीश होंगे, जो देश के मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हुए हैं।
एन. वी. रमण का एक पत्रकार से मुख्य न्यायाधीश तक का सफर
एन. वी. रमण ने विधि के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले अपने शुरूआती जीवन में दो साल तक वहां के एक स्थानीय अखबार में एक पत्रकार के रूप में कार्य किया था। इसके बाद, इन्होंने 10 फरवरी, 1983 को आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में दाखिला लिया और इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न सरकारी संगठनों के लिए पैनल वकील के रूप में भी काम किया है। उन्होंने केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील और हैदराबाद में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में रेलवे के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य किया।
वे अपने लगभग चार दशक के लंबे करियर में 27 जून 2000 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश के रूप में चुने गए, इसके बाद 2 सितम्बर 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और 17 फरवरी, 2014 को भारत के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए।
महामारी के कठिन दौर में संभाला पदभार
हमारे देश के नए मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल की शुरुआत भी ऐसे समय में हुई, जब पूरा देश कोरोना वायरस नामक महामारी के प्रकोप से बुरी तरह जूझ रहा था। ऐसे कठिन समय में, उनके सामने अपने देश के नागरिकों के हितों की रक्षा करते हुए और न्यायपालिका का सुचारू रूप से संचालन करना एक कठिन चुनौती रही होगी। उस समय इनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता अपने देश के लोगों को महामारी से बचाने के साथ-साथ आम जनमानस के लिए सुचारू रूप से न्याय वितरण की प्रणाली को सुनिश्चित करना था।
धीमी न्यायिक प्रक्रिया को सज़ा कहा
न्यायमूर्ति रमण न्याय की पहुंच और शीघ्र सुनवाई के लिए जाने जाते हैं। उन्हें कुछ बहुत ही दिलचस्प फैसलों के लिए भी जाना जाता है। उनमें से एक निर्णय इस साल फरवरी में ए.नज़ीब मामले पर था और जिसमें उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी और अभियोजन द्वारा अंतहीन जांच नहीं होनी चाहिए। न्याय के लिए अभियोजन पक्ष अब एक पर्याय बन गया है और इसकी प्रक्रिया तेज़ी से सज़ा बनती जा रही है।
अनिश्चितकालीन सुनवाइयों के ख़िलाफ़ रहे
1. सी.बी.आई, एन.आई.ए, एन.सी.बी, ईडी बड़ी संख्या में गवाहों के साथ और बड़ी संख्या में फोरेंसिक परीक्षा परीक्षणों के साथ स्वैच्छिक चार्जशीट जारी करते हैं।
2. एजेंसी के साथ सहयोग करने के बावजूद भी व्यक्ति अनिश्चितकालीन समय तक जेल में कैद रहता है।
न्यायमूर्ति रमण का विचार है कि जमानत के मामलों में अंतहीन पूछताछ और लंबी देरी की अनुमति उन मामलों में भी नहीं दी जा सकती है, जहां कानून नीति के रूप में सर्वाधिक प्रतिबंध लगाता है।
जम्मू-कश्मीर के लिए बंद इंटरनेट को असंवैधानिक बताया
उनके इस फैसले ने विचाराधीन के अधिकारों को और निष्पक्ष आपराधिक सुनवाई की प्रक्रिया में एक नई जान फूंक दी है। जस्टिस रमण, ऐसे कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें एक फैसला जस्टिस रमण की अगुवाई वाली पांच सदस्य पीठ ने जम्मू कश्मीर में इंटरनेट सेवा की बहाली के लिए दिया था, जो कि प्रशंसा योग्य है।
अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और अनिश्चित काल के लिए इंटरनेट का निलंबन पूर्ण रूप से असंवैधानिक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक आवश्यक उपकरण है।
आरटीआई (RTI) के दायरे में खुद को रखा
इंटरनेट के उपयोग की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत एक मौलिक अधिकार है। वह स्वयं न्यायाधीशों के उस पैनल का भी हिस्सा थे, जिन्होंने यह माना कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में आता है।
मुस्लिम विधि पर दिया गया एक अहम् फैसला
साल 2019 में मुस्लिम विधि पर दिया गया एक अहम् फैसला, जो की न्यायमूर्ति एन.वी.रमण और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर की पीठ ने सुनाया पढ़ने योग्य है, जिसमें कहा गया था कि एक मूर्ति पूजा या फायरवर्शीपर के साथ, एक मुस्लिम व्यक्ति का विवाह ना तो वैध (sahih) है और ना ही एक निरस्त (Batil) विवाह है बल्कि यह केवल एक अनियमित (Fasid) विवाह है। इस तरह के विवाह (Fasid विवाह) से पैदा हुआ कोई भी बच्चा अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने का हकदार है।
मुस्लिम कानून के तहत, विवाह एक संस्कार नहीं है बल्कि एक नागरिक अनुबंध है और विवाह के तीन प्रकार हैं – वैध, अनियमित और निरस्त। न्यायमूर्ति एन.वी.रमण और अजय रस्तोगी की पीठ ने साल 2019 में केंद्र को नोटिस जारी कर उन याचिकाओं पर जवाब तलब किया था, जिन्होंने मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 को कथित तौर पर संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन के आधार पर “असंवैधानिक” घोषित करने की मांग की थी।
निर्भया के आरोपियों की याचिका खारिज़ की
उनकी अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने हाल ही में 2012 के दिसंबर निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में दोषियों द्वारा दायर की गई उपचारात्मक याचिकाओं को भी खारिज़ कर आरोपियों की फांसी के रास्ते को साफ किया था।
न्यायमूर्ति रमण का विवादों से भी रहा गठजोड़
न्यायमूर्ति एन.वी. रमण का विवादों से भी खासा रिश्ता रहा है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने सीजेआई अरविंद बोबडे को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि न्यायाधीश और उनके रिश्तेदार अमरावती भूमि घोटाले मामले में सम्मिलित हैं।
न्यायमूर्ति ने हालांकि, ऐसे सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि “न्यायाधीश” आलोचना और गपशप के लिए “नरम लक्ष्य” बन गए हैं।” वहीं हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट से जांच पर, राज्य उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक को हटाने का आग्रह किया था। न्यायमूर्ति रमण सभी के लिए न्याय तक पहुंच पर ध्यान केंद्रित करने का इरादा रखते हैं।
उनकी प्राथमिकता सूची में न्यायिक अवसंरचना में सुधार करना, प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा अदालतों के कामकाज का आधुनिकीकरण और आवश्यक सुधारों के साथ न्याय वितरण प्रणाली को मज़बूत करना शामिल है।
न्यायमूर्ति रमण के शब्दों में एक न्यायाधीश
न्यायमूर्ति एन.वी.रमण कहते हैं कि “एक न्यायाधीश को ज़रुरत है कि वह निडर हो, सभी दबावों का डट कर सामना करे और सभी बाधाओं के खिलाफ खड़े होने की ज़ुर्रत रखता हो। वह अपने सिद्धांतों और निर्णयों में निर्भयता को बनाए रखने के लिए दृढ़ रहना चाहिए।” इसके साथ ही वो कहते हैं “न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत इसमें लोगों का विश्वास है। विश्वास, आत्मविश्वास और स्वीकार्यता की आज्ञा नहीं दी जा सकती, उन्हें कमाना होगा।”
देश के सवा सौ करोड़ नागरिकों को जस्टिस रमण से उम्मीद थी कि उनके होने से देश में न्याय की नई किरण होगी और एक न्यायसंगत भारतीय समाज की परिकल्पना के सफर में हम कामयाब होंगे। हम वो दिन भी देखेंगे, जब समय अपनी धारा बदलेगा और शायद बहुत हद तक, वो उस पर खरे भी उतरे हैं।