बच्चों के सीखने का तरीका शायद 100 साल में स्मार्टफोन और डिवाइस के माध्यम से अब पहली बार बदल रहा है। इस समय कोरोना के संकट के कारण स्मार्टफोन और डिवाइस फिजिकल क्लास की अस्थाई गैरमौजूदगी में लर्निंग का प्राथमिक साधन बनकर उभरे हैं। इस प्रक्रिया में स्वयं के लिए सीखने का रास्ता बनाने के लिए छात्र नई-नई विधियां खोज रहे हैं। वर्तमान में अब लर्निंग छात्र केंद्रित हो रही है और बच्चे खुद सीखने की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं।
एक शोध के अनुसार
द हावर्ड स्कूल ऑफ ग्रेजुएट एजुकेशन का एक शोध बताता है कि छात्र केंद्रित लर्निंग ऐसे लर्नर बनाती है, जो जीवन भर सीखते हैं। इसके साथ ही कक्षा में हर छात्र की ज़रूरत को भी शामिल करती है। यह बताता है कि जब छात्रों का लर्निंग पर ज़्यादा नियंत्रण होता है, तो वे सीखने में ज्यादा रुचि लेते हैं और ज्ञान की प्यास बनाए रखने के नए-नए तरीके तलाशते हैं। जब बच्चे दुनिया को समझने के लिए अपनी जिज्ञासा का इस्तेमाल करते हैं, जो उनकी लर्निंग बनी रही है और उसका ज़्यादा असर होता है। इसके बाद में उन्हें अपने पेशेवर जीवन को आकार देने में भी बहुत मदद मिलती है।
दुनिया में सबसे बड़ा एजुकेशन सिस्टम हमारे देश भारत में है, इसलिए भारतीय युवाओं को रोज़गार के लिए तैयार करना देश और हमारा मुख्य कार्य होना चाहिए। करीब 26 करोड़ स्कूल एनरोलमेंट के साथ हम दुनिया की सबसे बड़ी युवा वर्ग फोर्स बनने की क्षमता रखते हैं, फिर भी इस जनसांख्यिकीय के लाभ को पाने के लिए हमें कुछ ज़मीनी तैयारी करने की ज़रूरत है। यह बहुत ज़रूरी होगा कि आने वाले एक दशक में हम अपने शिक्षा तंत्र को कैसे आकार देते हैं और युवाओं को कैसे सशक्त करते हैं? इससे ही देश की आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित हो पाएगी।
हाल ही में आई इंडिया स्किल रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अभी 47% से भी कम छात्र रोज़गार योग्य हैं। इसका एक मुख्य कारण है कि हमारी शिक्षा के पाठ्यक्रम परीक्षाओं के दृष्टिकोण में तैयार किए गए हैं। छात्रों को सवालों के जवाब देने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जब बच्चे अंक पाने के उद्देश्य से परीक्षा में बैठते हैं, तो वह रटने पर निर्भर हो जाते हैं और आखिरकार अपनी लर्निंग भूल जाते हैं। वहीं ठीक दूसरी तरफ अगर बच्चे जो कुछ भी सीखते हैं, उसका अनुभव भी करते हैं तो वे कंसेप्ट को बेहतर ढंग से समझते हैं और उनके अंक अपने आप आते हैं। बच्चों को लर्निंग से प्यार हो, उसके लिए एजुकेशन टेक इंडस्ट्री कुछ काम कर सकती है।
1. शिक्षकों की भूमिका में बदलाव
छात्रों को लर्निंग का आधार देने से शिक्षक भी छात्रों की लर्निंग की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं। एक मिले-जुले लर्निंग एनवायरमेंट (वातावरण) में शिक्षक छात्रों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट और अन्य टास्क पर काम कर उन्हें बेहतर ढंग से गाइड कर सकते हैं। इस से शिक्षक अपने छात्रों को ज़्यादा प्रभावशाली तरीके से पढ़ा पाएंगे। इस तरह क्लास रूम लर्निंग भी छात्रों के लिए ज़्यादा इफेक्टिव (असरदार) हो सकती है और छात्र वहां भी सीखने की प्रक्रिया में सक्रियता से भाग ले सकते हैं। वर्तमान के बदलते समय के साथ शिक्षक की भूमिका छात्रों को सिर्फ लेक्चर और अंक देने से बदलकर छात्रों के मार्गदर्शन और प्रोत्साहन में बदल जाएगी। इससे युवा वर्कफोर्स पर भी एक सकारात्मक असर होगा।
2. छात्रों को आवश्यकता अनुसार शिक्षा
डिजिटल माध्यम के बड़े फायदों में से एक है पर्सनलाइजेशन यानी ज़रूरत के मुताबिक बदलाव कर कोई चीज़ तैयार करना। पर्सनलाइजेशन से छात्र अपनी सीखने की यात्रा में ज़्यादा शामिल होते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी शैली के अनुसार सीखने का अवसर मिलता है। इस तरह की तकनीक हर छात्र का ध्यान अपनी ओर खींच सकती है। ऑनलाइन लर्निंग के साथ हर छात्र के पास आगे की सीट पर बैठने वाला छात्र बनने का मौका होता है। मौजूदा स्कूल शिक्षा तंत्र में पर्सनलाइजेशन का लाभार्थी बनने की काफी संभावनाएं हैं। लर्निंग को अब एक ही तरीका सभी के लिए वाली प्रणाली से बाहर आना होगा, क्योंकि इससे एक ही लर्निंग के अलग-अलग नतीजे निकलते हैं।
3. लाइफ लॉन्ग लर्निंग की इच्छा
जब छात्र खुद से सीखते हैं, तो वह कंसेप्ट को समझने के लिए ज़्यादा उत्सुक होते हैं। ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म इसके लिए एक ऐसा इकोसिस्टम बना रहे हैं, जहां बच्चों को सीखना पसंद हो। इसका मुख्य तरीका है कि कंटेंट को रोचक बनाना, जो छात्रों को लर्निंग के प्रति आकर्षित करे। शिक्षक भी एनिमेशन, गेमीफाइड एलिमेंट्स और वीडियो व चित्र के माध्यम से स्टोरी टेलिंग जैसे तकनीकी साधन इस्तेमाल कर छात्रों को पढ़ा सकते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि युवा लर्नर स्कूल से निकलकर वर्क फोर्स में आएंगे तो उनमें सीखते रहने की, लगातार नया कौशल पाने की ललक बनी रहेगी, जिससे वे अपनी नौकरी में अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे। इससे देश की वर्क फोर्स बेहतर बनेगी।
अब छात्रों के प्रदर्शन का समग्र मूल्यांकन भी ज़्यादा बारीकी से किया जा सकता है। छात्र की ताकत और कमज़ोरी पर लगातार नज़र रखी जा सकती है। इससे छात्रों को लगातार स्वयं का विकास करने में बहुत मदद मिलती है। इसके साथ ही उनमें कम अंकों की जगह, सीखने की ललक और बढ़ती है। शोध बताते हैं कि लर्निंग के नतीजों को मापने के लिए लगातार मूल्यांकन, छात्रों के लिए समय-समय पर होने वाली परीक्षाओं से बेहतर एक अलग तरीका है, क्योंकि परीक्षाओं में सभी छात्रों के लिए समान प्रश्न होते हैं भले ही उनकी सीखने की क्षमता अलग-अलग क्यों ना हो।