ये एक जलती चिता है, एक पीड़िता की, एक दलित महिला की, एक सिस्टम की, मौजूदा समाज की और मानवाधिकारों की। यह तस्वीर ज़्यादा पुरानी नहीं, पिछले साल सितंबर महीने की यूपी के हाथरस काण्ड की है, जहां एक 20 वर्षीय दलित महिला का चार ऊंची जाति के पुरुषों द्वारा कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी। इसके बाद यूपी पुलिस और ज़िला प्रशासन (योगी सरकार) द्वारा पीड़िता का उसके परिवार की सहमति के बिना ही उसका अंतिम संस्कार करवा दिया गया था।
इस पुरानी घटना का जिक्र, मैं अब क्यों कर रहा हूं?
मैं आपको बता दूं कि देश की राजधानी दिल्ली में, अब एक बार फिर ‘हाथरस बर्बरता’ जैसे बलात्कार को अंजाम दिया गया है। देश की राजधानी में एक 9 साल की दलित बच्ची के साथ शमशान के अंदर पंडित और शमशान के 3 कर्मचारियों द्वारा बलात्कार किया गया और उसके शरीर का चुपचाप अंतिम संस्कार कर दिया गया।
बच्ची के माता-पिता को जब इसकी जानकारी मिली और जब वो पुलिस स्टेशन पहुंचे तो वहां पुलिस ने घंटों बैठाए रखा। हालांकि, परिवार और आम लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। हाथरस की बर्बरता की तस्वीर अभी हमारी आंखों से ओझल भी नहीं हुई थी और पीड़ित परिवार को अब भी न्याय का इंतज़ार है लेकिन दिल्ली की इस बर्बरता ने एक बार फिर सबको हैरान कर दिया है।
शायद आपको इस घटना के बारे में नहीं पता हो या फिर सरकार ने पता नहीं चलने दिया हो, क्योंकि यहां आपकी हैसियत और पहचान भी मायने रखती है कि आपको न्याय मिलेगा या नहीं? खासकर अगर आप गरीब, दलित व अल्पसंख्यक समुदाय से आते हो तब यह बहुत मुश्किल हो जाता है।
इस देश व समाज में, अगर आप गरीब, दलित व अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं तो आपको ‘पाताल लोक’ सीरीज के उस डायलॉग के अनुसार कीड़ा समझा जाता है और कीड़ों के साथ कुछ भी हो, कुछ भी करो, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, चाहे आप लोकतंत्र में ही क्यों ना रह रहे हों?