कल जेल में स्टेन स्वामी की मृत्यु हो गई और सरकार ने यह सन्देश दिया कि दलितों को, वंचितों को, आदिवासियों के हक एवं उनके अधिकारों के लिए जो भी लड़ेगा उसको सरकार जेल में ऐसे ही सड़ाकर मार डालेगी। यह संदेशा बीजेपी ने अकेले ही नहीं बल्कि कांग्रेस ने भी अपनी सरकारों में दिया है।
जनेउपालिका या जनेउलीला या ब्राह्मणवाद न्यायपालिका ने एक निर्दोष सामाजिक कार्यकर्ता को जेल में मरने दिया। जनेउ पालिका ने अर्नब गोस्वामी, कंगना, सुशांत सिंह राजपूत पर तुरंत सुनवाई की लेकिन सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, स्टेन स्वामी, आनंद तेलतुंमदे आदि को झूठे केस में फंसा कर ऐसे ही सड़ा कर मार डालने की तैयारी कर दी। अभी तो एक ही मौत हुई है लेकिन ज़ल्दी ही सारे दलितों को ऐसे ही मार दिया जाएगा।
इस देश में EWS आरक्षण, पार्लियामेंट से लेकर कोर्ट तक महज़ चौबीस घंटे में लागू हो गया था। वहीं जब दलितों, वंचितों के हकों एवं अधिकारों की बात आई तो उसे स्टे पर लटका दिया। न्यायपालिका में ब्राह्मण अपना कब्ज़ा जमाए बैठे हैं और हमेशा जाति देखकर ही न्याय करते हैं।
दलितों को और आदिवासियों को नक्सली, माओवादी बनाकर रोज़ ना जाने कितनी हत्याएं की जाती हैं, कितनों को झूठे मुकदमों में फंसाकर, लिंचिंग करके उनका करियर बर्बाद कर दिया जाता है। दलितों के बच्चे कठिनाइयों में पढ़कर जैसे ही कुछ बनते हैं तभी कोई ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया उनको किसी झूठे मुकदमों में फंसाकर ऐसे ही जेल में सड़ा देते हैं, जिससे वो आर्थिक रूप से मज़बूत ना हो पाएं और इनकी बराबरी ना कर पाएं। इसमें जो सबसे ज़्यादा इनकी सहायता करता है, वो है हमारे देश की ब्राह्मण न्यायपालिका।
इस देश में पुलिस की वर्दी का मतलब होता है लाइसेंस-टू-रेप, लाइसेंस-टू-किल, लाइसेंस हरेशमेंट, लाइसेंस-टू-टार्चर। आप अगर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि इनकी इन विषम परिस्थितियों में तो पुलिस वाले पिछड़े वर्गों की FIR रिपोर्ट तक नहीं लिखते हैं। कोर्ट में केस दाखिल नहीं होता, क्योंकि पुलिस की वर्दी में भी ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया बैठे हैं और वो कसम तो संविधान की खाते हैं लेकिन काम मनुस्मृति की किताब पर करते हैं।
यह पहली हत्या नहीं है, आप देखते जाइए और जेल में मुआयना कीजिए कि ना जाने कितने दलित, वंचित,आदिवासी, मुसलमान झूठे मुकदमों में जेल में सड़ रहे हैं, वो सब भी एक दिन मार दिए जाएंगे और हम लोकतंत्र बचाओ, लोकतंत्र बचाओ चिल्लाते रहेंगे।