युवा शक्ति की बात हो और स्वामी विवेकानंद की बात ना हो तो ये बेमानी ही मानी जाएगी। स्वामी विवेकानन्द एक ऐसा नाम है, जिसे इतिहास में बिना किसी भेदभाव के स्वीकार किया गया है और उन्हें वर्तमान में भी बिना किसी भेदभाव के स्वीकार किया जा रहा है और भविष्य में भी बिना किसी भेदभाव के स्वीकार किया जाएगा।
मगर सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों? स्वामी विवेकानन्द हीं क्यों? उसी दरमियान अनेक महान विभूतियों ने भी जन्म लिया था, लेकिन सब पर किसी-ना-किसी प्रकार से आरोप-प्रत्यारोप का कार्य चलता रहता है तो फिर स्वामी विवेकानन्द को बिना किसी लाग लपेट के स्वीकार्य किए जाने के पीछे क्या कारण हैं? क्या स्वामी विवेकानन्द ईश्वर के रूप थे? जिनमें कोई दाग ना लगाया जा सका हो या फिर कोई ईश्वर के दूत थे? जिससे कि लोग उनकी गलतियों पर मिट्टी डालते रहे और उन्हें अच्छे रूप में ही स्वीकार कर लिया। ऐसे तमाम सवाल हैं, जो स्वामी विवेकानन्द को पढ़ने पर मन में उठेंगे मगर उन सबका उत्तर सिर्फ यही है कि स्वामी विवेकानन्द को आप पढ़ते जाइए समस्त प्रश्नों के उत्तर वह स्वयं ही हैं।
12 अगस्त, जिसे अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के नाम से जाना जाता है और 12 जनवरी जिसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में जाना जाता है। युवा, यह एक शब्द नहीं अपितु एक अद्भुत शक्ति का प्रतीक भी है। यदि शौर्य, पराक्रम, लगन, शक्ति, चाहत, इच्छा, जुनून, मतवालापन, जिजीविषा, उत्साह तथा अन्य तमाम शब्दों को एक तरफ और युवा शब्द को एक तरफ रखकर तौला जाए तो युवा शब्द इन सब शब्दों पर सदैव भारी पड़ेगा।
युवा शक्ति का भंडार होता है, इससे आप चाहें तो ऊंचा-से-ऊंचा पहाड़ तुड़वाकर रास्ता बनवा सकते हैं और उसी शक्ति से चाहें तो शहर-के-शहर जलवाकर मानवता को खाक करवा सकते हैं। बशर्ते महत्वपूर्ण यह है कि हम युवाओं का मार्गदर्शन किस प्रकार से करते हैं? शायद इसी विचार के कारण ही स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि इसी बहाने युवाओं के मध्य स्वामी विवेकानन्द जी के विचारों का समावेश हो और उनका बेहतर मार्गदर्शन किया जा सके, क्योंकि स्वामी विवेकानन्द जी के विचारों और शक्ति के केंद्र में सदैव युवा ही थे या यूं कहें कि उन्होंने युवाओं में ही एक सुनहरे विश्व गुरु भारत का भविष्य देखा था।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर युवा कौन है? क्या युवा का निर्धारण आयु के आधार पर किया जा सकता है या फिर युवा का निर्धारण बुद्धि और परिश्रम क्षमता के आधार पर किया जाएगा? यूं तो युवा एक आयु विशेष की उपमा है, जिसमें सोलह वर्ष से लेकर तीस वर्ष तक के लोगों को गिना जा सकता है लेकिन असल में युवा होने और ना होने का निर्धारण उम्र नहीं बल्कि आपकी शारीरिक और मानसिक दृढ़ता तय करती है।
क्योंकि, स्वयं स्वामी विवेकानन्द जी ने यह बात कही है कि ‘हर वह व्यक्ति, जो बाधाओं से लड़ने के लिए मानसिक तौर पर मज़बूत और शारीरिक तौर पर सशक्त हो, वह एक युवा है’ यदि इस शर्त के आधार पर यदि हम आज युवाओं की गिनती करना प्रारम्भ करें तो दुर्भाग्यवश 130 करोड़ आबादी वाले देश में युवा नाम मात्र की गिनती के ही रह जाएंगे, जबकि दुनिया की नज़र में भारत विश्व का सबसे युवा प्रधान देश है।
लेकिन, सवाल यह है कि कोई देश युवा प्रधान होकर भी क्या पा सकता है? जब उसके युवाओं को इस प्रकार गुमराह किया जा चुका है, जिन्हें अपने अधिकारों का, अपने कर्तव्यों का, अपने सपनों का, अपने आपका कोई ध्यान ही ना हो। वो बस भेड़ चाल की भांति चलने को विवश हैं, जिन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से खोखला किया जा रहा है। आखिर ऐसे युवा शक्ति वाले देश का अस्तित्व ही क्या है? जिन युवाओं का आह्वान करके पहाड़ों को समतल बनाया जाना चाहिए था, उन्हीं युवाओं को गुमराह करके मंदिरों और मस्जिदों के नींव हिलवाईं जा रही हैं।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि “शक्ति जीवन है और निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन और संकुचन मृत्यु है।” प्रेम जीवन है और द्वेष मृत्यु है, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि शक्ति का दुरुपयोग करके उसे इतना निर्बल बना दिया गया है कि वह संकुचित होकर द्वेष से तड़प रही है या यूं कहें कि पूरी तरह से मर चुकी है और जिस देश की पूरी की पूरी युवा शक्ति मृतक हो, उसका क्या ही कल्याण हो सकता है।
12 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के दिन तमाम कार्यक्रमों का आयोजन विभिन्न जगहों पर किया जा रहा था। हर तरफ युवाओं के प्रयासों की सराहना की जा रही थी। युवाओं को नई दुनिया का भविष्य बताया जा रहा था मगर अफसोस इस बात का है कि आज जो लोग युवाओं को नई दुनिया का भविष्य बता रहे हैं। असल में वो ही लोग, युवाओं को अपंग बना चुके हैं।
अब ये जो भी दुनिया बनाएंगे, उसे लंगड़ी ही बनाएंगे। अबकी दुनिया में ना वो आत्मशक्ति होगी और ना ही आत्मविश्वास होगा, जो पत्थरों को पिघलाकर पानी बना सके। आज दुनिया के सबसे युवाशील देश में अधिकांश युवा बेरोजगार घूम रहे हैं और लगभग सत्तर फीसदी युवा नशे की चपेट में हैं। ऐसे में इनका महिमामंडन कहीं-ना-कहीं इन्हें और ज़्यादा गुमराह करके इनको निष्क्रिय कर देने में ही सहायता कर रहा है।
जब देश में युवा रोज़गार की खातिर सड़कों पर डंडा खा रहे हों, ऐसे में युवा सम्मान की बात कहीं-ना-कहीं उनके चोटों पर नमक छिड़कने का काम कर रही है। ऐसे में अगर अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस को वाकई में गंभीरता पूर्वक लेकर युवाओं के लिए कुछ बेहतर करने की इच्छा हो तो सबसे पहले राजनीतिक लाभ के लिए युवाओं को हथियार बनाना बंद करके इनके अंदर की मनुष्यता को ज़िंदा रहने दिया जाए और इन्हें प्रेरित किया जाए कि ये आने वाले समय में समस्त सामाजिक द्वेष को मिटाकर प्रेम की पूजा करेंगे जिससे संकीर्ण मानसिकता और मानसिक दुर्बलता को त्याग करके पुनः मृत हो चुकी भारत की आत्मा में रक्त संचार हो सके और वह जागृत होकर युवाओं में एक नई ऊर्जा और शक्ति का संचार करे।