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मेरे प्रिय आदर्श समाचार उद्घोषक (न्यूज़ एंकर) : रवीश कुमार

मेरे प्रिय आदर्श समाचार उद्घोषक (न्यूज़ एंकर) : रवीश कुमार

पत्रकारिता के क्षेत्र में अगर आज के समय में ध्यान से देखा जाए तो बहुत कम ही ऐसे पत्रकार बचे हैं, जो सही मायनों में निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं। कुछ ही ऐसे अखबार एवं न्यूज़ चैनल बचे हैं, जहां पत्रकारों ने बेबाकी के साथ सच लिखने हेतु अपनी कलम उठा रखी है।

वर्तमान समय में अच्छी पत्रकारिता के नमूने बहुत कम ही देखने को मिलते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है सेंसरशिप। आज के समय में शायद ही ऐसी कोई राजनीतिक पार्टी हो, जो पत्रकारों के काम में दखल ना देती हो। आज के समय में मीडिया संस्थानों में सेंसरशिप इस हद तक बढ़ गई है कि जिस तरह संसद में पक्ष और विपक्ष दो गुटों की तरह होते हैं ठीक उस कदर मीडिया संस्थान भी आज दो गुटों में बंट गए हैं, जिनमें से ज़्यादातर पत्रकार सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में बोलते हैं तो कुछ सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ।

हालांकि, विषय यह है कि मेरे सबसे प्रिय समाचार उद्घोषक (न्यूज़ एंकर) कौन हैं और क्यों? इस सेंसरशिप के ज़माने में प्रिय एंकर बताना थोड़ा मुश्किल है, परन्तु यह ज़रूर कह सकता हूं कि बहुत से ऐसे पत्रकार एवं एंकर हैं, जिन्हे सेंसरशिप का साया शायद अब तक छू नहीं पाया है और यही एक मात्र कारण है कि वे आज भी बेबाकी के साथ उस बारीक सी लकीर पर चलते हुए ऐसी पत्रकारिता कर रहे हैं, जो सत्ता से सवाल पूछने का दम भी रखते हैं और जनता को यह समझाने का माद्दा भी रखते हैं कि जब तक वे हैं, तब तक इस देश में लोकतंत्र शायद खतरे में हो सकता है, परन्तु खत्म नहीं हो सकता।

ऐसा ही जज़्बा रखने वाले पत्रकारों में “रवीश कुमार पांडेय” का नाम शुमार है। रवीश कुमार एक एंकर एवं पत्रकार होने के साथ-साथ लेखक भी हैं, जो अपने लेखों के ज़रिये आज की युवा पीढ़ी का सही मार्गदर्शन कर रहे हैं। वे भारतीय राजनीति से जुड़े मुद्दों पर बड़ी ही बेबाकी से चर्चा करते हैं, बिना किसी भय के वे सत्ता से उन सवालों के जवाब मांगने की कोशिश करते हैं जिनका जवाब जनता को शायद ही किसी और एंकर के शो पर मिल पाता हो। 

रवीश कुमार की एक सबसे खास बात यह है कि वो समाज से सम्बंधित विषयों पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं, जिस कारण समाज से जुड़ी समस्याएं देश के लोगों के समक्ष आ सकें, शहर में शानों-शौकत से बैठे व्यक्ति को यह पता चल सके कि आज भी आज़ादी के 74 साल बाद हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग किस तरह की ज़िन्दगी गुजर-बसर कर रहे हैं। सिलिंडर पर खाना पकाने वाली महिला को चूल्हे पर खाना पकाने वाली औरत का दर्द समझ आ सके।

रवीश कुमार, न्यूज़ एंकर

रवीश कुमार हमेशा जनता के हित से जुड़े मुद्दों की बात करने के लिए जाने जाते हैं। रवीश कुमार द्वारा किए गए नौकरी सीरीज़  को हम सभी बखूबी जानते हैं। जिसमें उन्होंने इस देश की बेरोजगारी का मुद्दा सबके समक्ष रखा था एवं उससे जुड़ी समस्या एवं समाधानों पर भी बातचीत की थी। उन्होंने एस.एस.सी द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं, उनके परिणामों एवं उनके द्वारा की जाने वाली भर्तियों का काला सच भी जनता के समक्ष रखा था। जिस कारण सरकार की कार्यव्यवस्था पर गंभीर आरोप लगे थे और लाखों विद्यार्थी, जो सरकारी नौकरी का सपना लिए एस.एस.सी की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं उनकी आंखें भी इस सीरीज़ के माध्यम से खुली थीं।

रवीश कुमार अपने प्राइम टाइम एवं अपनी रिपोर्ट्स में खासकर गाँव-देहात में इस्तेमाल की जाने वाली हिंदी भाषा का इस्तेमाल भी बखूबी करते हैं, जिस कारण गाँव-देहात के लोग भी उनसे अपना एक जुड़ाव महसूस करते हैं एवं उनमें यह उम्मीद भी जगती है कि शहर में बैठा कोई उनकी समस्याओं की बात कर रहा है तथा देश की सरकार के समक्ष उन समस्याओं को रखने का प्रयास भी कर रहा है। वे अपनी भाषा में अक्सर बाबू जी, माँ, बाग-बगीचे, खलिहान, बरहम बाबा, पोखर, छठी माई, नारायणी नदी, गौरैया आदि का जिक्र करते रहते हैं।

रविश कुमार ने अपने लिखे एक ब्लॉग में कहा है कि कभी रवीश कुमार मत बनना, जहां तक उस ब्लॉग की बात है, मैं उनकी बात से काफी हद तक सहमत हूं। किसी भी इंसान को दूसरों के जैसा नहीं बनना चाहिए, परन्तु पत्रकारिता के छात्रों को रवीश कुमार जैसे पत्रकारों को अपना आदर्श मान कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर अपना स्वयं का नाम बनाने की कोशिश करनी चाहिए। आज जब एक पत्रकारिता का छात्र घर से कुछ बनने की उम्मीद लेकर निकलता है, तब वो रविश कुमार बनता है।

जब वह अपने हॉस्टल के एक छोटे से कमरे में बड़े-बड़े सपने संजोता है, तब वो रविश कुमार बनता है। जब पत्रकारिता की इस चमक-दमक से रूबरू होता है, तब वो अपने भीतर के उस रविश कुमार को जीता है, जिसे न्यूज़रूम किसी नासा जैसा लगता है। 

मैं भी एक पत्रकारिता का छात्र हूं और एक स्टार पत्रकार बनने का सपना मेरी आंखों में भी है, परन्तु जैसा कि रवीश जी कहते हैं कि एक स्टार पत्रकार बनने से पहले आज की पीढ़ी यह कोशिश करे कि वो पहले एक अच्छा पत्रकार बने और इसी सपने के साथ ही मैं अपना करियर शुरू करना चाहूंगा, क्योंकि यदि आज के सेंसरशिप के ज़माने में, मैं निष्पक्ष पत्रकारिता भी कर पाऊं तो यह मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि के समान होगा।

हालांकि, मैं रवीश कुमार जी की कुछ खूबियों को अपनी ज़िन्दगी में ज़रूर अपनाना चाहूंगा जैसे कि उन्होंने आज तक अपनी जबान पर मीडिया का रंग नही चढ़ने दिया। कोई बनावटी बोली नहीं बोली बल्कि खुद अपनी बोली को पहचान दिलाई।

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