माँ बनना हर औरत का सबसे खूबसूरत सपना होता है। यह सपना तब और खूबसूरत लगने लगता है, जब उम्र की बंदिशों से दूर इसका फैसला लेने का हक भी महिला के ही पास होता है। आज मेडिकल विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब महिलाएं बड़ी उम्र में भी एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं।
पिछले दिनों बॉलीवुड एक्ट्रेस काजोल की छोटी बहन तनीषा मुखर्जी ने यह खुलासा किया कि वह 39 वर्ष की उम्र में अपने एग्स फ्रीज करवा चुकी हैं। तनीषा फिलहाल 43 वर्ष की हैं और उनसे पूर्व बॉलीवुड जगत से डायना हेडन, एकता कपूर और मोना सिंह भी ऐसा ही खुलासा कर चुकी हैं। धीरे-धीरे एग फ्रीजिंग का यह चलन खास से आम होता जा रहा है और ऐसे में इस बात पर गौर किया जाना लाज़िमी है कि यह प्रक्रिया कितनी ज़रूरी और कितनी गैर-ज़रूरी है। इसके साथ ही हमें इस तकनीक से जुड़े मेडिकल, साइकोलॉजिकल और सोशियोलॉजिकल पहलुओं के बारे में भी विचार करना बहुत ज़रूरी है।
हालांकि, तनीषा मुखर्जी ने यह भी कहा है कि एक औरत की ज़िन्दगी का एकमात्र मकसद केवल बच्चा पैदा करना नहीं होता। अगर किसी महिला का बच्चा नहीं है तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। शादी करना या किसी के साथ रिश्ते में रहना भी कोई ज़रूरी नहीं है। तनीषा की मानें, तो यह उनकी पर्सनल च्वॉइस (पसंद) है।
जानें क्या है एग फ्रीजिंग?
उम्र बढ़ने के साथ ही महिलाओं की प्रजनन शक्ति घटने लगती है। कई कारणों और स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से उनके शरीर में एग की गुणवत्ता और मात्रा भी घटने लगती है। इस कारण एक उम्र के बाद महिलाओं का प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है।
एग फ्रीजिंग महिलाओं की फर्टिलटी को बनाए रखने का एक बहुत बढ़िया और आसान तरीका है। फर्टिलिटी मेडिकल क्षेत्र में आइवीएफ के बाद एग फ्रीजिंग तकनीक उन महिलाओं के लिए एक वरदान बन कर उभरी है, जो किन्हीं कारणों से गर्भधारण करने में असमर्थ हैं या फिर कैरियर को लेकर गंभीर हैं। एग फ्रीजिंग तकनीक की मदद से महिलाएं अपने गर्भधारण के समय को नियंत्रित कर सकती हैं और अपनी सुविधानुसार चुने हुए समय पर गर्भवती हो सकती हैं।
एग फ्रीजिंग की प्रक्रिया में महिलाओं के गर्भाशय से स्वस्थ अंडों को निकाल कर उन्हें लैब में स्टोर किया जाता है। मेडिकल तौर पर एग फ्रीजिंग को क्राइयोप्रिजर्वेशन कहते हैं। एग फ्रीजिंग के बाद महिला जब माँ बनना चाहे, तब वो अपने हेल्दी एग से कंसीव कर सकती हैं। एग फ्रीजिंग में स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई जोखिम नहीं होता है। 25 से 30 साल की उम्र तक एग फ्रीज करवाना सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
मेडिकल विशेषज्ञों की राय में
पटना के कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल की सीनियर गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. मीना सावंत का कहना है कि महिलाओं के शरीर में एग की एक लिमिटेड सप्लाई है। एक उम्र के बाद महिलाओं में एग्स की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों ही कम हो जाती हैं।
यह ज़रूरी नहीं है कि उस समय तक हर लड़की को मनपसंद लाइफ पार्टनर मिल ही जाए या फिर अपने प्रोफेशन की वजह से वह कंसीव नहीं कर पा रही है, तो ऐसी स्थिति में एग फ्रीजिंग ऐसी महिलाओं के लिए एक निश्चित रूप से एक वरदान है लेकिन चूंकि यह एक कृत्रिम प्रक्रिया है, जिसे सफल बनाने के लिए महिलाओं को कई तरह के हॉर्मोनल इंजेक्शन और दवाइयां आदि दी जाती हैं, जिनकी वजह से मिसकैरिज, हॉर्मोनल एवं जेनेटिक प्रॉब्लम्स आदि कई तरह साइड इफेक्ट्स हो सकते है।
इसके साथ ही, उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक क्षमता भी कम होती जाती है। ऐसे में 40 की उम्र के बाद कोई महिला अपने बच्चे को कितनी बेहतर परवरिश दे पाएगी, यह थोड़ा डाउटफुल (संदेहास्पद) है। बढ़ती उम्र में कंसीव करने से पहले किसी भी महिला को अच्छी तरह से इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में सोच विचार कर लेना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से
नैदानिक मनोवैज्ञानिक डॉ.बिंदा सिंह की राय में, जब भी कोई महिला कुछ नया करना चाहती है तो समाज उसका मज़ाक उड़ाता है लेकिन हर महिला को अपनी तरह जीने का पूर्ण अधिकार है। वह अपने बारे में सोचने और निर्णय लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है, जब भी कोई नई चीज़ कहीं घटित होती है तो उस बारे में आलोचनाओं का होना जायज है।
अगर भविष्य में उन चीज़ों का प्रभाव अच्छा होता है तो समाज भी उसे धीरे-धीरे स्वीकार कर लेता है। जब लड़कियों ने घर से बाहर निकल कर काम करना शुरू किया, शर्ट-पैंट पहनना और छोटे बाल रखना शुरू किया, तब भी बहुत लोगों ने इसकी आलोचना की, पर आज यह सब नॉर्मल है। एग फ्रीजिंग माँ बनने की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए वाकई वरदान है, खास कर उनके लिए, जो किसी तरह की मेडिकल समस्या से जूझ रही हैं।
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से
पटना के मगध महिला की रिटायर्ड प्रोफेसर और प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. रेणु रंजन की मानें तो आजकल लड़का हो या लड़की दोनों की शादी 30-35 की उम्र में होने का चलन आम हो गया है। माँ बनने के लिए उससे भी ज़्यादा देरी करने का कोई मतलब नहीं बनता है।
मातृत्व एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी होती है। यह केवल इसलिए नहीं होना चाहिए कि किसी महिला को बच्चा चाहिए और बच्चा हो जाने के बाद वह इससे संतुष्ट हो गई, जिन महिलाओं को कंसीव करने में किसी भी तरह की समस्या आ रही है तो उनके लिए तो यह तकनीक वाकई बहुत कारगर है।
लेकिन जब कोई महिला अपने कैरियर को इतना ज़्यादा महत्व दे रही हो कि इसके लिए वह अपनी मातृत्व भावना से भी समझौता करने को तैयार है तो वह अपने बच्चे के फितूर को दिमाग से निकाल कर किसी अनाथ बच्चे को भी अडॉप्ट भी कर सकती है।
फ्रीजिंग तकनीक की बहुत सारी कसौटियां हैं। अगर उनमें कहीं से भी कोई चूक हो जाए और इसकी वजह से कंसीविंग या डिलीवरी प्रोसेस में कोई कॉप्लिकेशन आ जाए तो इससे माँ और बच्चा दोनों की जान को खतरा हो सकता है, जो कि मानवीय दृष्टिकोण से सही नहीं है। अगर आपको अपना ही बच्चा चाहिए तो थोड़ा-बहुत कैरियर से भी कॉप्रोमाइज करना ही बेहतर है। हर चीज़ सही वक्त और सही तरीके से की जाए तो वह ज़्यादा आनंददायी होती है।
आइवीएफ एक्सपर्ट की राय में
नई दिल्ली की वरिष्ठ आइवीएफ एंड फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. प्रिया दहिया बताती हैं कि उम्र के बढ़ने के साथ ही महिलाओं के एग्स की क्वालिटी भी कम हो जाती है। इस कारण कई करियर ओरिएंटेड महिलाओं को अपने करियर से कॉम्प्रोमाइज (समझौता) भी करना पड़ता है। ऐसी महिलाओं के लिए एग फ्रीजिंग बेहद मददगार तकनीक है, क्योंकि अंडों को जितना चाहे, उतने लंबे समय तक लैब में फ्रीज्ड करके रखा जा सकता है।
इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। फ्रीज्ड किए गए अंडे से कोई हेल्दी (स्वस्थ) महिला, किसी भी उम्र में माँ बन सकती है। वैसे, भी 45 साल की उम्र को ओल्ड एज की शुरुआत नहीं बल्कि ‘न्यू एज’ माना जाता है। हालांकि, 45+ की उम्र में कंसीव करना चिकित्सकीय और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोणों से थोड़ा रिस्की होता है जबकि 35-40 की उम्र में कंसीव करना बेहतर रहता है।
हर प्रक्रिया की एक तय अवधि होती है
जिस तरह हर प्राकृतिक प्रक्रिया की एक तय अवधि होती है, उसी तरह शादी-ब्याह करने और माता-पिता बनने की भी एक तय अवधि होती है। हमारे पूर्वजों ने कुछ सोच-समझ कर ही यह अवधि निर्धारित की होगी। हमारे पौराणिक ग्रंथों में इंसान के जीवन काल को 100 वर्ष का मान कर जन्म से 25 वर्ष की आयु को ब्रह्मचर्य आश्रम (शिक्षा प्राप्ति की अवधि), 25 से 50 वर्ष की अवधि को गृहस्थ आश्रम (शादी-ब्याह और बच्चे पैदा करने की अवधि), 50 से 75 वर्ष की अवधि को वानप्रस्थ आश्रम (अगली पीढ़ी को पारिवारिक मूल्य हस्तांतरण की अवधि) और उसके बाद की उम्र को सन्यास आश्रम (मोक्ष प्राप्ति की अवस्था) में विभाजित किया गया है।
ऐसा करने के पीछे निश्चित रूप से उद्देश्य यह था कि मनुष्य प्रत्येक अवधि का ससमय और उचित आनंद प्राप्त कर सके। 40 की उम्र के बाद माँ-बाप बने लोगों में ना तो उतनी ऊर्जा बचेगी कि वे अपने बच्चे के बचपन को सही तरह से एंजॉय कर पाएं और ना ही उनमें वह क्षमता बचेगी कि उनकी किशोरावस्था को सही दिशा दे पाएं या उनकी युवावस्था के साथ सही तालमेल बिठा पाएं। हर चीज़ अपने तय वक्त में और तय प्रक्रिया के तहत ही खूबसूरत लगती है और उसके बाद उसकी खूबसूरती धूमिल पड़ जाती है।
अन्य विकल्पों पर भी करें विचार
हर चीज का नेचुरल प्रोसेस (प्राकृतिक प्रक्रिया) होता है। उसके विरुद्ध जाने से निश्चित रूप से आपको कई तरह की जटिलताएं झेलनी पड़ सकती हैं। जो महिलाएं कैरियर की दुहाई देकर शौकिया तौर पर एग फ्रीजिंग करवा रही हैं, वे कहीं-ना-कहीं असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होती हैं।
वे खुद को आधुनिक तो कहती हैं, खुद को कैरियर ओरिएंटेड भी कहती हैं और दूसरी ओर उन्हें अपना घर-परिवार और बच्चा भी चाहिए और वो भी अपना बच्चा ही चाहिए। अगर उन्हें खुद को माँ कहलवाने का इतना ही शौक है तो वे किसी बच्चे को अडॉप्ट भी तो कर सकती हैं। इससे उनका शौक भी पूरा हो जाएगा और किसी अनाथ बच्चे की ज़िन्दगी भी संवर जाएगी लेकिन ऐसा ना करके वे इस तकनीक को एक पब्लिसिटी स्टंट के तौर पर यूज़ कर रही हैं। इससे समाज में सही संदेश नहीं जाता है।
एग फ्रीजिंग जैसी तकनीक उन महिलाओं के लिए वाकई एक वरदान है, जो किसी कारणवश कंसीव करने में सक्षम नहीं हैं लेकिन बेहद मंहगी प्रक्रिया होने की वजह से यह हर किसी के वश की बात भी नहीं है। अतः हमें इसके अन्य विकल्पों पर भी गौर करना चाहिए और साथ-ही-साथ हमें इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि यह तकनीक समाज में मात्र पब्लिसिटी स्टंट बन कर ना रह जाए।