लड़कियां वो जत्री हैं, जो हमारे मानव अस्तित्व का प्रमाण हैं। लड़कियां हर घर का चिराग होती हैं काश अगर कोई लड़की गर्भावस्था के दौरान अपनी माँ के शरीर को चीरते औज़ारों को रोक पाती और बोल पाती तो वो यह ज़रूर बोलती कि मुझे जीने दो, मुझे भी इस दुनिया को देखने का हक है, मुझे भी इस संसार में जन्म लेने दो।
मगर उस समय भी लड़के की चाह रखने वाले कसाई सोच के माँ-बाप उसकी बात नहीं सुनते हैं, ऐसे लोग अपनी मर्ज़ी से इस घिनौने काम को अंजाम देते हैं। उन लोगों पर हमेशा सवाल उठते रहेंगे, जो लड़कियों की इस तरह की निर्मम अमानवीय हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार होते हैं।
लड़कियां तो हर घर के आंगन का फूल होती हैं लेकिन उनके इस संसार में पैदा होने के बाद ही उनकी असली जंग की शुरुआत हो जाती है। समाज में आज भी कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो लड़कियों को उनके बचपन से ही समाज की बेड़ियों में जकड़ देते हैं और हर समय उन्हें यह याद दिलाते रहते हैं कि वो एक लड़की है और समाज में उसे एक लड़की की तरह ही रहना चाहिए।
आज भी हम ऐसे लोगों को देखते हैं, जो समाज में सार्वजनिक तौर पर लड़कों का ही गुणगान करते नज़र आते हैं, लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि लड़कों के साथ-साथ लड़कियां भी देश और समाज का भविष्य होती हैं और वो भी देश के लिए वो काम कर सकती हैं, जो लड़के कर सकते हैं।
हमें देश में दिन-प्रतिदिन न्यूज़ चैनलों और अखबारों में महिलाओं के साथ दहेज़ के लिए होने वाली घरेलू हिंसा, शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना और उनके साथ भेदभाव करने जैसी खबरें मिलती रहती हैं। इस तरह के अमानवीय कार्य को अंजाम देने वालों को दण्ड देने के लिए सरकार ने महिलाओं के सुरक्षा हेतु कई कानूनों का भी निर्माण किया है।
हमारा देश आज़ादी के बाद से अलग-अलग क्षेत्रों में आगे की ओर बढ़ा है लेकिन आज़ादी के इतने सालों बाद आज भी लड़कियों को वो अधिकार नहीं मिल पाए हैं, जिसकी वो असली हकदार हैं। हमारे देश में भले ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर-से-कठोरतम कानून बना दिए गए हों, लेकिन उन कानूनों का उतनी ही कठोरता से पालन नहीं होता है और अपराधियों द्वारा खुलेआम उन कानूनों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं।
आज के दौर में भी लोगों की भी महिलाओं के प्रति ऐसी घटिया सोच है कि अगर उनके घर लड़की पैदा हो जाए तो वो औरत को बुरा भला कहते हैं और उसे अन्य तरीकों से परेशान करते हैं। क्या हमारे समाज में लड़की पैदा होने के बाद उसे भगवान का आशीर्वाद समझ कर स्वीकारा नहीं जा सकता?
अगर हम लड़का और लड़की में फर्क ना करके उन्हें अच्छी शिक्षा और अच्छा रास्ता दिखाने का प्रयास करेंगे तो समाज में उपस्थित लड़के और लड़की की खाई को एक दिन समाप्त कर देंगे। भले ही कई लोग अच्छी शिक्षा-दीक्षा हासिल कर अपने समाज का हिस्सा बन गए हों लेकिन लड़कियों के प्रति उनकी सोच और मानसिकता अभी भी वही है, जो पहले के लोगों में हुआ करती थी और हम भी लड़का और लड़की में भेदभाव कर उन लोगों का साथ दे रहे हैं, जो लड़कियों की आज़ादी, उनके सपनों के खिलाफ होते हैं।