गुजरात के एक कॉलेज की छात्राओं के पीरियड्स चेक करने के लिए कथित तौर पर अंडरवियर उतरवाने की घटना व्यथित करने वाली है। कॉलेज प्रशासन के मुताबिक यह उस कॉलेज का नियम है। इस नियम के तहत पीरियड्स के दौरान पीरियड्स वाली छात्रओं को अन्य छात्राओं से अलग रहना पड़ता है।
पीरियड्स वाली छात्राएं अन्य छात्राओं के साथ मिलकर मेस में खाना नहीं खा सकती हैं। यह भी कहा जा रहा है कि पिछले 1-2 महीने से छात्रओं नें उस रजिस्टर में नाम दर्ज़ नहीं करवाया था, जिसमें पीरियड्स वाली छात्राओं के नाम दर्ज़ होते हैं।
ग्रामीण भारत की स्थिति आज भी दयनीय
मैं इसमें नहीं जाना चाहता कि यह सही है या गलत लेकिन सोचने का विषय यह है कि यह स्थिति एक कॉलेज की है, जो हमें विज्ञान के आधार पर तर्कसंगत रूप से सोचने के योग्य बनाता है। सोचिए कितना अजीब है कि एक तरफ हम स्त्री और पुरुष समानता की बात करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ यह एक घटना जो एक और असमानता अर्थात पीरियड्स के आधार पर स्त्री और स्त्री के बीच की असमानता को बढ़ाती प्रतीत होती है।
इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि लोगों की सोच में आज बदलाव हुआ है लेकिन ग्रामीण भारत में आज भी लोग पीरियड्स के नाम पर महिलाओं को विभिन्न रिवाज़ों से बांधते हैं। लोग आज भी पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अपवित्र मानते हैं। उनका मानना है कि उन्हें रसोई घर में नहीं जाना चाहिए। उन्हें किसी चीज़ को छूना नहीं चाहिए आदि।
पीरियड्स को हमें स्वीकारने की ज़रूरत है
यद्यपि पवित्रता ज़रूरी है लेकिन सिर्फ पीरियड्स की धारणा के आधार पर साफ-सफाई करने वाली स्त्रियों को अपवित्र नहीं कहा जा सकता है। लोग पीरियड्स को आज भी अच्छी नज़र से नहीं देखते हैं। आज भी पीरियड्स के दौरान विभेद किए जाते हैं। लोग खुलकर पीरियड्स पर बात नहीं करना चाहते हैं। जबकि अधिकांश लोगों को यह पता होता है कि पीरियड्स महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक क्रिया है।
इस घटना से महिलाओं में तरह-तरह के विचार पैदा होंगे, जो निश्चित ही उन्हें कश्मकश में डालेंगे। हम आज एक वैज्ञानिक युग में रहते हैं। हमें महिलाओं के प्रति अपनी सोच को और विस्तृत करने की ज़रूरत है। खुद महिलाओं को भी इस सम्बंध में जागरूक होना होगा। उन्हें पीरियड्स पर खुलकर बात करनी होगी, तभी लोग उनकी भावनाओं को समझेंगे।
पीरियड्स पर हमारी संवेदनशीलता ना के बराबर
हम वैलेंटाइन डे मनाकर अपनी प्रेमिका को प्यार का एहसास तो करा सकते हैं लेकिन उस महिला प्रेमिका के विश्वास को भी हमें जीतना होगा। हमें उसे ऐसा परिवेश देना होगा ताकि वे किसी भी स्थिति में हो सहज रह सकें। गार्गी कॉलेज में हुई एक और घटना स्त्रियों के मानसिक स्थिति से खेलने और उन्हें असहज करने की स्थिति पैदा करने वाली थी।
कम अंतराल पर हुई ये दोनों घटनाएं हमारे सभ्य होने को एक चुनौती देती प्रतीत होती हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि पीरियड्स पर हमारी संवेदनशीलता ना के बराबर है। हमें इन चुनौतियों को स्वीकार करना होगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हों। सार्वजनिक आयोजनों में अधिकांश सरंक्षक महिलाओं को भेजने से कतराते हैं। सार्वजनिक आयोजनों के प्रति प्रायः ऐसी धारणा बन गई है कि वहां अभद्रता होती है।
हमें इस धारणा को बदलना होगा। हमें पाशविक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना होगा। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा, जहां महिलाएं सहजता से आ-जा सकें। महिलाएं, प्रेम और दया की प्रतिमूर्ति तो हैं लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि वे रानी लक्ष्मीबाई भी हैं।
उनको हमें अपने समाज का एक अनिवार्य अंग मानते हुए उनसे समान व्यवहार करना होगा। इसके बिना एक महिला हमारी दोस्त, प्रेमिका, माँ, बहन आदि किसी भी रूप में हों मगर सुरक्षित, सहज और मज़बूत नहीं हो सकती हैं।