मैं रुका नहीं। थोड़ी देर में ही बाहर निकला। थोड़ा चल भी लेना चाहिए। शाम ढले दुनिया थोड़ी बदलती भी है। पूरे रास्ते सोचता रहा, काफी कुछ रहने दिया या छूटता गया। उसे चाहकर भी नहीं कह पाया।
सब कुछ कहना वैसे भी कहां अभीष्ट है? कौन चाहता है सब कह दिया जाए मगर अभी रुका हूं तो दिमाग भागा जा रहा है। ठहर ही नहीं रहा, कई सारी बातें रोक रही हैं, टोक रही हैं मगर यह कमबख्त भागे ही जा रहा है।
अभी कल ही की बात लगती है, जब मेरी उससे मुलाकात हुई थी। वो मासूम सी आंखें कोई कैसे भूल सकता है। उम्र तकरीबन बारह-तेरह साल। ककेरे भाई की शादी में सिलवाया लहंगा थोड़ा छोटा ज़रूर पड़ गया था मगर उसका प्रिय था।
वह अक्सर उसी लहंगे-लुगड़ी में नज़र आती थी। पसंद था या सिर्फ वही एक था, इसलिए प्रिय था पता नहीं।
जब आखरी बार मिली थी तो मुझे उसने सौ तक गिनती सुनाई थी। उसकी मुस्कराहट में जैसे मैं अपने बचपन को खोजा करता था। उसका “पिली लुगड़ी का झाले सू” गीत पर नृत्य सबसे अनोखा था। उससे डेढ़ साल पुरानी दोस्ती थी, निश्चल दोस्ती।
कहते हैं, चीज़ें वही नहीं रह जाती हैं, बल्कि लगातार बदलती रहती हैं। सब बदल रहे है पल-पल। इस बार जब वहां गया तो वह नहीं दिखाई दी। उसकी पक्की सहेली रतना से पुछने पर वो बोली कि उसका तो ब्याह हो गया है।
मैंने पूछा, “क्या एक ही महीने में? वह पिछले महीने ही तो मिली थी। क्या सच में?” खैर, यह तो मंगल बात है फिर खुशी क्यों नहीं होती? क्या सिर्फ इसलिए कि शादी उम्र से पहले ही हो गई? यह तो बड़ी साधारण सी बात है इस क्षैत्र के लिए। वह कोई पहली तो थी नहीं जिसकी शादी बारह-तेरह साल में हो गई थी.. फिर कौन-सा अनजाना रिश्ता था उससे?
शादी के बाद वो एक बार फिर मिली। मैंने कहा, “तुमने मना क्यों नहीं किया?” वह बोली,
“जो आपने पढाया था, वो कहीं काम नहीं आया। मैंने मना किया, पापा नहीं माने। मैंने विरोध किया तो कहा कि मेरे पास इतने पैसे नहीं कि तेरी शादी अलग से करा सकूं। बड़ी बहिन के साथ तू भी निपट जाए। यह नाटक करके क्यों मुझ पर इतना बोझा बढ़ाना चाहती है? मैं कुछ नहीं बोल पाई। बाद में मम्मी ने समझाया कि अभी सिर्फ फेरे दे रहे हैं, “गौना” बाद में कराएंगे। फिर पता चला कि मेरे वो तो मुझसे खूब बड़े हैं।”
आज उसकी खबर आई है। वो आरके (अस्पताल) में भर्ती है। उसके साथ कुछ “गलत” हुआ है। मैं समझ नहीं पाया। आशा (फिल्ड कार्यकर्त्ता) ने जो बताया, वो रौंगटे खड़े करने वाला था। क्या उसे यहां लिखना चाहिए? क्या लिखकर कुछ सवाल खड़े कर देने भर से यह समाज सुधर जाएगा?
यह कोई अचानक हुआ घटनाक्रम था? शायद हां.. शायद नहीं… वह किसी ऐसी “संज्ञा” में तब्दील हो चुकी थी, जहां किसी के अस्तित्व को ही मिटा देने की पुरज़ोर कोशिश हुई थी। वह वह नहीं रह गई थी, बल्कि कुछ और हो गई थी।
आज पूरे दिन खोजता रहा उस काका के बेटे की शादी में सिलवाई लहंगा चोली और लुगड़ी को। बस उस मासूम हंसी को खोज रहा हूं। नहीं, यह ठीक नहीं है। समाज इसे हमेशा ढकेगा। पहले भी उसने यही किया है। वह मासूम जो अभी तक नहीं बोली है, आगे भी नहीं बोल पाएगी। वह नहीं कह पाएगी कि आखिर उसके साथ हुआ क्या है। हम सभी के मुंह पर भी ताले लग चुके हैं।
जब वह दूसरी बार सासरे गई तो उसके अपने ही पति ने उसके साथ….
बस एक ही पंक्ति याद आती है, अगले जनम मोहे…