‘ड्रेन थ्योरी’ 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय आर्थिक राष्ट्रवाद के रूप में सामने आई, जिसके द्वारा यह बताया गया था कि कैसे ब्रिटेन के दमनकारी वित्तीय तंत्र ने भारत में ब्रिटिश शासन को बनाए रखा और किस प्रकार भारत से ब्रिटेन को धन और आय का हस्तांतरण हुआ, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गई।
‘ड्रेन थ्योरी’ को पहली बार दादाभाई नौरोजी द्वारा अपने भाषणों और लेखों की एक श्रृंखला में प्रस्तुत किया गया था, जिसे बाद में 1901 में ‘पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रुल इन इंडिया’ के नाम से प्रकाशित किया गया था। इस सिद्धांत में आर.सी. दत्त, जी.एस. अय्यर, जी.के. गोखले और पी.सी. रे ने भी अपना योगदान दिया था। ड्रेन थ्योरी के अनुसार ब्रिटेन ने भारत को एक तरफा हस्तांतरण करने के लिए मज़बूर किया गया और इसके व्यवस्थित रूप ने भारतीय संसाधनों को छीन कर भारत को गरीबी की ओर ढकेल दिया।
ब्रिटिशर्स के आगमन से पहले भारत एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के तौर पर जाना जाता था, लेकिन उनके आगमन के बाद ब्रिटिश आर्थिक नीति ने भारतीय अर्थव्यस्था को आत्मनिर्भर से एक निर्भर अर्थव्यवस्था बना दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी 17वीं शताब्दी में व्यापार के लिए भारत आई और शुरुआत में उसने कुछ चुनिंदा चीज़ों का व्यापार किया और धीरे-धीरे उसने भारत के एक पूर्वी हिस्से में अपना पांव मज़बूती से जमा लिया।
1757 के प्लासी का युद्ध जीतने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल प्रांत में आर्थिक शक्ति के साथ-साथ राजनीतिक शक्ति भी हासिल हो गई, जिसके बाद कंपनी ने अपने फायदे के लिए आर्थिक नीति में बड़े परिवर्तन किए। इस नीति को अपनाकर भारत को ब्रिटेन के उद्योगों के लिए कच्चा माल उगाने के लिए मज़बूर किया गया। इस वजह से भारत से धन और माल का ब्रिटेन को एकतरफा हस्तांतरण हुआ और धीरे-धीरे भारतीय कृषि और उद्योग पूर्ण रूप से बंद हो गए।
इस थ्योरी के अनुसार ‘भारत की गरीबी मुख्य कारण इसकी संपत्ति का एकतरफा हस्तांतरण था, जिसने देश की उत्पादन क्षमता को कमज़ोर कर दिया।” इसके अलावा ब्रिटेन ने अपनी ज़रूरत से अधिक खर्च किया और इन खर्चों को पूरा करने के लिए यूरोपीय देशों से कर्ज भी लिया जिससे देश को प्रत्येक वर्ष विदेशों को एक बड़ी राशि का भुगतान ब्याज के रूप में भी करना पड़ता था और इस वजह से भारत हमेशा कर्जे में रहा।
इसके अलावा ब्रिटिश मूल के नागरिकों, सैन्य कर्मचारियों के साथ-साथ वकीलों और डॉक्टरों जैसे पेशेवरों और ब्रिटिश अधिकारियों के सैलेरी, पेंशन और भत्तों का भुगतान भी भारत सरकार से होता था, जो भारत के संसाधनों पर भारी बोझ बन गए।
ड्रेन थ्योरी में यह भी पाया गया था कि ब्रिटेन की शाही रक्षा की सब्सिडी का भुगतान भी भारत जैसे गरीब देश से किया जाता था। इसके अलावा रेलवे, सिंचाई कार्यों आदि जैसे सार्वजनिक कार्यों के निर्माण और रखरखाव के लिए कर्ज स्टर्लिंग में ली गई थी, जिसके ब्याज का भुगतान भारत को करना पड़ता था। इस सिद्धांत ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन और देश के राष्ट्रवादी नेताओं को जोड़ने का एक अभूतपूर्व काम किया था।