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“संविधान आपको अपने मूल अधिकारों के प्रत्यावर्तन के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार देता है”

संविधान आपको अपने मूल अधिकारों के प्रत्यावर्तन के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार देता है

पिछले दिनों मैं अंबेडकर हॉस्टल एवं छात्रों की समस्याओं को लेकर माननीय समाज कल्याण मंत्री उत्तराखंड से मिलने के बाद वापस लौट रहा था, तो सोचा क्यों ना नैनीताल अंबेडकर हॉस्टल का हाल-चाल भी देख लिया जाए, वहां अपने साथियों से मिला तो देखा कि वहां बहुत अधिक परेशानियां हैं।

कई सालों से एक ही आदमी को ठेका दिया जा रहा है, मेस के खाने में कोई गुणवत्ता नहीं है, साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। नैनीताल जैसी जगहों में अधिकांश गीजर खराब ही रहते हैं, कई वर्षों से छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिली थी। इन समस्याओं को देखते हुए सभी छात्रों ने तय किया कि सभी ज़िलाधिकारी नैनीताल से मिलकर अपनी समस्याएं बताएंगे और अगले दिन हम 40 छात्र ज़िलाधिकारी से मिलने नैनीताल पहुंच गए लेकिन हमसे एक गलती हो गई उस दिन सेकंड सेटरडे था और कलेक्ट्रेट पूरा बंद था। ऐसे में मैंने सोचा कि 40 छात्रों का यह समूह अगर यूं ही वापस लौट जाएगा तो इन सब में मायूसी छा जाएगी।

मैंने ज़िलाधिकारी महोदय से उनके घर पर ही मिलने का सोचा, छात्रों के साथ मैं डीएम साहब से मिलने उनके आवास पर पहुंच गया, जो स्टाफ वहां मिला उसे हमने आने का कारण बताया तो हमसे कहा गया कि आज के दिन साहब नहीं मिल पाएंगे, मैंने तुरंत ही उनसे कहा कि बस आप हमारा एक मैसेज और पत्र साहब तक पहुंचा दीजिए। 

वह हमारा पत्र लेकर अंदर गई और डीएम साहब की तरफ से हमें संदेश मिला कि आज नहीं मिल पाएंगे, काफी व्यस्त हैं। कुछ देर तो मैं सोचता रहा और परेशान हो गया फिर आखिरकार मैंने सोचा कि क्यों ना सीधे मुख्य सचिव सर से बात कर ली जाए, मैंने सीधे मुख्य सचिव सर को फोन कर दिया और उस के 10 मिनट के भीतर ही हमें अंदर से डीएम साहब से मिलने का बुलावा आ गया। डीएम साहब ने बड़ी तसल्ली से हम सब छात्रों की बातें सुनीं और उसके बाद तो अगले दिन हमारे नैनीताल हॉस्टल में फूड इंस्पेक्टर, समाज कल्याण अधिकारी और अन्य तमाम विभागीय अधिकारी पहुंच गए और जिससे वहां की बदतर व्यवस्था में सुधार हुआ।

इस बात को बताने का मेरा उद्देश्य केवल यही है कि हमें अपनी बात कहते हुए कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि डीएम साहब से या मुख्य सचिव साहब से बात करने में कोई परेशानी हो जाएगी। हमें अपने अधिकारों के लिए किसी भी अधिकारी से खुलकर और बेधड़क होकर बात करनी चाहिए।

मैं यह पूरी घटना आपको इसलिए नहीं बता रहा हूं कि मैं अपने आपको आप सभी की नज़रों में कुछ साबित करूं, मेरा यह मानना है कि अगर किशोर जैसा साधारण लड़का सीधे डीएम, समाज कल्याण मंत्री या मुख्य सचिव साहब जैसी हस्तियों से बिना डरे बात कर सकता है तो आप सब भी कर सकते हैं और आपको अपने अधिकारों के लिए करनी चाहिए।

मेरे अंदर यह बात करने की हिम्मत बाबासाहेब के महान संविधान से आती है, जिसमें एक नागरिक के नाते मुझे शासन में बैठे ऊंचे लोगों से सवाल करने और इस तरह अपने हितों को सुरक्षित रखने का अधिकार मिला हुआ है और भारत का संविधान यह अधिकार केवल मुझे ही नहीं बल्कि आप सब को भी यही अधिकार देता है। 

यही मेरी हिम्मत का असली स्रोत है, इसलिए संविधान को केवल परीक्षा पास करने के लिए नहीं पढना है बल्कि अपने अधिकारों को जानने और लागू करवाने के लिए भी पढ़ना है।

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