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“फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमिनिज़्म दो अलग-अलग मुद्दे हैं”

फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमेनिज़्म दो अलग- अलग मुद्दे हैं

फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमेनिज़्म दो अलग-अलग मुद्दे हैं।

– न्यूड फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करना।
– पीरियड के धब्बों को आराम से पहन कर घूमना।
– ब्रा की पट्टी दिखाना।
– ऑर्गेज़्म डिस्कस करना।

ये सारी चीज़ें फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन हैं, फेमेनिज़्म नहीं है। वो औरतें, जो फेमेनिज़्म (नारीवाद) का झंडा ले कर नाचती हैं, उन्हें पहले तो फेमेनिज़्म को सिरे से समझने की ज़रूरत है।

फेमिनिज़्म समानता की बात करता है, पुरुषों के विरोध की नहीं 

फेमेनिज़्म समानता की बात करता है, नौकरी में, सैलरी में, प्रॉपर्टी में, एजुकेशन आदि सब में औरतों के लिए समान अधिकार हों। फेमेनिज़्म औरतों के हक की बात करता है। उन्हें आर्थिक और सामजिक स्तर पर एक बेहतर ज़िंदगी कैसे मिले इसकी बात करता है।

फेमेनिज़्म कहीं भी पुरुषों को अपना दुश्मन नहीं मानता। ये एक विचारधारा है, जो समाज के कमज़ोर तबके को मुख्यधारा से जोड़ने का काम करती है।

मगर आज फेमेनिज़्म का मतलब पूरी तरीके से बदल गया है। अब इसका अर्थ है जिसकी डफली, उसका राग। महज़ चंद पलों में पब्लिसिटी पाने का सबसे आसान तरीका, सोशल मीडिया पर फेमनिज़्म का झंडा ले कर पुरुषों को गाली देना, व्यक्तिगत भड़ास निकालने के लिए पब्लिक प्लेटफॉर्म को यूज़ करना, घर में पति या बॉयफ्रेंड से नहीं पट रही है इसलिए फेसबुक पर पूरे पुरुष समुदाय को गालियां देना फेमेनिज़्म नहीं है।

दुःख की बात तो यह है कि जो औरतें पब्लिसिटी पाने के लिए ये सब कर रही हैं, उनका तो कुछ नहीं जा रहा है, लेकिन सच में वो लोग जो महिलाओं के लिए कुछ करना चाह रहें हैं, उनकी बेवकूफी की वजह से वो भी मज़ाक की पात्र बन रही हैं।

फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमिनिज़्म में बेसिक अंतर 

अभी तो एक और ट्रेंड देखने को मिल रहा है, गुटबाज़ी। हां, बीस-पच्चीस महिलाओं के लिए फेमेनिज़्म अपनी ब्रा का स्ट्रेप दिखाता हुआ फोटो अपडेट करना है, तो वहीं कुछ सौ महिलाओं के लिए हैशटैग सेल्फी विथाउट मेक-अप अपलोड करना है।

भाई कोई इनको समझाओ, ये फेमेनिज़्म नहीं है। कुछ भी करने से पहले उसके बारे में जानकरी तो इकठ्ठा कर लो। ये मेकअप विथाउट सेल्फी अपडेट करके तुमने किसको इम्पॉवर किया? किसी को नहीं। तुम्हारे पोस्ट पर वही मर्द आ कर ‘आह-वाह’ किए जिनके खिलाफ झंडा ले कर तुम चल रही हो।

अभी भी वक्त है संभलने का। फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमेनिज़्म के बेसिक अंतर को जानने और समझने का। तुमको सिगरेट पीनी है, शराब पी कर खुले में नाचना है, नाचो मगर इसे फेमेनिज़्म का नाम मत दो। ये तुम्हारी आज़ादी है, इस पर तुम्हारा हक है। ये तुम्हारे मौलिक अधिकार हैं।

फेमिनिज़्म किसी को नीचा दिखाना नहीं सिखाता

मेरे घरवालों के लिए मुझे खाना बनाना पसंद है। उनके लिए कपड़े फोल्ड देना, कहीं जा रहे तो बैग पैक कर देना, कभी थके हैं तो हल्के हाथों से मसाज़ कर देना, चाय बना देना मुझे कहीं से भी ‘लेस फेमनिस्ट’ नहीं बनाता।

तो जो औरतें अपनी खुशी से अपनों के लिए ये कर रही हैं, वो पिछड़ी हुई नहीं हैं। तुम बाहर तो नारे फेमनिज़्म की लगा रही हो और घर जा कर पति के सामने अपने हक के लिए दो शब्द नहीं बोल पा रही, बताओ तुम कहां फेमनिस्ट हुई?

सबसे पहले अपने हक के लिए आवाज़ उठाओ फिर दूसरों के लिए। अपने घर के आस-पास, जो देखो किसी के साथ अन्याय हो रहा है, वहां उसके लिए मज़बूती से स्टैंड लो। ये सोशल मीडिया पर इंकलाब ज़िंदाबाद, पुरुष समुदाय मुर्दाबाद से कुछ नहीं होगा।

यूं आपस में जो उलझती रहोगी, तो जिस सोच को सोच कर ये फेमनिज़्म या नारीवाद टर्म क्वाइन किया गया था, उसका सत्यानाश कर दोगी। तुम्हें समझने की ज़रूरत है बहन बाकी अपने मन की उथल -पुथल को शांत करने के लिए नए-नए पैतरे ढूंढों मगर फेमेनिज़्म के नाम पर तो बवाल मत काटो।

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